अब दिखे न कोई राहों पर
अब दिखे न कोई राहों पर है दिन दुपहरी यूँ सन्नाटा करती हैं सड़कें साँय साँय प्रकोप भारी कोरोना का अब दिखे न कोई राहों पर। मिल न सके अपनों से अपने विडंबना ऐसी विधना की पंख झरे मुरझाये सपने पलकें उनींदी कल्पना की लगी दरों पर लक्ष्मण रेखा, हर गली गली चौराहों पर। ये…