मां के सपने
कितने सपने संजोए थे तूने,
हम सबके संग,
कितने सपने थे तुम्हारी आंखों में,
कितनी कल्पनाएं थी,
तुम्हारे आंखों में चमक,
जिन्दगी जीने की ललक,
एक उल्लास मन में लिए,
सबको संवारा बड़ी लगन से,
अपनी सजग नयन से,
कई सपने भी टूटे,
फिर भी !!
तुम मुस्कुराती रही,
हम-बच्चों के संग,
पीड़ा को दबाए रही,
आज भी !!!!
तुम्हारी आंखें ढूंढ़ती उन्हें,
फिर से वो आएंगे,
हृदय की पीड़ा हरण करने,
पर !!!
स्वर्ग से उनका आशीष भर पा लेती।
तुम्हारा ग़म अपना,
पर सांत्वना सबकी,
बच्चे दुखती रग पे मरहम करते,
तुम्हारे भीतर की हंसी फूट पड़ती,
नयन सजल हो जाते,
तुम्हारे भीतर जीने का नया उल्लास,
तुम पुनः मुस्कुराती,
हम सबमें शामिल हो जाती,
जिन्दगी रफ्तार लेती,
हम सब कायल हो जाते,
तुम्हारी इस काया पे।
पद्मा प्रसाद