कैसे दिन फिरते जाते हैं
कैसे दिन फिरते जाते हैं कैसे दिन फिरते जाते हैं मास दिवस लगते पर्वत से, उलझन नित बनते जाते हैं कैसे दिन फिरते जाते हैं। बाग बगीचे घूमने के दिन छोटी अमिया लाने के दिन कूक पपीहा बौराते हैं कैसे दिन फिरते जाते हैं। चैता फागुन खा गया कहर यह फैल गया है शहर-शहर सपने…