कोरोना के दौर में माँ!

कोरोना के दौर में माँ!

आज व्यथित है माँ
बदल सी गयी है माँ!
दिन भर कुछ कहने सुनने वाली,
हर बात पर कोई पुरानी कहानी बताने वाली,
झूठमूठ ग़ुस्सा दिखाने वाली,
ज़बरदस्ती लौकी परवल खिलाने वाली!
भूल जाती है अब बातों- बातों पर टोकना
भूल जाती है चलते फिरते कुछ काम बताते रहना।
“गमलों में पानी दे देना,
ज़रा कुछ देर पैर दबा देना,
बढ़िया सी चाय पिला दे आज,
चल अपने कालेज की कुछ बात बता आज।”
खो गयीं वो मासूम सी बातें
खो गयीं वो बेसुरे संगीत सी आवाज़ें!
सहम गयी है माँ,
किसी की पीड़ा देख दहल गयी है माँ
एक अनजान माँ की वेदना से बिखर गयी है मेरी माँ!

एक अनजान माँ की वेदना

कुछ रातों की सहर नहीं होती..
नाउम्मीदी के बाद कभी-कभी उम्मीद नहीं होती..।
कहते थे तुम….,रात है तो क्या..
तारों की जगमगाहट से दमकती रहेगी हयात
अंधेरों से लड़ता रहेगा तारों का कारवाँ
रौशन रहेगा खिलखिलाते तारों से तेरा ये आशियाँ।
बुनी थी मैंने भी इक झालर
तारे चुने थे सुनहरे ..दिलकश..
टूट कर गिर गया कल रात मेरी झालर से एक नन्हा सितारा
दिल अज़ीज़ ..वो आँखों का तारा…।
झालर से मेरी झांकता है घटाटोप अंधेरा
तारों की लड़ी में गुँथ गया कैसे अंधेरा…..!!

रचना मलिक
भुवनेश्वर, ओडिशा

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