डैडी होम

 

डैडी होम

दिशांत दौड़ता हुआ अस्पताल में आया और खून में लथपथ नवजात को आगे कर बोला “प्लीज इसे जल्दी भर्ती करिए, इसकी हालत बहुत खराब है, प्लीज सिस्टर!” नर्स ने बच्ची को लिया और तुरंत एन.आई.सीयू. में भर्ती कर लिया। वहां बच्ची का इलाज शुरु हुआ।
दिशांत वहीं चहलकदमी कर रहा था। नर्स ने आकर कहा “इसकी मां कहां है? अकेले ही इसे ले आए? अभी तक वो क्यों नहीं आई और ऐसी हालत कैसे हुई? क्या किसी ने इस नवजात के साथ कुछ अमानवीय करने की कोशिश की?” नर्स ने एक साथ इतने सारे सवालों की बौछार कर दी।
दिशांत नर्स के हर सवाल का जवाब दिया, उसने बताया कि यह बच्ची उसे सड़क के किनारे गंदगी में पड़ी मिली थी, जिसे कुत्ते अपना आहार समझ झपट रहे थे और वह जोर से रो रही थी। दिशांत वहां से निकल रहा था तो वह बच्ची को उन जानवरों से बचाकर यहां ले आया। वो नहीं जानता कि ये किसकी बच्ची है? कौन उसे वहां छोड़ गया?
नर्स ने यह सब डॉक्टर को जाकर बताया और साथ में पुलिस को भी सूचना दे दी गई।
डॉक्टर ने दिशांत से कहा, उसने मानवता भरा काम किया, उस बच्ची को बचाकर, अब वह जा सकता है। दिशांत ने पूछा “बच्ची कहां जाएगी, ठीक होने पर?”
डॉक्टर ने बताया कि अभी कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक यहीं है, यदि इसके माता पिता लेने आए तो ठीक वर्ना अनाथालय में दे दी जाएगी।

घर आकर उसने सबको बताया, वह गुस्से में था कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है? निर्ममता की भी हद होती है! इस पर मां बोली “तू क्या जाने किसकी क्या मजबूरी रही होगी? गुस्सा करना आसान है, उपाय नहीं…”
मां के शब्द रात भर दिशांत के कानों में गूंजते रहे, दिशांत को जब समय मिलता अस्पताल जाता। एक सुबह, आखिर उसने तय कर लिया अब आगे क्या किया जाए।
उसने एक अनाथालय खोलने की ठानी। घरवालों ने उसका साथ दिया।अनाथालय में प्रवेश से पहले उसने लगवाया एक पालना और घण्टी। साथ में एक बोर्ड जिस पर लिखा था “फेंके नहीं, हमें दें!”
बस तब से वो घण्टी की आवाज़, एक नन्हे जीवन के आगमन की खुशी मनाने का प्रतीक बन गई। एक नया जीवन जो किसी भी मजबूरी के चलते अपनाया नहीं जाता है, यहां दिशांत के “डैडी होम” में भरपूर प्यार और संरक्षण पाता है।

अंकिता बाहेती
क़तर

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