मैं “बुद्ध” न बन पाई

मैं “बुद्ध” न बन पाई आसान था तुम्हारे लिए सब जिम्मेदारियों से मुहँ मोड़, बुद्ध हो जाना , क्यूंकि पुरुष थे तुम। एक स्त्री होकर बुद्ध बनते, तो जानती मैं । जिस दिन “मैं” के अन्तर्द्धन्द पर विजय मिल जाएगी निर्वाण की राह भी बेहद सुगम हो जाएगी। सब त्याग कर तुमने उस “मैं” पर…

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योगेश

योगेश उसकी अक्सर याद आती रहती है। बल्कि शायद हमेशा ही वह मेरे जेहन में रहता है। मेरा चपरासी था। यूँ कहिये कि मेरा अभी-अभी चपरासी हुआ था। हुआ यूँ कि मैंने अपने स्थायी चपरासी को कई बार अचानक मेरे ऑफिस के सोफे पर लेटे देख लिया था और एक बार तो मेरे ही सोफे…

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रोशनी : इधर-उधर से

रोशनी : इधर-उधर से हमारे देश भारत में इतनी विविधताएँ हैं कि सबको शब्दों में समेटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। अब देश के ही कितने नाम हैं – जम्बूद्वीप, भारतवर्ष, इंडिया, हिन्दुस्तान, हिंद और सबके साथ ही कितनी कहानियाँ जुड़ी हैं। दरअसल भारत आस्था का देश है और किवदंतियों का भी। जितने पर्व –…

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पुनरावृति

पुनरावृति। चारों ओर लुढ़कते पासे हैं, दाँव पर लगी द्रोपदियाँ हैं, लहराते खुले केश हैं, दर्प भरा अट्टहास है, विवशता भरा आर्तनाद है, हरे कृष्ण की पुकार है… चारों ओर पत्थर की शिलाएँ हैं, मायावी छल है, लंपटता है, ना जाने कितनी ही अहिल्याओं की पाषाण देह है, नैनों में आत्म ग्लानि का नीर भरे,…

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ऊंगली पकड़ कर तुमने….

ऊंगली पकड़ कर तुमने…. साठ के दशक में जन्‍में हम सब एक ऐसी बिरादरी का हिस्‍सा हैं, जो कि न बहुत पुरानी सोच के मोहताज हैं, और न ही बहुत नई तड़क-भड़क में विश्‍वास रखते हैं। और हमारी ऐसी सोच को बनाया, सजाया संवारा और एक रूप रेखा दी है हमारे माता-पिता ने। दहलीज के…

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उम्मीदों का नया दशक

उम्मीदों का नया दशक 2021से 2030 का समय एक नए दशक का आरंभ कितनी नई जिंदगियों की शुरुआत कितनों की सेवानिवृत्ति कितनों के नए कर्तव्य होंगी कितनी नई किलकारियाँ कितनी नई गृहस्थियाँ जो पालने में हैं, नए आयाम गढ़ेंगे जो पा चुके हैं पंख, वृहद आसमान छूयेंगे नये जहान का विस्तार होगा नयी तकनीक का…

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जीवन का सफरनामा

जीवन का सफरनामा मेरे साहित्यिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु जीवन में भी जो प्रेरणापुंज हैं उनके लिए आज शब्दों के जरिये मन के हर कोने को खंगालकर जो भाव निकले उन्हें व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ। मेरा जन्म दुर्ग(छग) में हुआ लेकिन मेरे मां पापा गाँव में रहते थे, तब वहां अच्छे…

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बादलों के संग क्यों उड़ने लगा है मन

बादलों के संग क्यों उड़ने लगा है मन (१) बादलों के संग क्यों उड़ने लगा है मन कल्पना के जाल क्यों बुनने लगा है मन इन्द्रधनुषी स्वप्न के संग रात भर , बीन के तारों सदृस बजने लगा हैं मन ? हरित वर्णा हो गई है सांवरी धरती , बादलों के प्यार ने क्या चातुरी…

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कैसे ठहरता बसन्त

कैसे ठहरता बसन्त बसन्त यहां भी आया था द्वार पर ही थी अनुरागी किसलय से भरी थी अंजुरी लहकती उमंग-तरंग सोमरस से भरे घट, परिणय पल्लवों को छूती मंज़र उन पर बैठी अभिलाषा पिक अभी कुहुक ही रही थी पूरी तरह पंचम स्वर पकड़ी भी नहीं ऊपर कहीं से अनायास निर्विघ्न चक्रवाती तूफान ने घेर…

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