तुम मेरे पास हो …हमेशा!

माँ,
तुम हो यहीं कहीं,..मेरे आसपास,
भींगी पलकें जब यादों का सहारा चाहती हैं,
तुम तब भी -मेरे साथ होती हो ..माँ,
जैसे मैं तुम्हें छू सकती हूँ,
महसूस कर सकती हूँ–
”तुम्हारे कदमों क़ि आहट,
जब ये अधर कुछ्फरियाद करते हैं,
तो जैसे..
तुम सुनती हो मेरी आवाज,
बिन कहे मान लेती हो,
मेरी हर बात ..और मैं खुश हो जाती हूँ,
किसी जिद्दी बच्चे क़ि तरह,
तुम सामने क्यों नहीं आती माँ?
मैं छूना चाहती हूँ तुम्हारा आँचल,
देखना चाहती हूँ -वो ममता भरी आँखें..
समेटना चाहती हूँ -तुम्हारी मुस्कान,
सुनो माँ!…कहीं जाना नहीं,
बस यूँ ही रहो मेरे आसपास,
अहसास बनकर-
मेरा साथऔर विश्वास बनकर,
–तुम मेरे पास हो …हमेशा!

 

पद्मा मिश्रा

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