मन के मोड़
कहते हैं राह तो सीधी होती है, मोड़ तो सारे मन के हैं। पहाड़ों के मोड़ों पर लिखा होता है कि मोड़ तीखे हैं, हार्न बजाएँ। जिंदगी में शायद कोई नहीं बताता कि आगे मोड़ है, यहाँ से निकलना मुश्किल होगा और आगे ना बढ़ें।
मालती खिड़की से बाहर देखती हुई सोच रही थी। अलमोड़ा में तीन दिन रहने के बाद मालती मेरठ वापस जा रही थी। सोच रही थी कि काश उस मोड़ पर वह अम्मा की बात मान लेती। तब लगा था कि जिंदगी बड़ी आसान है और वो ड्राईविंग सीट पर है। पहला मोड तो पापा के अचानक जाने के बाद आया। शून्यता आ गई थी जीवन में। लगा कोई सिर पर हाथ रखने वाला नहीं था। तब एम. ए. में पढ़ती हुई उसकी मुलाकात प्रो. कृष्णा से हुई। प्रो. कृष्णा हम उम्र दिखते थे लेकिन पूरे दस साल बड़े थे। क्लास में जाने कैसे, उन्होंने उसको चुना एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए। फिर कैसे पाँच सालों में वह मालती से मालती कृष्णा बन गई ये पता ही नहीं चला। मन के मोड़ कभी-कभी खतरनाक होते हैं। आगे कुछ दिखा ही नहीं। यहाँ कुछ गलत नहीं था, लेकिन प्रो. कृष्णा शादी शुदा थे। ये उसे भी पता चल गया था। दोस्तों और अम्मा ने रोका भी। अम्मा से लड़ाई हुई, बोलचाल बंद हुई। उसे लगा, कुछ नई अनहोनी कर रही है। लीक से हटकर और डटी रही अपने निर्णय पर।
मालती उस मोड़ से फिर वापस नहीं आ पाई।कभी-कभी आदमी बिन बात के बहादुर हो जाता है। एक बार सोच लिया था तो आगे ही जाना था। तो वो पहुँच गई मेरठ। प्रो. कृष्ण ने उसे एक छोटी नौकरी दिला दी। एक छोटा घर भी ले लिया। कोने तीन मंजिली इमारत पर दो कमरों का फ्लैट। जिंदगी का तीसरा मोड़ ये था। साथ होते हुए वह अकेली ही थी। कृष्णा जी तो साथ नहीं रहते थे। कभी-कभी आते थे। फिर धूमना फिरना, बातें, झगड़े लड़ाई। पिछले कुछ दिनों से मालती को राजा-रानी का ये खेल बुरा लगने लगा था। थकने लगी थी वो। अलमोड़ा में मिले थे रजत। ऐसी ही बातें होने लगी खाने की टेबल पर। अकेली आईं हैं, उसकी माँग का सिंदूर देखकर पूछा होगा। औरत क्या अकेले नहीं घूम सकती है। अकेली औरत को देखकर लोग सकपकाने क्यों लगते हैं? कृष्णा को आना था। बेटा भी साथ आने की जिद कर रहा था तो उन्होंने प्रोग्राम बदल दिया। उस घर में सब उसके लिए कितना बुरा सोचते होंगे। कभी लगता था, उनसे मिलकर आऊँ और बताऊँ कि आपके अधिकार को छीनना नहीं, अपने अधिकार को बचाना चाहती हूँ। कृष्णा जी को एक बार अल्टीमेटम दिया था उसने। चाहे यहाँ, चाहे वहाँ।बेटी की पढ़ाई पूरी होने दो, फिर सोचेंगे। और फिर मालती जीवन के इस मोड़ पर अकेली हो गई।
रजत के साथ टैक्सी शेयर करते हुए उसने ज्यादा बात नहीं की अपने बारे में। नम्बर शेयर भी नहीं करना चाहती थी, बाद में कर लिया। क्या हानि है? कुछ समय बाद रजत का फोन आया। उसने उठाया नहीं। उसे लगा कि किसी दूसरे मोड़ के लिए वह अभी तैयार नहीं थी। कृष्णा जी को क्या रजत से मिलने के बारे में बताना चाहिए? जब कुछ हुआ ही नहीं तो क्या बात करनी है। लेकिन रजत का दुबारा फोन आया। रमा को बताया। रमा पुरानी सहेली थी। कृष्णा के साथ रिश्ते को उसने कभी पसंद नहीं किया। पढ़ी लिखी होकर, अनपढ़ का काम किया है तुमने। कोई राजा जी तो हैं नहीं, कि अपना हरम बना लें। रमा अम्मा का ही साथ देती है।
तीन महीने पहले कृष्णा जी के घर को उसने छोड़ दिया है। कहाँ जा रही है वो भी उनको नहीं बताया। फोन नम्बर भी बदल दिया है। मेरठ से सीधा वह केरल आ गई है। एक ऑफिस में नौकरी ले ली है। कोई नहीं जानता उसे यहाँ। जीवन के इस अप्रत्याशित मोड़ पर उसने एक जुआ खेला है। कृष्णा जी के लिए कोई अफसोस नहीं हुआ उसको। ये मोड़ उसको शायद किसी सुंदर मंजिल तक ले जाए।
-डॉ. अमिता प्रसाद