बदला सावन

बदला सावन इस बार सावन, कुछ बदला-बदला है। ना उमंग है,ना तरंग है। लागे सब देखो वेरंग है। चारों ओर हाहाकार मचा है। मुँह खोल बिकराल खड़ा है इस बार सावन, कुछ बदला बदला है। बगियाँ फूलों से भरी, पर सूनी-सूनी हैं। ताल-तलैया तृप्त हुऐ, पर प्यासी-प्यासी हैं। इस बार सावन, कुछ बदला-बदला हैं। काले-काले…

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जनसंख्या: कितना उपादान, कितना व्यवधान

जनसंख्या: कितना उपादान, कितना व्यवधान जनसंख्या अर्थात जनशक्ति अर्थात सृष्टि का सबसे समर्थ ऊर्जा स्रोत, जो दूसरे ऊर्जा स्रोतों के बेहतर प्रयोग एवं बेहतर प्रयोग की दिशा में अन्वेषण में सक्षम होता है। जगत में जिसका भी अस्तित्व है- भौतिक/ अभौतिक, उन सबों का स्वामित्व है इसके पास। स्वामित्व है तो उत्तरदायित्व भी होना चाहिए।…

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बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब

बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब ग्यारह जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है।इसको मनाने का उद्देश्य बढ़ती जनसंख्या के प्रति ध्यान खींचना है और लोगों को जागरूक बनाना है।आज पूरे विश्व में हर सेकेण्ड में चार बच्चों का जन्म होता है जबकि मृत्यु दर इसकी आधी है।अगर जनसंख्या इसी दर से…

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“पसरते शहर ……….….. सिकुड़ते लोग” !!

  “पसरते शहर ……….….. सिकुड़ते लोग” !! सुविधाएं जब सनक और रुतबे का रुप ले लेती है, तो दबे पांव जिंदगी में घुन लगना शुरू हो जाता है। कभी शहर का मतलब सुख-सुविधाओं और बेहतर जीवन रहा होगा, पर आज शहरों की हालत देखते हुए ऐसा बिल्कुल नहीं नजर आता। अब हर कोई शहरों की…

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विश्‍व जनसंख्‍या दिवस : चुनौती और सोच

विश्‍व जनसंख्‍या दिवस : चुनौती और सोच साल 1987 से 11 जुलाई को प्रतिवर्ष विश्‍व जनसंख्‍या दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज विश्‍व की आबादी 7 खरब के ऊपर है और यह दिन शायद इसीलिए जरूरी है कि हम बढ़ती जनसंख्‍या से उत्‍पन्‍न चुनौतियों को समझें और अपने भविष्‍य के निर्णय लें। दृष्‍य…

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बचपन और बारिश

बचपन और बारिश याद आता है मुझको अपना गुज़रा ज़माना वो बारिश का मौसम और बचपन सुहाना स्कूल में रेनी डे होने पर मेरा खुश हो जाना रास्ते में फिर छप छप करते हुए आना छींटे पड़ने पर लोगों का बड़बड़ाना फिर साॅरी बोल मेरा जल्दी से भाग जाना घर आकर बारिश के पानी से…

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सावन की हरीतिमा

सावन की हरीतिमा सावन की हरीतिमा धानी ये धरती, कजरारी मेघा बारिश की छम छम हरी बिंदिया हरी साड़ी, मह- मह महकती हरी मेहंदी की धमधम!! झूलों की उठान गोरी की तान, बलखाती नदियां मेघों का घम घम!! बौराया मन भरमाया तन, बूंदों की सरगम हवाओं का सन -सन! ये मौसम ये सावन धुला धुला…

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जीते भारतवर्ष

जीते भारतवर्ष बेटे की शहादत पर गर्व के साथ-साथ… दुःख और दर्द के अथाह सागर में डूबा परिवार, बहुत आक्रोशित है हर हाल में लेना चाहता है बदला दुश्मन देश से…. लेकिन फ़िर भी उस परिवार का पिता नहीं चाहता है वो युद्ध वो नहीं चाहता किसी और पिता के कंधों को सहना पड़े जवान…

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‘सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ’

‘सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ’ सावन के मौसम में बड़े पैमाने पर वर्षा होती है जिसे मानसून कहा जाता है. “मानसून में तीन अलग-अलग कारक शामिल होते हैं – हवा, जमीन और समुद्र। मानसून का वर्णन प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। ऋग्वेद और सिलप्पाधीकरम, गाथासप्तशती , अर्थशास्त्र, मेघदूत, हर्षचरित्र जैसे…

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स्पेशल-वार्ड

स्पेशल-वार्ड “दीदी, माँ आएगी न….माँ मेरे पास क्यों नहीं आती?….. मुझे बहुत दर्द हो रहा है….. मुझे उसके बिना नींद नहीं आती.” पांच साल का नन्हा रोहित अस्पताल के स्पेशल-वार्ड के बेड नंबर ग्यारह पर पड़ा, आने-जाने वाली हर नर्स से यही सवाल करता, फिर सुबक-सुबक कर रोने लगता. अस्पताल के उस स्पेशल वार्ड की…

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