ममता कालिया- एक कवयित्री के रूप मे
ममता कालिया का नाम यूं तो गद्य लेखन में अधिक है परंतु उन्होंने अपनी रचनाएंं कविताओं से ही आरंभ की थीं। ममता कालिया की पद्य रचनाएं भी उनकी गद्य रचना के समान ही विशिष्ट हैं। पेश हैं वाणी प्रकाशन की किताब ‘पचास कविताएं’ में छपीं उनकी कविताओं में से पांच रचनाएं
तुम्हारे बिना
तुमसे मिले बिना, इतनी लम्बी राह चली
सड़क का परला सिरा दिखने लगा।
इस लम्बी अवधि में
जीती रही
ऐसे
जैसे कभी-कभी बिना धूप
फूल खिल लेता है
जैसे कभी-कभी
बिना नग, कोई
अंगूठी पहन लेता है।
खांटी घरेलू
शादी के अगले रोज़ ही
वह शामिल हो गयी जमात में
खांटी औरत घरेलू बन कर
फंस गयी बिसात में।
उसी घर और बिस्तर पर
पुरुष ने भी बिताया समय
फिर भी किसी ने उसे नहीं कहा
खांटी घरेलू मर्द।
अव्यवस्था
देखो-
मेरे मन की ड्रॉअर में
तुम्हारी स्मृति के पृष्ठ,
कुछ बिखर से गए हैं!
समय के हाथों से
कुछ छितर से गए हैं!
आओ-
तनिक इन्हें संवार दो,
तनकि सा दुलार दो,
और फिर जतन से सहेजकर-
अपने विश्वास के आल्पिन में बद्ध कर,
प्यार के पेपरवेट से
तनिक सा दबा दो
दूर खड़ी मैं
हो गयी सबसे छिटककर
सांस लेने योग्य जब
नफ़रतों ने बिलबिला कर यह कहा,
छूट कर सबसे निकलना
था ही सरल।
किया क्या तुमने
फेंक दी दिन एक
सुलगती तीली
बीचोंबीच
चीड़ के जंगल।
बहाना
आज ख़ुश हूं
ख़ुद से,
तुमसे,
सबसे,
लिख नहीं पाऊंगी सच!
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प्रस्तुतकर्ता
विद्या भंडारी
कोलकाता ,भारत