रानी की गुड़िया

रानी की गुड़िया “अम्मा मेरी गुड़िया गिर गई । अम्मा ट्रक रुकवाओ ना ।” नन्ही रानी बिलखती रही पर ट्रक चल चुका था । लॉक डाउन में पाँच दिन तक रानी अपनी अम्मा के कंधे पर बैठकर जयपुर से आगरा पहुंची थी। जब अम्मा थक जाती तो उसे पहिए वाले सूटकेस पर बिठा देती और…

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सुंदर हाथ

सुंदर हाथ “मांँ दे ना अपनी हंसुली, उसे तोड़ कर तुम्हारी बहू के हाथ की चुड़ियां बनवा दूंगा…” सुनील ने गुटखा थूकते हुए कहा। “ऐसा कैसे चलेगा, कब तक तू मुझसे पैसे मांग – मांग कर अपने शौक पूरे करता रहेगा..” मालती देवी ने खीझते हुए कहा। “क्या करूं मांँ, नौकरी तो मिलने से रही,…

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उम्मीदें इन्द्रधनुषी हुईं

उम्मीदें इन्द्रधनुषी हुईं एक एक अजीब सी सिरहन हुई ,और गुदगुदी भी, उस दिन शिंदे की तस्वीर देखी अखबारों में।गले में लालचारखाना गमछा,पाँव में बूढे चप्पल ,गोदी में , हरी साड़ी ब्लाउज में,चलने में लाचार बूढ़ी मौसी।बीवी,दो बच्चे और एक अंधी बहन का भार,फोटो के नीचे का दो लाइन वाला कैप्शन ढो रहा है।पीछे लम्बा…

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वर्तमान साहित्य में स्त्री उत्थान क्यों और कैसे ?

  वर्तमान साहित्य में स्त्री उत्थान क्यों और कैसे ? साहित्य के संदर्भ में चाहे अतीत हो या वर्तमान अथवा भविष्य। उत्पीड़ा की एक त्रासदी होती है। अतीत हमेशा भुक्तभोगी पीड़ाओं से गुज़रता है, तो वर्तमान आशादायी भविष्य की ओर संकेत करता है। पीड़ा और त्रासदी में कोई परिवर्तन नहीं होता, केवल समय गतिशील होता…

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ग्रामीण परिवेश और मुंशी प्रेमचंद

ग्रामीण परिवेश और मुंशी प्रेमचंद गाँव के सजीव, जीवंत और सामयिक चित्रण करने में कथा और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कोई सानी नहीं है। उस समय के परिवेश में गाँव एक अभिन्‍न अंग था व्यक्ति और समाज के जीवन में। कभी-कभी लगता है कि घड़ी को मुंशी प्रेमचंद के समय में मोड़ दिया जाए,…

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लौटा दो बचपन

लौटा दो बचपन डंगा डोली पकड़म पकड़ाई तू भाग कर छिप जा मैं आई। आओ कबड्डी और खो-खो खेलें नदी पहाड़ के भी मजे ले लें। पोसंपा भई पोसंपा डाकिए ने क्या किया। सौ रुपए की घड़ी चुराई अब तो जेल में जाना पड़ेगा। ऐसा कौन सा बच्चा जिसने “विष अमृत” न खेला होगा। लूडो…

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मैं हूँ ना

मै हूँ ना हाँ, जिंदगी सिर्फ यादों का खेल ही तो है। एक उम्र के बाद ऐसा लगने लगता है जैसे जीने के लिए अब ज्यादा कुछ बचा ही नहीं ।बस अतीत की लम्बी गहरी सुरंग जैसी राहों पर मन भटकता रहता है हर-पल, हरदम । तनु के जीवन में भी ऐसा ही कुछ धा।…

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युद्ध लड़ रही हैं लड़कियाँ

युद्ध लड़ रही हैं लड़कियाँ कविता संग्रह- युद्ध लड़ रही हैं लड़कियाँ कवि-वीरेंदर भाटिया प्रकाशक- संभव प्रकाशक, प्रेमचंद्र पुस्तकालय तितरम, कैथल-136027 (हरियाणा) प्रथम संस्करण- 2020 स्वतंत्र सदी में युद्ध लड़ रही स्त्रियाँ : पर-तंत्रता यह समय पुस्तक समीक्षा का एक ऐसा दौर है जहां हर समीक्षाकार व्यक्तिगत तौर पर ध्यान रखकर समीक्षा करने पर आमादा…

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महामारी में भी ओछी राजनीति

महामारी में भी ओछी राजनीति एक बड़े शायर का शेर है लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे, पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे। उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद, और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।। महाभारत काल में अखंड भारत के मुख्यत: 16 महाजनपदों कुरु, पंचाल, शूरसेन,…

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