मुर्दा खामोशी

” मुर्दा खामोशी “ तेरे जग में भीड़ बहुत है आगे बढ़ने की होड़ बहुत है मंज़िल की मुर्दा खामोशी रस्तों का पर शोर बहुत है ख़्वाबों के साये को थामे जीने की घुड़दौड़ बहुत है बुत से दिखते चलते फिरते मरे हुओं की फ़ौज बहुत है पीठों में खंजर…भोंकते प्यार जताते यार बहुत है…

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भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में 3 जनवरी 1831 को जन्‍मी सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थी। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले शिक्षक होने के साथ भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और…

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गीता जयंती

गीता जयंती गीता जयंती के शुभ अवसर पर आयोजित भगवत् गीता के श्लोकों का चिंतन-मनन यह एक सार्थक पहल है, यह उपक्रम सतत चलता रहे तो सभी को बौद्धिक और आध्यात्मिक लाभ होगा । आज मैं “अवतारवाद” पर अपनी अल्प बुद्धि से कुछ विचार व्यक्त कर करना चाहती हूं । अवतार का अर्थ स्वयं परमात्मा…

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दो शब्द प्रेम के नाम

दो शब्द प्रेम के नाम नई दुनिया की नई रंगत, कब फरवरी का माह प्रेम को अर्पित हो गया और वह भी एक विशिष्ट खोल में लिपटा हुआ, पता नहीं, पर प्रेम तो शाश्वत है, इतना व्यापक कि एक पल भी जीवन का धड़कना प्रेम के बगैर संभव नहीं। सृष्टि अगर सृजन से जुड़ी है…

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भाई दूज

भाई दूज पुराने हो गए शब्दों को पुराने हो गए दिन अब न जाने कब लौटेंगे बचपन के वे भाई दूज के दिन पाँच दिन की वह सुनमा गेहमी नन्हे कदमों की वह चहलकदमी पांच दिन के पांच गंध घर के हर कोने में मिठाई की खुशबू भैया राजा बनके राजा ख़ूब जमाये रौब अक्षत…

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कोरोना दारुण व्याधि रचायो

कोरोना दारुण व्याधि रचायो कोरोना दारुण व्याधि रचायो, चीन देश वाहि पैदा कीन्हों, सब जग माहि पठायो, जर्मन, इटली, फ़्रांस, रूस, सारे जग को भरमायो, इंगलैंड और अमेरिका सोचें, सधै ना कोनु उपायो, जग पूछे बेशर्म चीन से, क्यों चमगादड़ खायो, हालैंड, पाकिस्तान, कनाडा, सब को सोच थकायो, भारत के तत्पर प्रयास लख सब जग…

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भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- सुभद्रा कुमारी चौहान

अग्रणी महानायिका “हिंदी साहित्य हमेशा समाज से सम्बद्ध रहा है। साहित्य मात्र मनोरंजन का माध्यम नहीं वरन सामाजिक समस्याओं और विसंगतियों का आईना भी है।” आधुनिक हिंदी साहित्य के क्षेत्र में शुरुआत से ही देश की स्वतंत्रता की आवश्यकता और गुलामी की विवशता पर लेखकों ने खुल कर कलम चलाया था।भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर आज…

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प्रेमचंद की “सुहाग की साड़ी”

प्रेमचंद की “सुहाग की साड़ी” मानवीय संवेदना के कुशल चितेरे, नव जागरण के प्रणेता, सर्वहारा की प्रखर वाणी और तत्कालीन समय को अपनी लेखनी से जीवंत करने वाले, सकारात्मक ऊर्जा की आभा से नव दीप प्रदीप्त करने वाले सर्वकालिक महान लेखक, चिंतक और कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं । मुंशी जी…

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चाहतें

चाहतें सुबह की चाय के लिए बालकनी में पहुँचते ही ,अवि समझ गया कि कल … नहीं सिर्फ़ कल नहीं ,कई दिनों के कड़वे पलों का भारीपन है। माँ के सामने चाय का प्याला अनछुआ ही पड़ा था और शिवि की आँखों का प्याला छलकने को आतुर ! बड़े ही सहज भाव से उसने चाय…

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