माँ तुम बहुत याद आती हो

माँ माँ तुम बहुत याद आती हो जब स्कूल से घर आती हूँ, खाली घर ही पाती हूँ सूनी सी देहरी देखती हूँ, अपनी थाली खुद लगाती हूँ, छोटे को भी कभी ख़िलाती हूँ , हर निवाले के साथ माँ तुम बहुत याद आती हो। आज जब मुझे लगा कि अब मैं भी बड़ी हो…

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1962 के अविस्मरणीय यादें

1962 के अविस्मरणीय यादें वर्तमान में हिन्दुस्तान बहुत सारी मुश्किलों और चुनौतियों से जूझ रहा है।हमारा देश इस मुश्किल घड़ी में सिर्फ एकता, अखंडता, सतर्कता और जागरूकता से ही विजयी होगा। ऐसा ही मुश्किल समय 1962 मे भारत चीन युद्ध के दौरान आया था जिसका हम हिंदुस्तानियों ने एकता बनाए रखते हुए डट कर मुकाबला…

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“ मैं भी एक महिला हूं”: सोजॉर्नर ट्रुथ 

“ मैं भी एक महिला हूं”: सोजॉर्नर ट्रुथ  आज जिस महान महिला शख्सियत की हम बात करने जा रहे हैं, उनके व्यक्तित्व के बारे में जब मैंने पहली बार(कोई सात-आठ साल पहले) पढ़ा था। तो उस समय न ही सिर्फ़ मेरे रोंगटे खड़े हो गए, बल्कि साथ ही साथ मन एक अन्जाने गर्व से भर…

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क्रांतिवीरों का तीर्थ स्थल : सेल्युलर जेल

क्रांतिवीरों का तीर्थ स्थल : सेल्युलर जेल   यह तीर्थ महातीर्थों का है.. मत कहो इसे काला पानी.. तुम सुनो यहाँ की धरती के.. कण कण से गाथा बलिदानी. प्रखर राष्ट्रभक्ति की ये पंक्तियां भारत वर्ष के स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी श्री गणेश दामोदर सावरकर जी के होठों पर तब भी सजी हुई थी…

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पधारो हे अतिथि

पधारो हे अतिथि नववर्ष कुसुम हुआ है आज पुष्पित पल्लवित, देखो मोरे घर आंगन द्वारे उजास प्रकाश का स्त्रोत सांझ सकारे पधारो हे अतिथि अभिनंदन तुम्हारा इनकी सुगंध और निराली अदाएं बरसातीं हैं लिए, मेह नेह, इनकी हवाएँ दवाओं से बढकर करतीं असर इनकी अप्रतिम अदाएं अलौकिक दुआएं, ये चांद रातों में, अमृत बरसाएं, झूमें…

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ऐ वतन

ऐ वतन ऐ वतन! मेरे भारत! तेरी माटी से बनी हूँ मैं तेरी आबो हवा में ही मैं जिंदा हूँ मेरी साँसों में बसी है तेरी खुशबू रूह में इश्क हकीकी ख़ुदाया तेरा है नहीं दरकार मुझे मौसमों की तरहा प्यार के इज़हार की मेरा हर दिन मुबारक है तेरी आगोश में हर पल महफूज़…

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क्षितिज की लालिमा करे आह्वान”

“क्षितिज की लालिमा करे आह्वान” 15 अक्टूबर शरद पूर्णिमा कोजागरी लक्ष्मी पूजा के दिन बिहार के सहरसा जिले में जन्मी बच्ची को डॉक्टर ने हाथों में थामकर घोषणा की, “यह बच्ची बेहद विलक्षण, आगे चलकर पूरी दुनिया में नाम रोशन करेगी”। 2 वर्ष चार महीने की छोटी आयु में ही मां सीता के रूप झांकी…

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एक सख्त खलनायक

एक सख्त खलनायक धूप में बहते अपने पसीने, कठोर परिश्रम और पीड़ा के लिए वह देखना चाहता था उसकी आँखों में प्रेम, आर्द्रता और करुणा परन्तु वह देखता था रूखापन, कठोर अनुशासन और धैर्य क्योंकि पिता जानता है कि दुनिया निर्मम, निर्मोही और निष्ठुर हैं बच्चों के लिए जरूरी है माँ की छाया में रहते…

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