है दुर्गा आनेवाली
है दुर्गा आनेवाली
काश फूलों से सज गई धरती
सुगंध महकाए शेफाली
है दुर्गा आनेवाली।
न है मंडप की शोभा
न है रोशनी की लड़ी
न है घूमने फिरने की बारी
कब थमेगी यह महामारी ?
किसान का आत्महनन है जारी
उसपर हल का बोझ हुआ भारी
ऊपर से कर्ज की लाचारी
कैसे निभाएं दुनियादारी ?
बेटियों की अस्मिता है लूटती
उपहास का पात्र बनी है नारी
नग्न होते इस समाज की
कौन लेे जिम्मेदारी ?
अमीर चांद पर जमी खरीदें
गरीब कृष्ण विवर में खोए
देश की आधी जनता क्यों
तारों के चादर ओढ़े सोए ?
बनाकर अपनो में भेदभाव
जात पात वर्ण की बेड़ी
संतान आपस में लड़ रहें
मां ये कैसी लीला तेरी ?
जग उत्सव मुखरित सारी
लोग खुशियों से झुमे मतवारी
आसुरी शक्तियों का नाश कर
चेतना कैसे जगे हमारी?
मां दुर्गा आनेवाली
पर हृदय है खाली खाली
उम्मीद लगाए खड़े हैं भक्त
पधारो शेरावाली।
पामेला घोष दत्ता
जमशेदपुर