एक मां हूँ मैं
एक मां हूँ मैं,
अपने बच्चों के लिए, कोमल भावनाएं रखतीं हूँ।
दुनिया की सारी खुशियां,
निछावर करना चाहती हूँ।
चाहतीं हूँ.. मेरे बच्चे…
तू जिन राहों से गुजरे,
फूल बिछे हों,उन राहों पर।
पर मेरे बच्चे…
जान ले कई बार,
यह जिंदगी फूलों की सेज है,
तो कई बार कांटों का ताज भी।
मां के आंचल की छांव,
और पिता के सरपरस्ती के बाहर,
कभी – कभी, यह दुनिया पेश आएगी,
बहुत क्रुरता से, तुम्हारे साथ।
इसलिए दिल मजबूत कर लेती हूँ..
जब कभी तुम्हारे कदम लड़खड़ाते हुए देखती हूँ,
जबरन हाथों को रोक लेती हूँ,
तुम्हें पकड़ने से…
जानती हूँ, एक दिन लड़खड़ाते – लड़खड़ाते,
तुम्हारे कदम संभल जाएंगे।
आज तो बढ़ कर पकड़ लूं तुम्हे
लेकिन तुम्हे तो रहना है,
इस दुनिया में.. मेरे बाद..,
जब मैं न होऊंगी तो,
फिर कौन संभालेगा तुम्हे,
यही सोचकर रोक लेती हूँ, खुद को।
एक मां हूँ मैं
चाहतीं हूँ तुम्हे मजबूत देखना..
.. इतना मजबूत कि, कल को जब मेरे कदम लड़खड़ाएं,
तो उन्हें संभालने के लिए, तुम्हारे हाथ आगे आएं
ऋचा वर्मा