ममता कालिया
‘ममता से मिलने चलोगी?
मुझसे पूछ रहे थे
आदरणीय रवींद्र कालिया जी
डायरेक्टर ज्ञानपीठ
‘9 साल छोटी पत्नी’
‘गालिब छुटी शराब’
फ़ेम के लेखक
जिन्हें हमने बचपन से
पढ़ा था पत्रिकाओं में
मुझसे मुखातिब थे! क्या खुशनुमा
दिन होगा! और पूछ रहे थे
ममता जी यानी ममता कालिया
के बारे में, जिनकी प्रसिद्धि चर्चा
सुन बड़े हुए हम जिनके ‘अंधेरे में ताला’ शीर्षक
उपन्यास का कथानक, साक्षात
मिल जाता है, हर कस्बे नहीं
हर महानगर में, किन्तु मिलेगा
विदेश में भी, मैने कहाँ सोचा था?
अचानक मेरे सर पर गिर जाएगी
इमिग्रेशन की इतनी बड़ी राजनीति
मैंने कहाँ सोचा था? इतने किस्मों की राजनीति से घिर जाएगा, तलाक का
निहायत निजी मामला, अव्वल तो तलाक तक पहुँच जाएगा
यूनिवर्सिटी का प्रेम, यही कल्पना
मुश्किल थी, मैं ये सबकुछ कहना
चाहती थी, ममता जी से, जोड़कर अपने दोनों हाथ अभिवादन
में, अभिनंदन में, लेकिन देखते
ही उनकी ममत्व भरी स्नेह पूर्ण मुस्कान मन हुआ लग जाऊँ गले
बढ़ा कर हाथ! शब्द चूके और समझ हावी
हुई आवाज़ पर! काश! हम क्यों
न मिले बेहतर माहौल में
और क्यों न माहौल ही बेहतर
हुआ? समय भी? स्वर्ग सी जगहों
में भी पैदा की जा सकती हैं
नरक दर नरक की स्थितियां
2007 की उन गर्मियों में
कविताएँ छपी थीं
ज्ञानोदय में, कहानी कथादेश में
और प्रोत्साहन देते कह रहे थे
कालिया जी, “तुम तो छाई हुई हो!”
किन्तु, छा जाने का जज़्बा चला
गया था, न जाने कितनी दूर
और अपरिचित लग रही थी मुस्कुराहट, किन्तु, कालिया
जी का वाक्य वह , बना रहा
सबसे कठिन दिनों में साथ
दिए सा राह दिखाता!
जहाँ पहुँचे नहीं, वहाँ पहुँचने
को करता प्रेरित! बहुत हाल में
कथा चर्चा के एक किसी आयोजन में विचित्र सी एक बहस के बाद
जब कहा ममता जी ने
आखिर, ऐसा क्या है
इसमें न समझ आने वाला ?
एक विद्यार्थी की संघर्ष गाथा
कोई अजूबा तो नहीं?
न अजूबा हैं नस्लवाद
के किस्से! तो मुझे लगा
वे सचमुच बोल रही थी
कहानी की ओर से
न किसी के साथ
न किसी के खिलाफ!
विधाओं की भी लडाई
से इतर , उस खुली दृष्टि
के साथ, जो स्थापित करती है
किसी भाषा की लेखनी को
विश्व पटल पर!
अनेकों शोध कार्य हो चुके
ममता जी की कथा यात्रा पर
देश और विदेश में!
कालिया जी को लेकर
लिखे उन्होनें इतने जीवंत
संस्मरण, कि जो भी
जितना भी रहा होगा उनके करीब
भींग गया होगा स्मृति से!
सहृदय, मिलनसार
मुश्किल नहीं हो कभी
जिनतक पहुँचना
उन ममता जी की अब
जब भी आती है नई किताब
करती है हमें प्रेरित
न केवल पढ़ने, बल्कि
लिखने को, कि फासीवाद
के आगे, कभी नहीं डालते
हथियार!
—पंखुरी सिन्हा