मधुमास

मधुमास मधुर मधुर मधुमास खिला मन पुलकित उल्लास मिला। भासमान है सूर्य बिम्ब चल रहा साथ निज प्रतिबिम्ब। प्रकृति ओढ़ी है नव दुकूल मन में उठते हैं भाव फूल। कोकिला करे कुहू पुकार गायें भी भरती हुंकार। मन वासंती जागे उमंग बह रही ख़ुशी की नव तरंग। दे रही थाप गोरी पी के संग चढ़…

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बसंती बंसरी

बसंती बंसरी सुनो-सुनो बंसरी का शोर नाच उठा वन मोर …. सुरों की पिचकारी छुटी भींगा तनमन भींगा जनजन … पीला संयम मन झझ्कोरे सुधि पीये बंजारा .. सुनो सुनो बंसरी का शोर…… नाच उठा मन मोर…. दौड़ चली पीड़ा कल की फिजाओं की तनहाई गीतों के तालों में डोले मन मौसम की शहनाई.. सुनो-सुनो…

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पधारो हे अतिथि

पधारो हे अतिथि नववर्ष कुसुम हुआ है आज पुष्पित पल्लवित, देखो मोरे घर आंगन द्वारे उजास प्रकाश का स्त्रोत सांझ सकारे पधारो हे अतिथि अभिनंदन तुम्हारा इनकी सुगंध और निराली अदाएं बरसातीं हैं लिए, मेह नेह, इनकी हवाएँ दवाओं से बढकर करतीं असर इनकी अप्रतिम अदाएं अलौकिक दुआएं, ये चांद रातों में, अमृत बरसाएं, झूमें…

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फागुन आया

फागुन आया मह-मह मंजर महुआ ले फागुन आया सखि, फिर बागों में वसंत हुलसाया! धानी चादर ओढ़ कहीं मटर सेम गदराया सखि,फिर बागों में वसंत हरषाया!! पीक कूक डाली-डाली बेदर्द दर्द सुलगाया हे सखि, फिर से वसंत भरमाया!! पीली सरसों,मदभरे नयन करता नर्तन संग पवन मन मदन राग यह गाया सखि,फिर हिय मध्य वसंत कुछ…

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शत शत नमन

  शत शत नमन शत शत नमन मां शारदे तुमको विद्या बुद्धि का वर दे हमको, कर दो उज्ज्वल हम सबका जीवन पावन कर दो ये तन और ये मन !! सुंदर हो हर भाव हमारा सद्बुद्धि का आशीष हमें दो, अपने वीणा के हर तार से मैया मधु मधुर जीवन को कर दो!! करती…

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सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना अंधकार जब अम्बर पर छाये नव पल्लव नव उपमा लेकर ….माँ !तू आये …. निराशा के घोर भँवर में फंस जाये नया उत्साह नई उमंग लेकर ….माँ!तू आये ….. कठिन डगर चलना मुश्किल हो जाये नई शिक्षा का संचार लेकर ……माँ!तू आये… सुख समृद्धि की प्रबल कामना पूर्ण न पाये नई दिशा का…

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माँ शारदे की रहे कृपा

माँ शारदे की रहे कृपा पीले पत्तों से झरे गम सारे खिली खुशियां बन नव कलियां आया लेकर नव हर्ष नव उत्साह बसन्त ये खिली पीली सरसों चमकी सूरज की लालिमा खिली कोपलें कोमल कोमल नई पत्तियों से हुआ श्रृंगार पेड़ों का बसंत आया बन खुशियों भरे नव जीवन का दूत माँ शारदे की रहे…

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सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना माता सरस्वती ऐसा तू वर दे अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे पाप इस धरा पर बहुत बढ़ गया है मनुज ही मनुज का रिपु बन गया है भटके हुए राही के पथ आलोकित कर दे अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे चाहत है कइयों की पर पढ़ नही पाते निर्धनता राह में उनके रोड़ा…

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जय माँ सरस्वती

जय माँ सरस्वती क्या लिखूँ , कैसे लिख दूँ वो भाव कहाँ से लाऊँ रच दूँ माँ तुझ पे कविता वो शब्दार्थ कहाँ से लाऊँ … भटक रही जग की तृष्णा में मोह माया का भंवर सा फैला अंतर्मन को निश्छल कर लूँ वो परमार्थ.. कहाँ से लाऊँ … निज स्वार्थ भरा औ द्वेष भरा…

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