माँ
सब रिश्तों में सबसे छोटा शब्द
पर भावनाएँ असीमित हैं।
एक अथाह सा सागर है
पर सम्भावनाएँ असीमित हैं ।
अन्जान दुनिया में जन्म लेकर
बहुत डरी हुई थी मैं ।
जब गोद में लिया तूने
महफूज़ , सँभली हुई थी मैं।
याद है हर वो पल
जब तूने दिया सहारा
मुसीबतों के सागर में
तू बन कर आई किनारा।
फिर एक दिन चली गई
मुझसे करके किनारा।
ना रोक पाई तुझको
कितना तुझे पुकारा।
फिर समझाया खुद को मैंने,
यही है बस हकीकत।
मुझसे भी ज्यादा शायद तेरी
ईश्वर को थी ज़रुरत।
होता है गर्व खुद पर,
कि मैं हूँ तेरी बेटी।
इक जन्म मिले फिर से,
तो बन जाऊँ तेरी बेटी।
पास ही है, दूर नहीं तू,
कहकर समझा देते सब मुझको।
पर क्या अपनी थाली में से,
खिला सकती है *”बुक्का”* मुझको ?
लेने होंगे जनम कई,
तेरे जैसा बन पाने को।
कुछ डाल सकूँ अपने बच्चों में,
तेरा कुछ ऋण चुकाने को ।
लेने होंगे जनम कई,
तेरे जैसा बन पाने को।
कुछ डाल सकूँ अपने बच्चों में,
तेरा कुछ ऋण चुकाने को ।
समिधा नवीन वर्मा
ब्लॉगर,लेखक,अनुवादक,यूट्यूबर
सहारनपुर ,उत्तरप्रदेश
भारत