सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना अंधकार जब अम्बर पर छाये नव पल्लव नव उपमा लेकर ….माँ !तू आये …. निराशा के घोर भँवर में फंस जाये नया उत्साह नई उमंग लेकर ….माँ!तू आये ….. कठिन डगर चलना मुश्किल हो जाये नई शिक्षा का संचार लेकर ……माँ!तू आये… सुख समृद्धि की प्रबल कामना पूर्ण न पाये नई दिशा का…
माँ शारदे की रहे कृपा
माँ शारदे की रहे कृपा पीले पत्तों से झरे गम सारे खिली खुशियां बन नव कलियां आया लेकर नव हर्ष नव उत्साह बसन्त ये खिली पीली सरसों चमकी सूरज की लालिमा खिली कोपलें कोमल कोमल नई पत्तियों से हुआ श्रृंगार पेड़ों का बसंत आया बन खुशियों भरे नव जीवन का दूत माँ शारदे की रहे…
सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना माता सरस्वती ऐसा तू वर दे अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे पाप इस धरा पर बहुत बढ़ गया है मनुज ही मनुज का रिपु बन गया है भटके हुए राही के पथ आलोकित कर दे अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे चाहत है कइयों की पर पढ़ नही पाते निर्धनता राह में उनके रोड़ा…
जय माँ सरस्वती
जय माँ सरस्वती क्या लिखूँ , कैसे लिख दूँ वो भाव कहाँ से लाऊँ रच दूँ माँ तुझ पे कविता वो शब्दार्थ कहाँ से लाऊँ … भटक रही जग की तृष्णा में मोह माया का भंवर सा फैला अंतर्मन को निश्छल कर लूँ वो परमार्थ.. कहाँ से लाऊँ … निज स्वार्थ भरा औ द्वेष भरा…
वर दे, वीणा वादिनी वर दे !
वर दे, वीणा वादिनी वर दे ! अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः। अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा॥ (ऋग्वेद 10/ 125) मैं (वाग्देवी) रुद्रों (प्राणतत्त्व, एकादश रुद्र), वसुओं (पृथ्वी आदि आठ वसुओं), आदित्यों (बारह आदित्य सूर्य) तथा विश्वेदेवों (सभी देवों, सभी दिव्य विभूतियों) के रूपों में विचरण करती हूँ। मैं मित्र और वरुण (सौरतत्त्व और जलीय तत्त्व) तथा इन्द्र…
बदल रही है भारत की तस्वीर
बदल रही है भारत की तस्वीर हमारा गणतंत्र -हमारी राष्ट्रीय एकता-सम्प्रभुता-और अस्मिता का एक गौरवशाली दिन, पूर्ण स्वराज्य की अवधारणा के साकार प्रतिफलन का एक उज्जवल क्षण , एक नई सुबह-जागृति की, विश्वास की,एकता व गर्व-बोध से भरे गणतंत्र की, हाथों में तिरंगे झंडे उठाये हजारों बच्चों की एक सम्मिलित आवाज ” भारत माता की…
जज्बा तो बहुत हैं आधी आबादी में
जज्बा तो बहुत हैं आधी आबादी में अतीत की ओर पीछे मुड़कर जब हम देखते हैं तो गणतंत्र शब्द बहुत पुराना हैं ,वैदिक युग से पूर्व राजाओं का शासन हुआ करता था। लेकिन अव्यवस्थाओं के कारण लोगों ने शासन प्रणाली में बदलाव के लिए प्रजातंत्र में शासन की स्थापना की। गण का मुख्य अर्थ समूह…
देश सर्वोपरि
देश सर्वोपरि देश है घर मेरा देश है घर तेरा फिक्र खुद की अगर है बचा लो इसे राह रौशन रहे चाह रौशन रहे तुम बनो सारथी और सँभालो इसे ! गाय ,गंगा , हिमालय की हो आरती , माँ से बढ़कर है हम सब की माँ भारती , आओ वंदन करें अभिनंदन करें…
मुर्दा खामोशी
” मुर्दा खामोशी “ तेरे जग में भीड़ बहुत है आगे बढ़ने की होड़ बहुत है मंज़िल की मुर्दा खामोशी रस्तों का पर शोर बहुत है ख़्वाबों के साये को थामे जीने की घुड़दौड़ बहुत है बुत से दिखते चलते फिरते मरे हुओं की फ़ौज बहुत है पीठों में खंजर…भोंकते प्यार जताते यार बहुत है…