माँ
माँ सहनशक्ति की अनुपम मिसाल है,
उसका हर रूप बच्चों हेतु बेमिसाल है।
वह सृजनकर्ता है,नित प्राण रक्षक है,
बच्चों पर आँच आ जाये तो बनती भक्षक है।
वह अन्नपूर्णा है घर की संचालिका है,
वह जो न हो घर मे तो घर का नही कोई मालिक है।
वह हिम्मत है,वह ताकत है, वह शक्ति का रूप है,
इस धरती पर वह देवी के स्वरूप है।
वह दया शील और ममतामयी है,
बच्चों के लिये वह आनंदमयी है।
नारी के हर रूप में वह सर्वश्रेष्ठ है,
मगर माँ के रूप में वह विशेष है।
वह बच्चों की प्रथम गुरू उसकी सखा है,
वह उनकी सुविधा के लिये बनती परिचारिका है।
उसकी हाथों में बला का जादू है,
जो खिलाती अपने हाथों से तो अमृत सा आता स्वाद है।
वाकई माँ सृष्टि की अनुपम कृति है,
बच्चों की सलामती के लिये निभाती हर रीति है।
माँ है तो मुझमें ये हिम्मत है,
उनके सिखाये रास्तों पर चलने की सबको जरूरत है।
माँ है तो अपने अंदर आत्मविश्वास है,
वरना जमाने से कहाँ कोई आस है।
माँ पूजा है ,प्रार्थना है ,माँ दुआ है ,माँ आराधना है,
माँ मेरे अच्छे कर्मों का प्रसाद है।
माँ इस जगत में सबसे खास है।
रूचिका राय,
सिवान , बिहार