नारी बिन संसार

नारी बिन संसार

गर जग में नारी ना होती,
चैन से सारी दुनिया सोती,
ना बाजार, न दफ़्तर होते,
लोग सिर्फ़ पेड़ों पर सोते,
माल ना होटल कुछ न होते,
घास-पूस के जंगल होते,
ट्रेन न मोटर, बोट न रिक्शा,
स्वयं लोग करते निज रक्षा,
ना मकान, ना फ़्लैट न खोली,
करवाचौथ, न ईद, न होली,
लंच न होते, डिनर न होते,
कंद, मूल के भोजन होते।
ना मैगी, न चाइनीज़ होता,
ना खाना मुगलाई होता,
कितना बढ़िया सिस्टम होता,
मर्द रात-दिन चैन से सोता,
क्लोनिंग करके बच्चे होते,
अपने दम पर बड़े वो होते,
ना स्कूल, ना जाब की चिंता,
ना कोई फटे हुओं को सिलता,
स्वर्ग समान धरा ये होती,
मस्त-मस्त सब पब्लिक होती,
मां की डांट न बहन के झगड़े,
ना कोई प्रापर्टी के रगड़े,
खुला-खुला सा अंबर होता,
’सरन घई’ इतना खुश होता,
कितना सुंदर सपना होता,
सुबह जागता, रात को सोता,
नारी बिन संसार जो होता।
बिन नारी संसार जो होता।

सरन घई,
संस्थापक-अध्यक्ष,
विश्व हिंदी संस्थान,
कनाडा

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