बिन पिता के
बिन पिता के स्वाभिमान, सुरक्षा, स्नेह, समर्पण वटवृक्ष सी छाया जिसने की अर्पण चरणों में जिसके सब कर्म धर्म समझाया जिसने जीवन का मर्म माँ के जीवन के, जो थे परिभाषा मिली उन्हीं से अदम्य जिजीविषा निष्ठा, कर्त्तव्य, पोषण, अनुशासन मूल मंत्र सा जिसने, फूंका अंतर्मन बिन तुम्हारे अधूरा हर संकल्प तुम बिन दूजा न…