मंजुला अस्थाना महंती की कविताएं

 

मंजुला अस्थाना महंती की कविताएं

 

1.तृषित आत्मा

 

नैन बावरे इत उत् निहारे

न जाने किस को पुकारे

प्यासे नैना मरम न जाने

तृष्णा क्योंकर ना पहचाने

 

अनजानी अव्यक्त सी मूरत

कैसी होगी उसकी सूरत

मन में हल चल

फ़िर भी बेकल

 

तिष्णगी सी बढ़ती जाती

हर क्षण, पल पल

उत्सुकतावश आँख ना झपके

स्थिर रहीं घनेरी पलकें

 

है कल्पना में एक चित्र सा

वैसा होगा वह या विचित्र सा

परिचय उसका ज्ञात नहीं

उत्सुकता तृष्णा बनती गई

 

युगों युगों की रीत निभाई

प्रीति तुम्हारी मन में बसाई

क्या होगा परिणाम न जाने

बैरी मन फिर भी न माने

 

लोक लाज के कड़े बंधन

मन ही मन में करूँ वंदन

क्या सुन पाते हो पुकार मेरी

करते मुझे निराश सभी

 

आस निरास के भंवर में हूँ

तथापि तेरी प्रतीक्षा रत हूँ

अब तो प्यास बुझा दो मेरी

नतमस्तक हूँ चेरी तेरी

 

आओगे तुम शीघ्र मन कहता है

आशा होगी पूर्ण, मन कहता है

युग युगांतरों का संबंध

बना रहेगा वह निर्बंध

 

मेघों की गरज डराती है

विद्युत चपला चौंकाती है

कैसे मै अब मन धीर धरूँ

पग पग पर हो भयभीत डरूँ

 

तुम आओगे अब आ जाओगे

तृष्णा, दुख क्षोभ मिताओगे

रिमझिम मीठी वर्षा होगी

मयूरों की केका गूँजेगी

 

शीतल पवन मलय महकेगी

इंद्र धनुष होगा सतरंगी

मुदित हृदय भी नाचेगा

प्यास मेरी बुझायेगा

 

प्यार मेरा मिल जायेगा

प्रसन्न वदन गायेगा

पचरंगी आँचल लहरायेगा

आनंद आनंद छायेगा

हाँ, आनंद आनंद छायेगा……..

 

 

2.पुकारता है देश

 

लहराता है आकाश में तिरंगा जब जब

भर जाता है हृदय हमारा गर्व से तब तब,

 

शान में इस की शीश झुकाते हैं हम सब

हो जाती चौडी़ छाती सम्मान में हरदम

 

हम तो आज़ाद हुए थे अंग्रेज़ों से जूझ लड़ कर

किंतु रहना पड़ता है अब अपनों से ही भिड़ कर

 

जो ख़्वाब सजाये थे, मात्र ख़्वाब रह गये

अनगिनत बलिदान व्यर्थ, बिन सम्मान रह गये

 

लोकतंत्र है आ गया, छोड़ा निराशा के विचार को

बस अधिकार की सोची, ना समझा कर्तव्य भार को

 

आज़ादी का अर्थ हो गया अब केवल घोटाला है

हम ने आज़ादी का मतलब, भृष्टाचार निकाला है

 

अब वैमनस्य के पहलू खूब उभारे जाते हैं

अपनों को ही मारो, द्वेष भाव फैलाये जाते हैं

 

आज़ादी में माँ का आँचल दुखों से भर डाला है

माँ को गाली देने वाला भी सकुशल जियाला है

 

आज तो देश के दुश्मनों को शीश झुकाया जाता है

आज़ादी में देश द्रोह का भी पर्व मनाया जाता है

 

माँ बहनों की इज़्ज़त आबरू का कोई मोल नहीं

मक्कारों के सम्मुख, न्याय धर्म का तोल नहीं

 

क्या सच में दीप जल सकेंगे आज़ादी की खुशियों के

या बुझ जाएगे दीप जो खुशियों में कभी जले थे

 

हैं स्वतंत्र हम, जन्म लिया, आज़ाद देश की गोद में

आज़ादी की कीमत के प्रति, मान भरा हो हर दिल में

 

जो चाहते हो जय हिंद का नारा सदा बुलंद रहे

तो सुभाष, प्रताप बन, विरोधियों का अंत करें

 

जाति धर्म देखे बिना, देश द्रोहियों को मिटाना होगा

अभिमन्यु सा गर्भ में ही देशभक्ति का पाठ पढ़ाना होगा

 

देश वासियों का प्रण हो, देश हमारा अक्षुण्ण रहे

ना छोड़ें बुरी नीयत वाले को, हरेक कुचक्र खेत रहे

 

वीरता की अपनी परंपरा को आगे बढ़ाना होगा

जन जन को देश के लिए जीना सिखाना होगा

 

शपथ हमें, हम करें न्यौछावर, देशहित निज प्राण को

उठो, हाथ से हाथ मिला, बढ़ाओ देश के मान को

 

मंजुला अस्थाना महंती

भुवनेश्वर, भारत

 

 

 

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