नंदा पांडेय की कविताएं
1.तुम बन गए बुद्ध !
तुम जानते थे
कि
शिव ! बनना आसान नहीं है
पर, तुम्हें बनना था शिव!
पीना था विष !
अनन्त गुहाओं से घिरे
चुप्पी के घने दौर में
बात-बात पर स्याही उगलती तुम्हारी कलम
जब लिखना चाहती थी मजहबी दस्तावेज !
तब तुम
अक्षरों और शब्दों के जंजाल से निकल कर
हो गए थे लीन समाधि में
क्योंकि
तुम्हें बनना था शिव!
पीना था विष
चिथड़े हो गए वक़्त को
बेवजह सिलने की जुगत में
निकाल कर जिस्म से अपनी आत्मा को
लादकर कांधे पर
तुम्हें करनी थी यात्रा
महाप्रयाण ! की
क्योंकि
तुम्हें बनना था शिव!
पीना था विष
जिस लोक-परलोक को
सुधारने के लिए तुम
छोड़कर अमृत!
पी गए थे विष
उसी लोक को देखकर
आज,
तुम्हारी दृष्टि में
ऐसी वेदना! झलक रही है
जैसे पशु-बली को देखकर
गौतम बुद्ध की दृष्टि में झलकती थी…!
हां!
तुम्हें बनना था
शिव!
तुम बन गए बुद्ध
2.प्रगाढ़ चुम्बन
उस प्रगाढ़ चुम्बन के बाद
जब तुमने कहा
खोल दो सब गिरहों को
खुल गया उसके जीवन का हर बंध तुम्हारे नाम से
महुआ चुनती
उपले थापती
उस लड़की को
नहीं पता था
प्रगाढ़ चुम्बन का मतलब
उसे तो बस इतना पता था
कि प्रेम का मतलब होता है
आत्मा के दरवाजे को खोल देना
और उसने
थरथराते हुए अपने मन की
हर गिरहों को खोल दिया तुम्हारे सामने
शर्तहीन समर्पण की चाह में तुम घुसपैठिये की तरह
सेंध लगाकर घुस आये थे
उसकी आत्मा की बाड़ में
और काले नाग की तरह
कुंडली मारकर बैठ गए उसकी देह पर
उसकी देह के मीठे स्वाद को
किश्तों में चख कर
पलायन कर गए तुम
और
छोड़ कर गए अपने खारेपन को उसकी कोख में
कुएं से मित्रता निभाने वाली
उस लड़की को
नहीं पता था कि समंदर से मिलने के बाद
उसकी देह का मीठा स्वाद बदल जायेगा खारेपन में
आज उसी खारेपन को
अपनी पीठ पर बांध कर
सींच रही है अपनी छाती के अमृत से…।
नंदा पांडेय
राँची , भारत