सौलह कलाओं वाला चन्द्रमा
शरद चांदनी बरसी
अंजुरी भर कर पी लो
ऊंघ रहे हैँ तारे
सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते
अनझिप क्षणों में
तुम भी जी लो
@अज्ञेय
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजगरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है । कहा जाता है इस दिन है चंद्रमा धरती पर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन प्रेमावतार भगवान श्रीकृष्ण, धन की देवी मां लक्ष्मी और सोलह कलाओं वाले चंद्रमा की उपासना से अलग-अलग वरदान प्राप्त किए जाते हैं। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा और साफ आसमान मानसून के पूरी तरह चते जाने का प्रतीक है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है। इसे ‘कोजागर पूर्णिमा’ भे कहा जाता है। कहते है इस दिन धन की देवी लक्ष्मी रात के समय आकाश में विचरण करते हुए कहती हैं, ‘को जाग्रतिं, संस्कृत में को जाग्रति का मतलब है कि ‘कौन जगा हुआ है’ माना जाता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन रात में जगा होता है मां लक्ष्मी उन्हें उपहार देती हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने ऐसी बांसुरी बजायी कि उसकी जादुई ध्वनि से सम्मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आई थी। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्ण बनाया। पूरी रात कृष्ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे ‘महारास’ कहा जाता है। मान्यता है कि कुश ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया। ब्रह्म की एक रात का मतलब मनुष्य की करोड़ों रातों के बराबर होता है। यही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है।
हिन्दू धर्म में मनुष्य के एक-एक गुण को किसी न किसी कला से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि 16 कलाओं वाला पुरुष ही सर्वोत्तम पुरुष है। कहा जाता है कि श्री हरि विष्णु के अक्तार भावान श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था। राम 12 कलाओं के ज्ञाता थे तो भावान श्रीकृण सभी 16 कलाओं के ज्ञाता हैं। चंद्रमा की सोलह कलाएं होती हैं उपनिषदों अनुसार 16 कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्वरतुल्य होता है।
हमने सुन रखा है कि कुमति, सुमति, विक्षित यूढ़, क्षित, मूच्छित, जाग्रत, चैतन्य, अचेत अदि ऐसे शब्दों को जिनका संबंध हमारे मन और मस्तिष्क से होता है, जो व्यक्ति मन और मस्तिक से अलग रहकर बोध करने लगता है वही 16 कलाओं में गति कर सकता है। चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाए हैं उसी तरह मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसों जात:। जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। चंद्र की सोलह अवस्थाओं से 16 कला का चलन हुआ।
आप सभी को “शरद पुर्णिमा” की कोमलता, शीतलता, उदारता, प्रेमलता, शुभता, समृद्धि, स्वास्थ्यवर्धन की भावपूर्ण हार्दिक शुभकामनाएं
डॉ नीरज कृष्ण
वरिष्ठ साहित्यकार
पटना, बिहार