उजालों की ओर

उजालों की ओर सृष्टि के अविरल प्रवाह की वात्सल्य धारा में अवगाहन करता मनुष्य और उसके भावसुमनो के मुस्कान स्रोत से नि:सृत समाज के मन की कल्पना है आठ मार्च “अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस”। स्तम्भित होती हूं जो महिला प्रत्येक पल प्रणम्य है उसके लिये ३६५ दिन में एक दिन ? “मातानिर्माता भवति” नारी तो सृष्टा…

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स्त्री मूर्ति नहीं है

“स्त्री मूर्ति नहीं है “ हर रोज कई सवाल कई नजरों के बीच से गुजरती है निर्भयाएं । कहीं बचतीं हैं नजरों और सवालों से , कहीं लड़तीं हैं नजर और सवालों से , निर्भयाएं हर रोज लड़तीं हैं एक युद्ध अपनी पहचान के लिए । ऐसा युद्ध जहाँ सीधे रास्ते भी जाने क्यों बार-बार…

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मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ, हाँ मैं नारी हूँ ईश्वर की आभारी हूँ । स्वेच्छा से मैं कभी भी कहीं भी आ जा सकती हूँ पर ससुराल प्राथमिकता है मेरी अत: कभी कभी जरूरत के वक्त मैं मैके को भी हारी हूँ …. हाँ मैं नारी हूँ । छोटे से रसोई घर की मैं…

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8 मार्च

  1 स्त्री बढ़ रही है, बदल रही है सब खुश हैं सब यानी समाज, पुरुष सूचना तंत्र इन सब मे स्वयं स्त्री शामिल नही है 2 स्त्री बदल रही है पुरुष खुश है खुश है कि वही बदल रही है पुरुष के अनुरूप स्त्री के अनुरूप पुरुष को नही बदलना पड़ा 3 स्त्री का…

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हरेक औरत

हरेक औरत एक वक्त ऐसी जगह पहुँच ही जाती है हरेक औरत , जहाँ खुद चुनने पड़ते हैं उसे राह के काँटे खुद बुनना पड़ता है ख्वाहिशों के धागे खुद लिखना पड़ता है तकदीर का किस्सा खुद ढूँढना पड़ता है अपने हक का हिस्सा खुद सहलाने पड़ते हैं जखम तन के खुद सुलझाने पड़ते हैं…

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बुरा है

बुरा है हाँ हिंदु बुरा है न मुसलमान बुरा है जो ज़ेहन का गंदा हो वो इंसान बुरा है ए भाई मेरे ,प्यार के चल फूल खिलाएं यह तोप यह तलवार ये सामान बुरा है दोनों का लहू पीके भी प्यासा ही रहेगा ए दोस्त मेरे ,जंग का मैदान बुरा है इँसान किये जाता है…

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दंगों के बाद

दंगो के बाद दंगो के बाद वाला आसमान काला होता है कालिख बहुत दिन तक गिरती रहती है समाज के सर दंगो के बाद खतरनाक होता है राजनीति करना दंगो के बाद की राजनीति लेकिन सबसे खतरनाक होती है एक जली इमारत दूसरी को देखती है पूछती है तुम्हे क्यों जलाया जली इमारत रुआंसी है…

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जागें फिर हम भारत वासी!

जागें फिर हम भारत वासी! जागें फिर हम भारतवासी, हे,महाकाल, पर्वतवासी। धर रुद्ररुप घट-घटवासी, जागें फिर हम भारतवासी। भारत पर संकट छाया है, फिर रक्तबीज बन आया है। अब रक्षक बन काशी वासी, जागें फिर हम भारत वासी। वोट बैंक के बीच भंवर में, जाति-धर्म हैं सब के प्यादे । अब भारत माँ इनकी दासी!…

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महाशिव

महाशिव मेरे दोस्त यह कलयुग है, सतयुग नही आज… यदि शिव भी विषपान करें तो देवता इसे उनकी डिप्लोमेसी कहेंगे किसी गहरे षड्यन्त्र की कड़ी कहेंगे।। आज कौन किसके लिये विष पीता है?? कौन दूसरों का दुख जीता है?? पर तुम दूसरों के हिस्से का विषपान ही नही कर रहे अपने हिस्से का अमृत भी…

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