डॉ रांगेय राघव

डॉ रांगेय राघव

बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न डॉ रांगेय राघव का जन्म,आगरा में ,१७ जनवरी,१९२३ को हुआ।शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई।पिता संस्कृत,तमिल,फ़ारसी और अंग्रेज़ी के विद्वान थे।मॉं कनकवल्ली बडी सरल, उदार व दयालु महिला थीं।वे हिंदी जानती थीं,तमिल,ब्रजभाषा बहुत सुंदर बोलती थीं।
इनके पूर्वजों को धर्म व भारतीय संस्कृति में गहरी आस्था थी।वे बाइबिल और क़ुरान भी पढ़ते थे।

डॉ रांगेय राघव चाय व सिगरेट के बहुत शौक़ीन थे।मित्र मंडलीमें साहित्यिक चर्चा ख़ूब होती थी।इनके मित्र थे-गोविन्द रजनीश,गोपीचंद गुप्त,रमेश आर्य,कुन्दनलाल उप्रैति:,विशनकपूर, प्रो प्रकाश चंदगुप्त, रामावशिष्ठ,मथुरा प्रसाद अग्रवाल,रामगोपालसिंह चौहान,डॉ नत्थन सिंह, विपिन बिहारी ठाकुर ,सियाराम शरण प्रसादआदि।

चित्रकारी का भी इन्हें शौक़ था ।ये चार -चार किताबें एक साथ लिखते थे।एक बार एक महीने तक रोज़ एक कहानी लिखते गए।राम कृष्ण शर्मा ने लिखा है -‘कि जैसे वेदव्यासजी बोलते और गणेशजी लिखते थे वैसेही ये द्रुत गति से लिखते थे ।चटाई पर पेट के बल लेटकर लिखते थे।गाँव वैर (राजस्थान) की जलती दोपहरी में अपने पैर के अंगूठे में पंखे की डोरी बाँध लेते ,तब एक तरफ पैर चलता,उधर काग़ज़ पर हाथ चलता रहता था।

असह्य गर्मी में-१०,१२,१५,१८ घंटे लिखते थे।२०० पन्ने का उपन्यास केवल २ दिन में लिख लेते थे।’राई और पर्वत ‘उपन्यास तीन दिनों में लिखा।५००पृष्ठों का आँचलिक उपन्यास-‘कब तक पुकारूँ ‘एक महीने में लिख डाला।एक दिन में हिन्दी में तीस ,चालीस, साठ ही नहीं ,अस्सी पृष्ठ लिख लेते थे।लिखना ही जीवन का उद्देश्य था ।

अपने जीवन काल ,३९ वर्ष की अल्पआयु में १३९ ग्रंथ लिखकर कीर्तिमान स्थापित किया।३५ उपन्यास,१३ नाटक,६ आलोचना ,५ कहानी संग्रह,६ काव्य ग्रंथ इनके प्रकाशित हो चुकेहैं।इन्होंने शेक्सपीयर के१५ नाटकों का तथा संस्कृत एवं विदेशी भाषा के कई ग्रंथों काअनुवाद भी किया है।हेमलेट,आथेलो,वेनिस का सौदागर,मौकबेथ,रोमियो जूलियट,जूलियस सीज़र आदि।प्राचीन विश्व कहानियों में – प्राचीन रोमन,ट्यूटन,
यूनानी,प्राचीन ब्राह्मण कहानियाँ भी हैं।हिन्दी साहित्य भवन के इस प्रहरी ने लिखा है -‘मैं हिन्दी के लिये ही जीता रहा हूँ ।मैं हिन्दी को ही अपना जीवन न्योछावर कर चुका हूँ,इसे पूर्ण करना ही मेरा लक्ष्य है।’

बंगाल के अकाल पर १९४३ में ‘तूफ़ानों के बीच’ रिपोर्ताज विधा में ‘विषादमठ’ लिखकर बंगाल की व्यथा गाथा की टीस लिखी ,जो उस समय ‘हंस पत्रिका’ में छपी थी।मुर्दों का टीला ‘ऐतिहासिक उपन्यास में ईसा से ३,५०० वर्ष पूर्व के भारत का चित्रण है।जो सन् १९४८ ई में प्रकाशित हुई।’अंधेरे के जुगनू’में महाभारत काल से भी पहले का चित्रण है।

दूसरी ऐतिहासिक रचना-महायात्रा गाथा-‘अंधेरा रास्ता’ प्रागैतिहासिक काल से १५०० ई पूर्व तक के मानव समाज के उत्थान-पतन की रोचक गाथा है।’गुरु गोरखनाथ और उनका युग’ पर शोध ग्रंथ लिखने के लिये वे १९४४ में शांति निकेतन गये।वहाँ चित्रकला सीखी।

समीक्षा में-‘समीक्षा और आदर्श ‘,काव्य कला,’संगम और संघर्ष’ की रचना की ।रांगेय राघव एक सफल कहानीकार भी थे।प्रवासी, गूँगे, धर्म संकट, कहानी में समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधि हैं। । ‘गदल’ इनकी सबसे सशक्त व सुंदर कहानी है।आगरा के रावीजी ने कहा-कि क्या रांगेयजी उनकी हिन्दी कहानी को अंग्रेज़ी में कर देंगे?इस पर रांगेय राघवजी ने कहा-‘मैं तो अंग्रेज़ी को हिंदी कर रहा हूँ और आप हिंदी को अंग्रेज़ी करवा रहे हैं।’

मॉं के बहुत कहने पर रांगेयजी ने १९५६ में सुलोचनाजी से शादी की।६: साल बाद ही १७ मार्च को डॉ हैलिग ने कहा-‘ रांगेय राघवजी को कैंसर है ,बम्बई ले जाओ’।ये मलेरिया, टायफाइड, अनिद्रा के रोगी बचपन से थे ,अब ब्लड कैंसर भी हो गया।पत्नी से कहा-‘वचन दो कि तुम पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी रहोगी, दूसरे पर निर्भर मत रहना।एम.ए करके नौकरी कर लेना।बेटी सीमन्तिनी मात्र ढाई साल की थी।

टाटा मेन अस्पताल में कैंसर का इलाज चल रहा था।इनके भाई ने कहा-‘मेरा भाई मरना नही चाहता।उसे अभी बहुत कुछ लिखना है।’पर मौत को कौन रोक सकता है? शादी के ६: वर्ष बाद ही साहित्य पथ का यह राही १२ सितम्बर,१९६२की शाम बीमारी से जूझते-जूझते थककर मौत की गोद में चिर निद्रा में सो गया।

मुदगलजी ने उन्हें -‘साहित्य सरोवर का मधुमय स्त्रोत,’अवनि का अमूल्य रत्न ‘आदि कहा ।कमलेश्वरजी ने ‘हीरों का सौदागर’कहा,तो कुंदन लाल उप्रैति: ने इन्हें सफल कवि ,यथार्थवादी कलाकार,वैज्ञानिक समाज शास्त्री,प्रगतिवादी समीक्षक ,सुधी इतिहासकार,पुरात्त्ववेत्ता,समर्थ।रिपोर्टकार तथा अप्रतिम कहानीकार मानकर इनकी साहित्यिक प्रतिभा का आकलन किया है।

वे ‘उत्तरायण ‘महा काव्य मरने के पूर्व शुरु कर चुके थे।मौत की आहट आ चुकी थी।उन्होंने स्वयं लिखा था-‘समय के पत्थर मेरे पगों को धीरे-धीरे घिस रहे हैं ।मैं ढीले से वस्त्रों को पहिने अनन्त की ओर देख रहा हूँ ,जहाँ मुझे जाना है’।

उनके बड़े भाई ने कहा-‘पप्पू एक दिन लहरों के थपेड़ों में खो जायेगा।शायद सारे समुद्र से भी उसका जी न भर पाया होगा।’पप्पू !तुम कहाँ हो भैया!देखो न ,मैं कैसा हो गया हूँ -कहाँ तक धीरज धरूँ !कौन भरेगा इन कोरे काग़ज़ों को’ ?
सच है-बूँद समानी समूंद में ,सो केत हेरी जाय!
इनकी पत्नी सुलोचनाजी नेअपने पति के जीवन पर अन्तरंग संस्मरण लिखा ,जो पुस्तक रूप में’ अंतरंग परिचय ‘के नाम से प्रकाशित हुआ ।
जयपुर में मकान बना -‘भूमिका’ जहाँ सुलोचनाजी
और उनकी बेटी प्रो सीमन्तिनी रहती हैं ।मैं उनके बुलाने पर मैं उनके घर गई ,उनसे मिलकर बहुतखुशी हुई।उन्होंने मुझे अपनी दो पुस्तकें दीं-अंतरंग संस्मरण और अपना नया उपन्यास-‘बारी बारणा खोल दो।’अभी नई किताब ‘कारे ठाकुर’लिख रही हैं।डॉ रांगेय राघव को लेखन में बहुत ख्याति मिली। मैंने इनके सामाजिक उपन्यासों पर १९९५ में शोध प्रस्तुत किया।

इन्हें पाँच पुरस्कारों से नवाज़ा गया।

हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार (१९५१ )
हरजीमाल डालमियॉं पुरस्कार (१९५४ )
उत्तर प्रदेश सरकार पुरस्कार (१९५७एवं १९५९)
राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार(१९६१)
मरणोपरान्त महात्मा गांधी पुरस्कार(१९६६)

हिन्दी साहित्य के सजग प्रहरी को नमन

डॉ आशा श्रीवास्तव
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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