मदर्स डे भारतीय संस्कृति में नहीं है ……हमारे लिए तो पृथ्वी माता है , गाय मां है, गंगा मैया है…. धरती माता की चरण वंदना से हमारे दिन की शुरुआत होती है। गौ माता हमारा पेट पालती है और जीवन प्रदायिनी गंगा मैया जिसे हम पियरी चढाते हैं हमें मोक्ष भी देती है । भारतीय संस्कृति में मां कोख नहीं आत्मा है ,जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी के दर्शन का संदेश देती है हमारी संस्कृति । फिर एक दिन हम माता के लिए क्यों रखें प्रतिदिन मां का स्मरण कर उन्हें नमन कर स्नेह आशीर्वाद लेकर जीवन जीने की शिक्षा देने वाली जगत माता को कोटि कोटि नमन।
डेढ़ महीने हो गए लॉकडाउन के और इन 45 दिनों में एक पल के लिए भी मुझे ना तो बोरियत हुई और ना अकेलापन महसूस हुआ… मातृत्व पर सदा ईश्वर की अटूट आस्था हावी रही है …मेरे परिवार के 8 बच्चे कम उम्र में विदेश पढ़ने के लिए चले गए। वैश्विक महामारी है पर बच्चों की चिंता कम होती है क्योंकि परमपिता परमेश्वर ने उन्हें अपने संरक्षण में रखा है।प्रतिदिन बच्चों से बात कर लेती हूं और खुश रहती हूं क्योंकि मेरे 6 महीने का पोता अरमान हर दिन मेरे साथ शाम में आधे घंटे समय बिताता है । मेरी हिन्दी वह समझता है मेरी बिन्दी वह पहचानने लगा है और उसे झपट ने के लिए हाथ बढ़ाता है ।एक महीने में मैंने उसे ओंकार की ध्वनि से भी परिचित करा दिया है अब । कहते हैं मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है , बेटे और बहू से अधिक खुशी मिलती है प्रतिदिन इस नन्हे फरिश्ते से मिलकर । सुदूर अमेरिका में रहने के बावजूद अपनी दादीमाँ के लाडले को मदर्स डे में मैं ढेर सारे प्यार दुलार के साथ आशीर्वाद देतीं हूँ जिसने मेरी झोली खुशियों से भर दी है। अपने इस छोटे से नन्हे से नौनिहाल पर वारी जाती हूँ जिसने मातृत्व को पुनः परिभाषित किया है ।सात समंदर पार रहकर पूरे परिवार को जोड़ रखा है इस नन्ही सी जान ने अपनी मनमोहक हंसी और भोली सी सूरत पर चार पुश्तों की खुशियां न्योछावर हैं। हमारी नानी,हमारी माँ , सब वीडियो काल कर अपने छर पोता, पर पोता की बलैयां लेतीं हैं ।
डॉ जूही समर्पिता
प्रिंसिपल, डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
जमशेदपुर, झारखंड