वन मोर लॉकडाउन
युद्ध और महामारी, अकाल और भुखमरी ने हमें कई बार ऐसे स्तर पर ला खड़ा किया है जहां आकर इसके आगे जीवन का मतलब ही परिवर्तित हो जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और ऐसे समय में उसकी सामाजिकता ही विमुख हो जाती है। उसके सारे क्रिया कलाप एक एक कर स्थगित होते चले जाते हैं। तब हमें ज्ञात होता है कि ये दूरियां ही हमें एहसास कराती हैं कि नजदिकियां कितनी ख़ास होती हैं। धीरे धीरे सब संभल जाएगा इसी आत्मबल के साथ हमें मिलकर सोचना है कि सामुदायिक संक्रमण से हर संभव बचा जाए।
लॉकडाउन वन, लॉकडाउन टू, और अब लॉकडाउन थ्री मतलब वन मोर लॉकडाउन। हम होंगे कामयाब इसी मंशा से हमें आगे बढ़ना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में समय की यही मांग है। यह सच है कि हम हमेशा के लिए लॉकडाउन में नहीं रह सकते, किसी भी देश की सरकार भी अपनी हर वर्ग की जनता को लॉकडाउन में नहीं रख सकती। जनवरी के महीने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का अपनी जनता से आह्वान था कि “जब हर भारतवासी एक क़दम चलता है तो हमारा भारतवर्ष 130 करोड़ क़दम आगे बढ़ता है। इसलिए चरैवेति चरैवेति, चलते रहो, चलते रहो का मंत्र लिए अपने प्रयास करते रहें।”
बेशक हमारी सड़कें हमारी गलियां सुनसान हो गईं हैं, लेकिन देश वीरान नहीं हुआ है। हर घर अपने आंगन में गुलज़ार है। देश के लोग सतर्क हैं और सुरक्षित रहने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं। अपनी इस युद्ध बेला में वर्तमान समय हमारे आपके जैसा कर्मयोद्धा मांग रहा है, तभी हमारा आने वाला समय गुनगुनाएगा चलो चलें पूजन करने को मंगल बेला आई। मिली है जो सामूहिक क़ैद उसको आजादी से जीने का हमारा प्रयास ही हमें तनावमुक्त रख सकता है। अपने बड़े बुजुर्गो की देखभाल और बच्चों के साथ रहकर समय का सदुपयोग करना ही हमारे लिए कारगर होगा जिससे हम चिंतामुक्त भी हो सकते हैं। आर्थिक परिस्थितियां जरूर विषम हो जाएंगी पर, नई सुबह फिर आएगी यही उम्मीद हमें सकारात्मक और स्वस्थ रख सकने में मददगार साबित हो सकती है। इस परेशानी की घड़ी में हमारी इच्छाशक्ति ही हमें अंदरूनी मजबूती देगी।
अब हम प्रशिक्षित हो गए हैं। हम सबको अपनी तैयारी खुद ही करनी पड़ेगी। घर में लॉकडाउन होकर जितने भी सुरक्षात्मक उपाय हमने किए, जैसे सैनिटेशन, आइसोलेशन, बाहर निकलने पर मास्क और ग्लब्स को पहना, घरों में रहकर न्यूट्रिटीव खाना खाने पर ध्यान दिया, अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक रहे। विशेष परिस्थिति में क्वॉरन्टीन् भी हुए। अब घर से बाहर निकलने पर ऐसी ही जीवन शैली को अपनाते हुए हमें अपना अपना काम करना होगा। यही हमारा सुरक्षा कवच होगा और हम सभी कोरोना वॉरियर्स। हमें अपने संगठित प्रयासों से मानवता को इस कठिन चुनौती से निपटने में सहयोग करना ही होगा। “कोरोना ने दुनिया कितनी बदल दी न, क्या अब हमें ऐसे ही दूरियों में रहने की आदत डाल लेनी होगी? ऐसे सवालों के जवाब हां में ही मिलेंगे। दो गज की दूरी हमारी मजबूरी नहीं हमारी मजबूती होगी। आने वाले दिनों में सेल्फ डिस्टेंसिंग का समीकरण हमें आगे बढाएगा, क्योंकि कोरोना आज भी मौजूद है, कल भी हमारे इर्द गिर्द ही रहेगा। हमारी बुद्धिमत्ता ही कोरोना की कड़ी को तोड़ पाएगी।
फिलहाल हमें यही समझना होगा कि लॉकडाउन को बढ़ाया जाना अपेक्षित है और कुछ कुछ जरूरी भी। कहना ग़लत न होगा कि कोविड 19 को हराने के लिए हम भले ही सामाजिक दूरी बना रहे हैं, लेकिन संवेदनाओं की पृष्ठभूमि में हम सवा सौ करोड़ देशवासी एक दूसरे का हाथ पकड़े चट्टान बन कर खड़े हैं। और क्या यह भी खूबसूरत सच नहीं है कि हमने छह सप्ताह से अधिक सफलता पूर्वक लॉकडाउन कर लिया। थोड़ी बहुत परेशानियों के बावजूद यह घटना अपने आप में अभूतपूर्व ही कही जाएगी। एकता के सूत्र में बंधे देशवासियों ने इसे अपने अपने योगदान से इसे सफल बनाया है। हम सभी एक दूसरे के लिए बधाई के पात्र हैं।
सुजाता प्रसाद
साहित्यकार एवं शिक्षिका
नई दिल्ली