नारी !

नारी ! प्रेम और ममता की मूर्ति त्याग और बलिदान का एहसास निज आंचल में समेटे सारी धरती सारा आकाश! जिसकी आंखों में है करुणा सहनशक्ति है जिसकी परिभाषा, निराशा के तम की जो दूर करे नारी ही है वो आशा!! नारी! पहचान है कोमल भावनाओं की तो कभी कठोरता की गर ये जननी है…

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भई अपनी तो बस अब हो ली !!

भई अपनी तो बस अब हो ली !! धूल उड़ाना रंग लगाना धमाचौकड़ी खूब मचाना , रंगो से भरी पिचकारी से अपनों गैरों को रंग जाना, अब कहां वो बेफिक्री के रंग कहां अब दिल के हमजोली, अब कहां वो बचपन की होली वो मस्तीखोरी वो हंसी -ठिठोली!! मां के हाथ के वो दही बड़े…

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दो मोर्चों पर स्त्री

दो मोर्चों पर स्त्री पुरूष मानसिकता वाले इस समाज में आसान नहीं स्त्री का खड़ा हो पाना स्वतंत्रता से ,बेबाक ,हँसना-मुस्कुराना । पढ़-लिख कर काबिलियत के बल -बूते बाहर पाया मुकाम, बनायी अपनी पहचान भाया तेरा कमाना, काम के लिए बाहर जाना पर नहीं रास आया , तेरा निर्णायक कुछ कह जाना दो-दो मोर्चों पर…

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सिनेमा में होली उत्सवप्रियता का प्रतीक

सिनेमा में होली उत्सवप्रियता का प्रतीक कालिदास के अनुसार मनुष्य मात्र उत्सवप्रिय होता है। उन्होंने शताब्दियों पूर्व कहा था, ‘उत्सवप्रिया: हि मानवा:’। अधिकाँश उत्सव कृषि से जुड़े हैं। जब फ़सल लहलहा रही होती है, फ़सल कट कर आती है तो किसान अपनी मेहनत का फ़ल देख कर झूम उठता है, खुशी से नाचने-गाने लगता है।…

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बदलता होली का स्वरूप

बदलता होली का स्वरूप बिहार में जली थी होलिका………..राख से खेली जाती है होली !! जिंदगी जब सारी खुशियों को स्‍वयं में समेटकर प्रस्‍तुति का बहाना माँगती है तब प्रकृति मनुष्‍य को होली जैसा त्‍योहार देती है। होली हमारे देश का एक विशिष्‍ट सांस्‍कृतिक एवं आध्‍यात्‍मिक त्‍योहार है। अध्‍यात्‍म का अर्थ है मनुष्‍य का ईश्‍वर…

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फागुन में

फागुन में रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी री फागुन में गीत कोयल भी गाये सुरीले सखी री फागुन में मौसम लेता है अँगड़ाई पेड़ों पर नव कोंपल आई कलियाँ अपने घूँघट खोले गुन गुन करते भँवरे डोले रंग फूलों के हुए चटकीले सखी री फागुन में रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी…

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फिर होली में

फिर होली में हुई आहट खोला था जब द्वार मिला त्यौहार । आया फागुन बिखरी कैसी छटा मनभावन। खेले हैं फाग वृन्दावन में कान्हा राधा तू आना। तन व मन भीगे इस तरह रंगों के संग। स्नेह का रंग बरसे कुछ ऐसे छूटे ना अंग। रंगी है गोरी प्रीत भरे रंगों से लजाई हुई। आई…

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सतरंगी संस्कृति के रंग

सतरंगी संस्कृति के रंग होली की फगुनाहट हवा में घुल रही है घुलनी भी चाहिए…… साल भर बाद होली आ रही है । पर क्या इस बार भी केवल बचपन की मधुर स्मृतियों के रंगो से ही होली खेली जाएगी या यादों के झरोखों से बाहर गली में भी झाँकना ताकना होगा? क्या सिर्फ़ गुज़रे…

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नारी का अस्तित्व

नारी का अस्तित्व हां मैं भी चाहती हूँ अपनी पहचान बनाना! चाहती हूँ अपना अस्तित्व स्थापित करना! ढूंढती हूँ हर गली,हर मोड़ पर! अपने अतीत में, मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ…..?? कभी बेटी,,,कभी बहन,… कभी बहु और कभी पत्नी,.. ना जाने कितने नामों से मैं पहचानी जाती हूँ! पर ढूंढती हूँ…

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नारी

नारी मैं शक्तिस्वरुपा,धरनी सी, ससक्त नारी हूँ। मैं अम्बर, चाँद सितारा हूँ। मैं अग्नि, तेज ज्योतिपुंज हूँ। मैं नारी हूँ। मै प्यार, ममता करुणामय हूँ। श्रृंगार रस की, मल्लिका हूँ। मैं नारी हूँ। मैं बेटी,बहन पत्नी हूँ। माँ की ममतामयी रुप हूँ। मैं नारी हूँ। माता-पिता का सम्मान हूँ। परिवार की आन,वान,शान हूँ। मैं नारी…

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