महादेवी वर्मा – हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती !!

महादेवी वर्मा – हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती !!

नष्ट कब अणु का हुआ प्रयास
विफलता में है पूर्ति-विकास। (-रश्मि)

सन 26 मार्च 1907 में फर्रुखाबाद में, पिता बाबू गोविन्दप्रसाद और माता हेमरानी देवी के घर में छायावाद के उस चौथे स्तंभ का जन्म हुआ जिसे महादेवी वर्मा के नाम से जाना जाता है। बड़े शिक्षित और सुसंस्कृत वातावरण में महादेवी जी ने होश संभाला, कलम थामी और हिंदी काव्य के रजवाड़े में प्रेम दीवानी मीरा ने पुनः जन्म लिया। उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। निराला ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती भी कहा है।

महादेवी जी की कविताओं में रहस्य की कुहेलिका भरी है। ‘कोई’ है जो अदृश्य है पर निरंतर है। वह कौन है, यह पता नहीं इसलिए वह ‘तुम’ ईश्वर है और कवयित्री की हर अभिव्यक्ति पर उस परम सत्ता के साथ किया गया संवाद है। आलोचकों ने इन पर केवल पीड़ा के गीत गाने का दोषारोपण किया है पर कुछ लोगों ने यह कहकर इसका समर्थन नहीं किया है कि यदि जीवन है तो पीड़ा होगी ही और कविता पीड़ा को समझे बिना हो ही नहीं सकती क्योंकि ‘वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान’। पीड़ा का दुखकार पक्ष है तो सुखकर पक्ष भी है और महादेवी जी ने अपनी रचनाओं में पीड़ा के दोनों रूपों को जिस तरह से सज्जा एवं प्रतिष्ठा की है, उस तरह कोई और न कर सका है। निर्गुण प्रेम की उपासिका की कलम मृदुभाषिणी है, उज्जवल है, सात्विक है; यही उनके काव्य की गरिमा है।

अगर आप लोगों ने महादेवी जी की कविताएँ पढ़ी हों, तो आप लोगों ने ज़रूर नोटिस किया होगा कि महादेवी के गद्य और पद्य में बहुत फ़र्क है । महादेवी जी अक्सर कहती थीं कि गद्य सामाजिक मुद्दे और राजनीतिक विषय जैसी चीज़ों के लिए ज़्यादा उचित है, जबकि पद्य प्यार, अलग अलग भावनाओं और ज़िंदगी की अनगिनत रहस्यों के बारे में हो सकता है । इसलिये, महादेवी के गद्य और पद्य अलग अलग विषयों के बारे में हैं और अलग अलग ढंग में लिखा गया है।

महादेवी ने लिखा है ´भाषा सीखना और भाषा जीना एक-दूसरे से भिन्न हैं तो आश्चर्य की बात नहीं।प्रत्येक भाषा अपने ज्ञान और भाव की समृद्धि के कारण ग्रहण योग्य है,परन्तु अपनी समग्र बौद्धिक और रागात्मक सत्ता के साथ जीना अपनी सांस्कृतिक भाषा के संदर्भ में ही सत्य है।´

महादेवी वर्मा ने लिखा है कि ‘कला के पारस का स्पर्श पा लेने वाले का कलाकार के अतिरिक्त कोई नाम नहीं, साधक के अतिरिक्त कोई वर्ग नहीं, सत्य के अतिरिक्त कोई पूँजी नहीं, भाव-सौंदर्य के अतिरिक्त कोई व्यापार नहीं, कल्याण के अतिरिक्त कोई लाभ नहीं। एक महादेवी ही हैं जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्य कवीनां निकष वंदति’ उक्ति को चरितार्थ किया। मजेदार बात यह है कि न तो उन्होंने उपन्यास लिखा, न कहानी, न ही नाटक फिर भी श्रेष्ठ गद्यकार हैं।

संभवतः महादेवी वर्मा पहली हिन्दी लेखिका हैं जिन्होंने पूंजीवादी समाज में सबसे पहले इस आने वाले संकट को पहचाना था और रेखांकित किया कि हमारी त्रासदी का कारण है संवेदनशीलता का अभाव और भाषा से संवेदनशीलता का गायब हो जाना।

‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’ आदि इनके प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ हैं। इनकी ‘यामा’ के लिए इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।

सादर विनम्र नमन

डॉ नीरज कृष्ण
साहित्यकार
पटना, बिहार

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