मैं तेरी परछाई सब कहते हैं।
मैं तेरी परछाई सब कहते हैं। मैं तेरी ही परछाई हूं मेरी माँ! ऐसा सब कहते हैं पर यह कैसे संभव है माँ! मैं तेरी परछाई, कैसे हो सकती हूँ माँ ? बिना पलक झपकाए, जग कर सारी सारी रातें, मैं ने कभी तुम्हारी सेवा की है क्या माँ ? नहीं ना? फिर मैं तेरी…
माँ की याद
माँ की याद ————— तुम याद बहुत आती हो माँ। खुद में तुमकों, तुममें खुद को पाती हूँ, माँ तुम याद बहुत आती हो माँ। आती हैं याद बचपन की। जब बच्चो को करती प्यार डांट और फटकार लगाती, तब तुझको खुद में पाती हूँ माँ। तुम याद———-। हम बच्चों के खातिर, दिन भर करती…
माँ तेरे सोच जैसा
“माँ तेरे सोच जैसा….” मेरे सारे सपनों को , अपना ही मानकर मेरी परेशानियों में , हाथ मेरा थामकर मुझमें वह एक अटूट विश्वास भरती थी बस , हर वक़्त एक चमत्कार करती थी कब सोती, कब वह जगती , रब ही जाने पर , मिन्नतें दुआयें , वह हजार करती थी अपनी आंखों में…
गढ़ा हमारे जीवन को ऐसे
गढ़ा हमारे जीवन को ऐसे , जैसे गढ़े कोई सुनार या कलाकार शब्द नहीं हैं मेरे पास कि रूप दे सकूँ उनको साकार मजबूत इरादों वाली,गंभीर, सहनशील,गुणी ,सुशीला, सौम्या। जिसने हम भाई-बहनों के जीवन को गढ़कर आकार दिया । पिता के साथ मजबूती से हर वक्त उनको हमने देखा खड़ी । हमारी हर परेशानी में…