माँ तुम बहुत याद आती हो

माँ
माँ तुम बहुत याद आती हो
जब स्कूल से घर आती हूँ,
खाली घर ही पाती हूँ
सूनी सी देहरी देखती हूँ,
अपनी थाली खुद लगाती हूँ,
छोटे को भी कभी ख़िलाती हूँ ,
हर निवाले के साथ
माँ तुम बहुत याद आती हो।
आज जब मुझे लगा कि
अब मैं भी बड़ी हो गयी,
लेकिन दुनिया को समझने की,
समझ अभी बहुत छोटी थी ,
किस पर करुं भरोसा,
इस हर सोच के साथ
मां तुम बहूत याद आती हो।
रिश्ते की है बात निकली,
हाथों में है मेहंदी लगी ,
अकेले बाबुल ने जब किया कन्यादान,
नए रिश्तों में कितनी खरी उतरूंगी
इस डर के साथ
माँ तुम बहुत याद आती हो।
आज जब खुद मां बन भी गयी,
कैसे बच्चों की करूँगी देखभाल,
कौन संभालेगा मुझे,
किसको होगा मेरी हर भावनाओं का एहसास ऐसे मानसिक भाव में
मां तुम बहुत याद आती रही
जीवन के इस पड़ाव पर
कभी कभी जब थकने सी लगी हूँ,
बच्चों का मुख भी हसरत से तकने लगी हूँ मैं पलको का भारीपन खोने लगी हूँ मैं,
सोने के लिए जब गोद ढूंढती हूँ मैं ,
मेरे इस खालीपन में ,मां तुम बहुत याद आती हो

डॉ अनिता शर्मा

0