भारत का मजबूर मजदूर
भारत के मजबूर मजदूर “चढ़ रही थी धूप, गर्मियों के दिन, दिवा का तमतमाता रूप, उठी झुलसती हुई लू, रूई ज्यों जलती हुई भू, गर्द चिनगीं छा गयी, प्रायः हुई दुपहर, वह तोड़ती पत्थर..” आप सबमें से कुछ लोगों ने महाकवि निराला की यह कविता सुनी होगी और मेरा दावा है जब भी आपने सुनी…