प्रकृति की पुकार

प्रकृति की पुकार प्रकृति के रूप में मिला है हमें अनमोल उपहार पर ना रख पाये हम उसे मूलरूप में बरकरार कराह रही प्रकृति,लगा रही मानव से ये गुहार ना करो मुझे बंजर औ प्रदूषित,बंद करो अपने अत्याचार करती है जब वो प्राकृतिक आपदाओं के रूप में गुस्से का इज़हार मच जाता है चहुं ओर…

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प्रकृति हमारी अस्तित्व

प्रकृति हमारी अस्तित्व प्रकृति को प्यार दें स्नेह और दुलार दें, पूजा करें इसकी और तन मन भी वार दें! जिसने केवल आजतक देना ही जाना है, हम सभी मानव को संतान सी माना है!! फिर क्यूं हम भी पीछे हों अपने उदगार में, प्रकृति सी सुंदरता नहीं कहीं संसार में! उसके ही आंचल में…

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पीपल का पेड़

पीपल का पेड़ पीपल का पेड़, टीलेके उस पार खड़ा , वह पीपल का पेड़, जिसकी पत्तियां सुबह की रोशनी में, पारे सी झिलमिलाती हैं, नितांत अपना सा लगता है, जिसके सूखे, लरजते पत्तों में, नजाने कितनी यादें छिपी हैं, यह पेड़ हमारी आस्था व् विश्वास का प्रतीक ही नहीं, किसी बूढ़े, ज्ञानी, तपस्वी सा…

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आओ करें हम जल का दान

आओ करें हम जल का दान मूख से मरे ना कोई बिन भोजन तरसे ना कोई कृषको का श्वेत रक्त थोड़ा अल्प बहे बंजर बसुंधरा की प्यास बुझानेको आओ करें हम जल का दान!! निमुह नीरीह पशुओं और गैया को खग चीं चीं कुहु गौरैया को शस्य श्यामला धरती मैया को आओ करें हम जल…

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पर्यावरण दिवस

पर्यावरण दिवस सूखी नदियाँ,सूखी धरती सिसक उठी करती चित्कार, मैली कितनी अब होऊँगी अब सब मिलो, करो विचार। बहा दिया तुम नाली कीचड़ नदी पवित्र इस गंगा में अपने जन से रक्तपात कर रक्त बहाया दंगा में। जंगल काटे,काटे पौधे काट दिए तुम पर्वत को, अपने सुख में मानव तूँ ने बढ़ा दिया है नफरत…

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अम्फन के बाद की शाम

अम्फन के बाद की शाम आज शाम आकाश , उजले-नीले बादलों से आच्छादित। यूँ प्रतीत हो रहा जैसे मानो, प्रकृति अपने आलय के छत को, सजा रही अनेक गुब्बारों से। जो हवा के साथ गतियमान हैं, कभी बदलते आकार, रंग कभी। सजावट की गुणवत्ता नाप रहे हो जैसे , किसी गृहस्वामिनी के गृह -सज्जा के…

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शजर

शजर इक पिता सा छाँव करता था शजर कमनिगाही भी वो सहता था शजर । (शजर:वृक्ष कमनिगाही : उपेक्षा) ख़ुद की तो उसने कभी परवाह न की, दूसरों के सुख से सजता था शजर । उसकी बाहों में तसल्ली पाते थे, आसरा पंछी का बनता था शजर । नाच उठता था हवा की ताल पे,…

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ब्रह्मांड

ब्रह्मांड तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड ईश्वर मेरे लिऐ। रहने को धरती दी , नक्षत्रों से भरा आकाश। सूर्य, चन्द्र, नदी, वन ,उपवन वायु प्राण आधार तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड, ईश्वर मेरे लिऐ। सूर्य, चन्द्र समय से आते, ऋतुएं भी आती और जाती। फल फूल समय से खिलते, अन्न का भरा भंडार तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड,…

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