“नारी तुम”

“नारी तुम” हम नारी हैं, एक शक्ति हैं, इस गौरवशाली देश के, सदियों से देश का गौरव हैं, सदैव सर्वोच्च धरोहर हैं, इस जीवन को व्यर्थ न करो, नारी जीवन को सार्थक करो, हिम्मत को अपना साथी बनाकर, हर मंजिल को फतह करो, उठो लड़ो और आगे बढ़ो, हर संकट का हरण करो, नारी हैं…

Read More

नारी हूँ

नारी हूँ नारी हूँ नारी ही कहलाऊँ न मैं राधा हूँ न मैं मीरा न मैं सीता हूँ न मैं गांधारी न मैं लैला हूँ न मैं सोहनी न मैं देवी हूँ न मैं दासी मैं तो सिर्फ ईश्वर की रचना त्याग, प्रेम ,ममता ,वात्सल्य से परिपूर्ण नारी हूँ ………. जिसे कई नामों से जाना…

Read More

पहले मैं इंसान हूँ

पहले मैं इंसान हूँ पहले मैं इंसान हूँ फिर नारी हूँ बेटी हूँ बहन हूँ पत्नी हूँ माँ हूँ दोस्त हूँ दुश्मन हूँ रिश्वतों का दरीचा हूँ जानती हूँ हज़ारों खामियां हैं मुझमें पर जैसी हूँ अच्छी हूँ आखिर इंसान हूँ देखती हूँ खुद को खुद की निग़ाहों से अपूर्ण हो कर भी खुद में…

Read More

महिला दिवस के बहाने..

महिला दिवस के बहाने.. तू जिन्दगी का कोमल अहसास है, छुएँ तुझे तो सारा आकाश है, लगती किसी कविता सी, मन के बहुत पास कोई ,अधूरी प्यास हो तुम घर, अंगना दौड़ती ममता की छाँव बनी तुम, माँ हो, प्रिया, बहन, पत्नी, बेटी मेरी, जिन्दगी के टूटते संबंधों में , संजीवनी सी रिश्तों की सांस…

Read More

देह से इतर स्त्री ……….!!

देह से इतर स्त्री ……….!! एंगेल्स ने कहा है कि मातृसत्ता से पितृसत्तात्मक समाज का अवतरण वास्तव में स्त्री जाति की सबसे बड़ी हार है। मानविकीविज्ञान शास्त्र (Anthropology) के विचारक ‘लेविस्त्रास’ ने आदिम समाज का अध्ययन करने के बाद कहा-‘सत्ता चाहे सार्वजनिक हो या सामाजिक, वह हमेशा पुरुष के हाथ में रही है। स्त्री हमेशा…

Read More

उजालों की ओर

उजालों की ओर सृष्टि के अविरल प्रवाह की वात्सल्य धारा में अवगाहन करता मनुष्य और उसके भावसुमनो के मुस्कान स्रोत से नि:सृत समाज के मन की कल्पना है आठ मार्च “अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस”। स्तम्भित होती हूं जो महिला प्रत्येक पल प्रणम्य है उसके लिये ३६५ दिन में एक दिन ? “मातानिर्माता भवति” नारी तो सृष्टा…

Read More

स्त्री मूर्ति नहीं है

“स्त्री मूर्ति नहीं है “ हर रोज कई सवाल कई नजरों के बीच से गुजरती है निर्भयाएं । कहीं बचतीं हैं नजरों और सवालों से , कहीं लड़तीं हैं नजर और सवालों से , निर्भयाएं हर रोज लड़तीं हैं एक युद्ध अपनी पहचान के लिए । ऐसा युद्ध जहाँ सीधे रास्ते भी जाने क्यों बार-बार…

Read More

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ, हाँ मैं नारी हूँ ईश्वर की आभारी हूँ । स्वेच्छा से मैं कभी भी कहीं भी आ जा सकती हूँ पर ससुराल प्राथमिकता है मेरी अत: कभी कभी जरूरत के वक्त मैं मैके को भी हारी हूँ …. हाँ मैं नारी हूँ । छोटे से रसोई घर की मैं…

Read More

8 मार्च

  1 स्त्री बढ़ रही है, बदल रही है सब खुश हैं सब यानी समाज, पुरुष सूचना तंत्र इन सब मे स्वयं स्त्री शामिल नही है 2 स्त्री बदल रही है पुरुष खुश है खुश है कि वही बदल रही है पुरुष के अनुरूप स्त्री के अनुरूप पुरुष को नही बदलना पड़ा 3 स्त्री का…

Read More

हरेक औरत

हरेक औरत एक वक्त ऐसी जगह पहुँच ही जाती है हरेक औरत , जहाँ खुद चुनने पड़ते हैं उसे राह के काँटे खुद बुनना पड़ता है ख्वाहिशों के धागे खुद लिखना पड़ता है तकदीर का किस्सा खुद ढूँढना पड़ता है अपने हक का हिस्सा खुद सहलाने पड़ते हैं जखम तन के खुद सुलझाने पड़ते हैं…

Read More