नर का पौरुष

नर का पौरुष जब-जब संकट ने जाल बुना नर ने पौरुष का वार चुना यूँ शैय्या पर जीकर क्या हो उसने मृत्यु अधिकार चुना विद्युत सम तलवार लिये तड़ितों को अपने तुनीर धरे लगा गाँठ जनेऊ में भरकर भीषण हुंकार चला कितने रत्नाकर लाँघ दिए अगणित सेतु भी बाँध दिए माँ के वचनों की रक्षा…

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बसंत

बसंत आया बसंत हर्षित हुए अनंग धरती का मगर देख हाल सिकुड़ा किंचित मस्तक भाल दिल्ली में जब देखा तनाव बदले अपने मन के भाव किया उन्होंने एक एलान लड़ूंगा अबकी मैं भी चुनाव दिखाऊंगा अपना प्रभाव रति लाना मेरा धनुष बाण सुनो सब मेरा संकल्प पत्र मैं ही हूं बस तुम्हारा विकल्प तुम भी…

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उस अमवा की छांव में

अमवा की छांव में चल साथी चउसलकर बैठेंगे उस अमवा की छांव में,.. चल थोड़ा जीकर आते हैं हम यादों के गांव में,.. कैसे तुम मिलने आए थे शादी का करके इरादा,.. वो पल जब करके गए थे तुम जल्दी आने का वादा,.. वो मस्तियां वो शोर शराबा हमारी शादी के चाव में,.. चल थोड़ा…

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जीवन का मंत्र है प्रेम

जीवन का मंत्र है प्रेम प्रेम, प्रतीक है जीवन का मंत्र है आत्मवैभव का। प्रेम का कोई भी संबंध, वासना से नहीं, पृथक है,वासना! प्रेम की शर्तें नहीं उम्र,जाति, मज़हब या ,सामाजिक बंधन भी नहीं! प्रतिदान,प्रेम का सिर्फ प्रेम ही है, वस्तु या…….. दैहिक, सांसारिक ……कुछ भी नहीं! प्रेम देश से,प्रेम मातृभूमि से और माँ…

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अनुभूति

अनुभूति ” माँ कल मेरे स्कूल में लेख प्रतियोगिता है, क्या आप मेरी मदद कर देंगी ” – अंकुर ने स्कूल से आ कर माँ से कहा । ” हाँ क्यों नहीं बेटा किस विषय पर लिखना है ” – माँ ने प्यार से पूछा । ” प्रेम ” पर — कहा अंकुर ने अरे…

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प्रेम की पराकाष्ठा

प्रेम की पराकाष्ठा प्रेम सत्य है,सर्वव्यापी है प्रेम की पराकाष्ठा भला कब किसने नापी है!! प्रेम विश्वास है प्रेम आस है, प्रेम प्यास है एहसास है!! प्रेम पूजा है,प्रेम निष्ठा है, प्रेम नाता है ,प्रेम विरह है!! प्रेम को कब किसने बांधा है प्रेम को कब किसने मापा है, प्रेम अनछुआ है अनदेखा है प्रेम…

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प्रेमपत्र सन बहत्तर का

प्रेमपत्र सन बहत्तर का किशन आज बहुत लंबे समय के बाद तुम दिखे।समय को दिनों, महिनों और वर्षों में बाँटने की शक्ति कहाँ थी मुझमें।हर एक पल तो युग की तरह बीता था। कितने युग बीत गए इसका भान ही कहाँ रहा मुझे।मन तो सदा तुम्हें खोजता रहता था। आज तुम पर दृष्टि पड़ी तो…

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हां मैं प्रेम में हूं

हां मैं प्रेम में हूं प्रेम में हूँ..! हां मैं प्रेम में हूं..! स्वयं के..! और लगता मुझे… ये सारा संसार है प्रेममय…! शबनमी रेशमी एक सूत.. एक धागा महीन सा..! जुड़ता जोड़ता… रूहों की खुशबूओं से.. रूहों को… और रूहानियत से.. सराबोर ये ब्रम्हांड…! कल कल करता झरने सा…! अकूत स्तोत्र के खजानों संग……

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रजनीगंधा

रजनीगंधा कल सांझ का दिया जलाने गई थी तुलसी तले घर के आंगन में, तभी मस्त हवा के झोंके ने बिखेर दी रजनीगंधा की सुगंध पूरे आंगन में। वो रजनीगंधा जिसे तुमने बड़े प्यार से लगाया था हमारे आंगन में, और कहा था, “प्रिये गुजारेंगे गर्मियों की रातें इस प्यारे से आंगन में”। पर, तुम्हें…

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हम तुम

हम तुम हम तुम जब मिले थे कितने अंजान एक दूसरे से बिल्कुल दो अजनबी से धीरे धीरे हुई जान पहचान कभी नोंक झोंक कभी तीखी तकरार कभी गुस्सा कभी सुलह यूँ कब फिर बन गए दोस्त और रंग गये एक दूजे के प्यार में खबर भी न हुई यूँ वक्त लेता रहा इम्तिहान कई…

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