रोज डे

रोज डे “अरे, रूको – रूको”, सुमेर ने बाईक रोक दी। “यह तुम्हारी कौन लगती है, बहन?” बीस से चालीस लोगों के हुजूम और उनके आक्रामक रुख को देख गुलाबी ठंढ़ के मौसम में भी सुमेर को पसीना आ गया, उसने बाईक रोकी और दोनों बाईक से नीचे उतर गए। “जी नहीं…”, हेलमेट उतारते हुए…

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मेरे प्रिय तुम गुलाब हो!

मेरे प्रिय तुम गुलाब हो! नेहरू के कोट से चलकर, प्रियतमा के जूड़े में अठखेले, रंग बिरंगे चाहे जितने हो, पर, सुर्ख लाल में हो अलबेले, मादकता की तुम हो परिभाषा, तुम सुहाग सेज की अभिलाषा, मेरे प्रिय तुम गुलाब हो! हो न ! सुधा गोयल ‘नवीन’ 0

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गुलाब

गुलाब फूलों का ये राजा है सबके दिल को भाता। प्यार बांटता सारे जग को कांटों में मुस्काता। लाल गुलाबी नीले पीले कितने रंग तुम्हारे। प्यार बढ़ाते तुम आपस में सबका दिल हर्षाता।। सबके मन के बगिया में तुम प्यार खिलाते हो। मनमोहक रंगों में खिल कर सबको भाते हो। मन का भौरा गुनगुन करता…

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ये गुलाब

ये गुलाब खुद टूटकर भी ये गुलाब दो दिलों को जोड़ता है, खूबसूरती बेहिसाब इसकी रुख इश्क़ का जो मोड़ता है! कांटो से बाबस्ता मगर निखार भी कमाल का , ये मोहब्बत का नूर है जवाब हर सवाल का ! प्रेम की निशानी है सुंदर प्रेम कहानी है रूमानियत की अक्श है धडकनों की जुबानी…

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मैं ख़ुद ही हूँ एक गुलाब

मैं ख़ुद ही हूँ एक गुलाब प्रतीक्षा तो थी मिलेगा मुझे भी गुलाब मन मसोस कर रह गयी जब बिन कुछ कहे चले गए वो, मायूस हो जा खड़ी हुई आईने के सामने क्या सचमुच उम्र हो चली अब ? क्या नहीं हक़ एक गुलाब का भी ? तभी आई अंतस से आवाज़ न हो…

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वीरांगना बीना दास

वीरांगना बीना दास आज से ठीक 88 वर्ष पूर्व 6 फरवरी 1932 का दिन था, जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के कनवोकेशन हाल में बैठे सैकड़ों लोग एक युवती द्वारा लगातार चलायी जा रही गोलियों से स्तब्ध रह गए, जिनका निशाना कोई और नहीं बल्कि बंगाल का तत्कालीन गवर्नर स्टेनले जैक्सन था। हालाँकि जैक्सन बच गया पर…

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