परिणति

परिणति   अभी थोड़ी देर पहले जाकर घर का काम निपटा है। चलो अच्छा हुआ महरी भी आकर चली गई। चैन की सांस ली मैंने।अब दो घंटों की छुट्टी। रोहित चार बजे तक आएगा और उसके पापा आठ बजे तक।अपने कमरे में आकर मैंने एक पत्रिका उठाई और पेज पलटने लगी।तभी मोबाइल बज उठा।किसका हो…

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न्याय

न्याय शहर के पाॅश इलाके में बड़ी कोठी, गेट पर खड़े चौकीदार,घर में नौकर- चाकर, शान और शौकत, सजा हुआ बगीचा, किसी चीज की भी कमी नहीं, होगी भी क्यों ना, यहां के डी.एम का जो बंगला था।दरवाजे पर बड़ा सा नेम प्लेट लगा था सुनहरे तख्त पर काले अक्षरों में लिखा था “अनामिका चौधरी”…

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सेवानिवृत्त

सेवानिवृत्त   “कनिका एक गिलास पानी लाना। आज बहुत थक गया हूँ ।” सोफ़े पर बैग रखते हुए युग ने अपनी पत्नी से कहा । “आप बैठिए । अभी लाई ।” कनिका ने युग से कहा । कनिका ने ट्रे में रखे पानी के गिलास और सोनपापड़ी को आगे बढ़ाते हुए युग से कहा, “…

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और भी है राहें

और भी है राहें आज सुबह नाश्ता करते हुए शालिनी माथुर सोच रही थी कि रेशमा अभी तक नहीं आई। पता नहीं क्या बात है?सुबह के नौ बज गए है।वो तो आठ बजे ही चली आती है।नहा कर मैंने नाश्ता भी कर लिया, पर रेशमा न जाने अभी तक क्यों नहीं आई ।दस बजे रेशमा…

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सिंदूर की रेखा

सिंदूर की रेखा   आज चंद्रमुखी 65 वर्षीय महिला, अपने किरायेदार विक्की बाबू के साथ बैंक जा रही थी, वर्ष में एक बार लाइफ सर्टिफिकेट के लिए जरूरी होता है जाना।तिमंजले घर मे चार किरायेदारों के परिवार के साथ अकेली ही जीवन बीता रही हैं।   सुबह 11 बजे बैंक पहुँच गयी। पूछताछ करने के…

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गैंग्रीन

गैंग्रीन सौम्या और केशवी – कॉलेज की दो घनिष्ट सहेलियां विवाह के करीब बीस वर्षों पश्चात एक दूसरे से टकरायीं । गले मिलीं, बड़ी खुश हुईं , अलग अलग शहरों में रहने की वजह से इतने वर्षों में मिलना ही नहीं हुआ । आज इतने वर्षों बाद अचानक मॉल में टकरा गयीं..दोनों ही चालीस पार…

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एक पिता का संघर्ष

एक पिता का संघर्ष “बड़े भाग्य से बेटियाँ मिलती है।” ये कहते हुए माखनलाल जी अपनी पत्नी कमला के करीब बैठ गए। कमला :- “वो तो ठीक है मुझे खुद पहली सन्तान बेटी चाहिए लेकिन सासू माँ और ससुर जी वो तो लड़की का जन्म लेना बुरा समझते हैं।” माखनलाल :- “अरे चिंता ना करो…

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खानदान 

खानदान  आनन्द और ख़ुशी जीवन का अनमोल खजाना है .यदि आनन्द और खुशी की यादों का गुलदस्ते मिल जाये तो अनेक फूलों की खुशबू आती है .जब जी चाहे उस गुलदस्ते का एक फूल निकालकर अपने को उस सुगंध में डुबो दें . ऐसा ही आनन्द और ख़ुशी का गुलदस्ता मेरी और सुनन्दा की दोस्ती…

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दस्तखत

दस्तखत   शाम के चार बज रहे थे। इस वक्त मेरे घर का बरामदा बच्चों से गुलजार रहता है। मैं बरामदें में आई तो देखी बच्चे उधम मचा रहे थे। दरी उन्होंने बिछा ली थी। मैं कुर्सी पर बैठ गयी और उन्हें शांत रहने के लिए कहा। रेखा की शरारतें जारी थीं। रेखा सबसे ज्यादा…

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उजाले की ओर

उजाले की ओर शाम गहरा रही थी, एवं धूल भरी आंधियों के आसार नजर आ रहे थे। मैं तेज कदमों से भाग रही थी। बूंदा-बांदी शुरु हो चुकी थी। ओह! घर पहुँच तो जाऊँ बदरा तुम बरसते रहना। यों मौसम बड़ा ही सुहाना हो चला था। प्रचंड गर्मी से राहत तो मिली। सहसा सड़क किनारे…

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