आज बिरज में, होरी रे रसिया

आज बिरज में, होरी रे रसिया होटल के कमरे की बालकनी से समुद्र की मचलती लहरों में खोई बैठी थी कात्यायनी। शुभेन्दु ने आकर कहा ‘हम कल नहीं जा सकते गोवा से।’ लेकिन क्यों… हमारी टिकट तो कन्फर्म है। पूछा कात्यायनी ने। वो … राजभवन से यह आमंत्रण आया है। होली मिलन समारोह में आपका…

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होली- जनकल्याण का प्रकृति पर्व

होली- जनकल्याण का प्रकृति पर्व प्रकृति पर्व होली रंग राग उमंग उत्साह और सामाजिक समरसता का सुंदर संयोजन है,,, जीवन का ऐसा सुखद संदेश है,,जिस में बसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति के रुप में विलक्षण बदलाव आता हैं,धरती अपना आपादमस्तक श्रृंगार करती हैं,,नीले आसमान में बिखरी बाल अरुण की लालिमा ,,वृक्षों की हरीतिंमा,फूलों…

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स्त्री विमर्श के बहाने

स्त्री विमर्श के बहाने स्त्री विमर्श, महिला सशक्तिकरण और वीमेंस लिब यह सब कुछ ऐसे शब्द हैं जिनकी चर्चा आजकल जोरों पर है या दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आधुनिक समय में सबसे ज्यादा ट्रेंड करने वाले शब्द हैं, जो कि बहुत आवश्यक भी है। महिलाओं पर पुरूषों के राज करने की…

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होली के रंग

होली के रंग चहुँ ओर फैला उल्लास फाल्गुन का ये सुंदर मधुमास होली आयी होली आयी ढोलक-मृदंग सब रस लाई खिले पलाश हैं लाल कोयलिया की कुहू कुहू गान अधरों ने छेड़ी जो तान… मौसम हुआ गुलनार सुखद लगे है बयार रास विलास को लाये होली घन बरसत रंग फुहार उन्मुक्त प्रेम भरे दिलों में…

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पलाश

पलाश ’’माँ…….माँ ………. हमारे खेत की मुँडेर पर जो पेड़ लगे हैं उन पर कितने सुन्दर फूल आऐं हैं, देखा तुमने?” “वह तो हर साल आते हैं……. इन्हीं दिनों, होली के समय……… टेसू कहते हैं उसे….” “माँ….उन फूलों का रंग कितना सुन्दर है, गहरा पीला…नारंगी…….. कहीं कहीं काले धब्बे हैं पर माँ ऐसा लग रहा…

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नारी !

नारी ! प्रेम और ममता की मूर्ति त्याग और बलिदान का एहसास निज आंचल में समेटे सारी धरती सारा आकाश! जिसकी आंखों में है करुणा सहनशक्ति है जिसकी परिभाषा, निराशा के तम की जो दूर करे नारी ही है वो आशा!! नारी! पहचान है कोमल भावनाओं की तो कभी कठोरता की गर ये जननी है…

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भई अपनी तो बस अब हो ली !!

भई अपनी तो बस अब हो ली !! धूल उड़ाना रंग लगाना धमाचौकड़ी खूब मचाना , रंगो से भरी पिचकारी से अपनों गैरों को रंग जाना, अब कहां वो बेफिक्री के रंग कहां अब दिल के हमजोली, अब कहां वो बचपन की होली वो मस्तीखोरी वो हंसी -ठिठोली!! मां के हाथ के वो दही बड़े…

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दो मोर्चों पर स्त्री

दो मोर्चों पर स्त्री पुरूष मानसिकता वाले इस समाज में आसान नहीं स्त्री का खड़ा हो पाना स्वतंत्रता से ,बेबाक ,हँसना-मुस्कुराना । पढ़-लिख कर काबिलियत के बल -बूते बाहर पाया मुकाम, बनायी अपनी पहचान भाया तेरा कमाना, काम के लिए बाहर जाना पर नहीं रास आया , तेरा निर्णायक कुछ कह जाना दो-दो मोर्चों पर…

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सिनेमा में होली उत्सवप्रियता का प्रतीक

सिनेमा में होली उत्सवप्रियता का प्रतीक कालिदास के अनुसार मनुष्य मात्र उत्सवप्रिय होता है। उन्होंने शताब्दियों पूर्व कहा था, ‘उत्सवप्रिया: हि मानवा:’। अधिकाँश उत्सव कृषि से जुड़े हैं। जब फ़सल लहलहा रही होती है, फ़सल कट कर आती है तो किसान अपनी मेहनत का फ़ल देख कर झूम उठता है, खुशी से नाचने-गाने लगता है।…

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बदलता होली का स्वरूप

बदलता होली का स्वरूप बिहार में जली थी होलिका………..राख से खेली जाती है होली !! जिंदगी जब सारी खुशियों को स्‍वयं में समेटकर प्रस्‍तुति का बहाना माँगती है तब प्रकृति मनुष्‍य को होली जैसा त्‍योहार देती है। होली हमारे देश का एक विशिष्‍ट सांस्‍कृतिक एवं आध्‍यात्‍मिक त्‍योहार है। अध्‍यात्‍म का अर्थ है मनुष्‍य का ईश्‍वर…

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