मैं बोल रही हूँ
शाम के तीन बज चुके थे। सेमिनार खत्म होने में एक घंटा और था। स्मृति सामने बैठकर सुन रही थी। कमरे में अच्छी खासी भीड़ थी। ज्यादातर अभी अभी कॉलेज से निकले युवा थे। इस सेमिनार में डॉ.. त्यागी, मधुसूदन गुलाटी भाई अग्रवाल और न जाने कितने नामी गिरामी लोग थे। सबने अच्छा नाम कमाया था अपने क्षेत्र में। किसी की फैक्ट्री थी, कोई आई टी में था, कोई विदेश से लौट आया था, अपने देश में कुछ करने के लिए। कुल मिलाकर कमरे में एक बड़ी उर्जा थी। स्मृति बड़ी तन्मयता से सुन रही थी। डॉ. त्यागी अब बोल रहे थे। डॉ. त्यागी पिछले दस सालों में एक बड़ी पहचान वाले उद्योगपति बन गए थे। आई टी में उनकी एक पैठ थी। एक ई- कामर्स का प्लेटफार्म भी था। आई.टी. में इंजीनियरिंग करने के बाद स्मृति ऐसी ही कम्पनी में काम करना चाहती थी। कुछ ऐसा जहां काम करने की स्वतंत्रता हो और नया भी कर सके। बाईस – पच्चीस की उम्र ही ऐसी होती है। लगता है, सब कुछ मुठ्ठी में है और सितारे भी पैरों के नीचे हैं।
चाय का प्याला रखते हुए स्मृति को लगा, उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा है। मुड़कर देखा मि. त्यागी थे। स्मृति उनको सामने देखकर बिल्कुल चौंक गई। “आप से बात कर सकता हूँ’’ इतनी भीड़ में उन्होंने उसे कैसे खोज निकाला। ये तो बाद में पता चला था कि मि. त्यागी इस हुनर में बहुत माहिर थे। उनकी खोजी आंखें अपना शिकार ढूँढ लेती थीं।
उस दिन स्मृति को कुछ अटपटा नहीं लगा। चाय खत्म होते ही मि. त्यागी ने अपना कार्ड पकड़ा दिया। आकर मिलो, तुम्हारी योग्यता के अनुसार काम देखते हैं। स्मृति बिल्कुल खुश हो गई। बिना कुछ किए, इतना अच्छा ऑफर मिल रहा था। इस बार कॉलेज में प्लेसमेंट थोड़ा कम था। पहले राउन्ड में थोड़े ही लोग निकल पाए थे। ये अच्छा अवसर स्मृति गँवाना नहीं चाहती थी।
अगले दो दिन इतवार – शनिवार थे तो स्मृति ने सोमवार को जाने का मन बनाया। अच्छे से तैयार हुई। ब्लैक बिजनेस सूट में और खुले बाल में वो बहुत जँच रही थी। उसने अपने को आइने में निहारा – हां न कम, न ज्यादा। बिल्कुल सही लग रही थी। आफिस में पहुँच कर उसने बायोडॉ.टा और मि. त्यागी का बिजनेस कार्ड दिया। करीब आधे घंटे के बाद त्यागी ने उसे अंदर बुलाया। सब कुछ सामान्य लग रहा था लेकिन उनके हाथ मिलाने का अंदाज कुछ ज्यादा ही बेतकल्लुफ था। एक औरत पहचान लेती है अपना अच्छा और बुरा लेकिन कभी कभी देर कर देती है उसे समझने में। कमरे में एक ही सोफा था। उसे बैठने के लिए कहा और फिर वो सामने बैठकर बातें करने लगे। इधर उधर की बातें। शायद सफल व्यक्ति अपने बारे में ज्यादा बोलते हैं। वह जाल बिछा रहा था, ऐसा स्मृति ने नहीं सोचा। बहरहाल, कमरे से निकलती हुई स्मृति बहुत खुश थी। नौकरी मिल गई थी और अगले दिन से ज्वाइन करना था –बिजनेस डेव्लपमेंट टीम में।
कहने को तो प्रशांत की टीम में उसे शामिल किया गया लेकिन ये टीम मि. त्यागी की निगरानी में थी। तीन महीने बीत गए। कुछ ऐसा वैसा नहीं हुआ। उससे पच्चीस-तीस साल बड़े मिस्टर त्यागी शायद ठीक ठाक ही थे। उस दिन एक लम्बी मीटिंग चली। शाम के आठ बज गए। त्यागी ने कहा कि वो कुछ बातें करना चाहते हैं, कमरे में मिलो। स्मृति को कुछ भी अटपटा नहीं लगा। कम्पनी का मालिक और सी.ई.ओ., अगर बुलाए तो जाना पड़ेगा। कमरे में एक गोल टेबल था और चारों तरफ चार कुर्सियां। स्मृति को बैठने का इशारा कर, त्यागी ने कुर्सी खींच ली फिर अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया। स्मृति को थोड़ा अजीब लगा लेकिन वह उनकी बातों पर ध्यान देने लगी। लेकिन वो कोई काम की बातें नहीं कर रहे थे बल्कि उसे अपने घर आने का निमंत्रण दे रहे थे। स्मृति को अचानक अपने लड़की होने पर ग्लानि हो गई। क्यों सहना है ये सब? क्या एक प्रोफेशनल रिश्ते में इनकी गुंजाइश है। उसको लगा कि कहीं उसकी गलती है क्या? क्या कुछ ज्यादा तो बेतकल्लुफ नहीं हुई। लड़की होना सजा है क्या। ऐसा फिर दो तीन बार हुआ।
एक दिन तीन हफ्ते की तीन मुलाकातों से एक डर समा गया स्मृति के अंदर। उन क्षणों में तेजी से बाहर निकलते हुए स्मृति ने निर्णय ले लिया कि ये सिलसिला आगे बढ़ने से पहले ही खत्म करना है। अगले दिन उसने अपने हैड को बताया। पागल हो, दो तीन बार की बात से क्या होगा। मुकर जाएगा। कम्पनी में केस देने के लिए बार बार ऐसा हो तो कुछ किया जा सकता है। कुछ ने कहा- आगे बढ़ो। हमें इसको रोकना होगा और कुछ चुप रहीं। ना हां, ना। चुप्पी भी एक ढाल है।
स्मृति को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। त्यागी के एस.एम.एस और दो तीन मैसेज आ गए थे। वो तो अपने जाल में खुद आ रहा था। शायद ये मर्दानगी का दंभ था। गीता ने फिर समझाया ऐसी घटनाएं आम बात हैं। कहां – कहां शिकायत करती फिरोगी। स्मृति ने सोचा कि क्या त्यागी को पता है कि ये व्यवहार गलत है। स्मृति ने सभी ईमेल, मैसेज की कॉपी बनाकर एक शिकायत बनाई और उसमें लिखा – आप एक अक्लमंद इंसान के साथ काम करना चाहते हैं लेकिन उम्र की आड़ में त्यागी का व्यवहार ठीक नहीं है। उसकी ये शिकायत अब एच आर और महिला आयोग को पहुँच गई होगी।
हां, उसे यह नौकरी छोड़नी पड़ी। लेकिन आवाज उठाने के लिए यह बहुत छोटी कीमत थी।
✍️ डॉ. अमिता प्रसाद