समा जाये तेरे हर गुण मुझ में
माँ
जीवन का सार हो तुम मेरी
ताल लय मीठी धुन हो मेरी
तेरे जैसे बनना है,
सदा रहूँ कदमों में तेरी।
सदा नयन में बसती हो मेरी
हृदय में विराजती मेरी
जीवन से और कोई चाहत नहीं
परछाई बनना है तेरी।
हो धरा सी क्षमाशीला
जानकी सदृश सहनशीला
तेरी सीख से सिञ्चित रहूँ,
बन पाऊँ प्रेम सलिला।
नभ सदृश कुटुम्बों की आश्रयस्थली हो
सागर सी विशाल हृदयवाली हो
स्वयं गरल पीकर जीवन गुजारी
बच्चों को आलोकित करने वाली भी हो।
सूर्य की ताप से बचाती हो
शीत के प्रकोप से रक्षा करती हो
बारिश की बूंदों से आँचल में छुपा,
मुझे जीवन का मर्म समझाती हो।
सदा रहूँ तेरे पग तले
सदा रहूँ तेरी साया तले
संस्कार से सुवासित मैं,
सदा रहूँ तेरे जीवन तले।
तुम ही जीवन आधार हो
विविध ज्ञान प्रकार हो
जननी हो मेरी
तेरी संस्कार सदा मुझमें हो।
इतना इनायत कर देना सदा
अपने अंक में रखना सदा
किस्मत ऐसी कर देना जननी
मेरी सन्तति भी रहे मुझ पे फिदा।
हमें मन में बसाये रखना
ममता मुझ पर बनाये रखना
तुम हो संसार मेरी
हमेशा रूह में बसाये रखना।
शान्त सौम्य निश्छल हो
श्वेत धवल सी तपस्विनी हो
मुझे त्यागमयी बनाये रखना
तमन्ना है,सदा सर पे तेरा हाथ हो।
एक जन्म क्या हर जन्मों में
पग पग पर हर सुख दुःख में
अडिग रहूँ, दृढ रहूँ
समा जाये तेरे हर गुण मुझ में।
डॉ रजनी दुर्गेश
हरिद्वार