आह्वान
नारी
अबला नहीं ,
तुम हो सबल।
शक्ति से भरपूर।
सृजन करती हो,
सृष्टि करती हो,
रचनाकार हो इस धरती की।
जीवन नहीं है एक अंतहीन अंधेरी सुरंग,
उसे तुम आलोकित करो
अंत:तिमिर का नाश करो।
अपने अंदर का विश्वास जगाओ।
रश्मि किरणों का अहसास करो,
विधु की शीतलता का भी तुम विस्तार करो।
माँ
शक्ति हो,
भक्ति हो,
कोमल, मृदु हो।
ममतामयी,
श्रृंगार
सौन्दर्य
कला से परिपूर्ण ।
अपनी ज्ञान,
बल, शक्ति
करो विकसित।
न दुबक कर,
न सिसक कर,
करो आवाज़ बुलंद ,
दुख तकलीफ़ों को व्यक्त करो।
करो हास परिहास,
दिल खोलकर अपनी।
निकट न आने दो अपने,
उपेक्षा और उपहास।
स्वंय को और पहचानो
अन्य किसी को न बनने दो निर्णायक ।
आधी पृथ्वी ,
आधा आकाश तुम्हारा है।
अहंकार, अभिमान ,त्याग ,
बनो स्वाभिमानी और स्वावलंबी ।
पंख लगाओ,
उड़ना सीखो,
अवनि
आकाश
तुम्हारा है।
अपने ज्ञान शक्ति से
जीवन दीप जलाओ
जगमग दीप जलाओ।
अनिता सिन्हा
साहित्यकार
अहमदाबाद, गुजरात