ममता कालिया-समकालीन हिंदी साहित्य जगत का जगमगाता सितारा
ममता कालिया समकालीन हिंदी साहित्य जगत की प्रखर हस्ताक्षर हैं। उनका गद्य की हर विधा में एक सार्थक हस्तक्षेप है। भावों के महीन धागों से बुनी उनकी कविताओं में आम जीवन से जुड़े वे सभी ख़ास पहलू हैं जो पाठकों को स्वतः ही अपना बना लेते हैं । उनकी कहानियां हमें सामाजिक-विमर्श करने पर बाध्य करती ही हैं तो उनके निबंध में गंभीर चिंतन है।उनके लेखन में स्त्री चिंतन के स्वर मुखर होते हैं साथ ही जीवन की छोटी-छोटी चेष्टाओं के पुट भी हैं।उनका लिखा साहित्य उनकी संवेदनशीलता को मुखरित करता है।
उनके द्वारा लिखे 12 कहानी संग्रह प्रकाशित हैं जो सम्पूर्ण कहानियां ‘ममता कालिया की कहानियां’ के नाम से दो खंडों में प्रकाशित हुई हैं। उन्होंने छुटकारा, एक अदद औरत, सीट नं. छ:, उसका यौवन, जांच अभी जारी है जैसी कई कहानियां लिखी हैं। उनके लिखे उपन्यासों में प्रेम कहानी, लड़कियाँ, एक पत्नी के नोट्स, दुक्खम् – सुक्खम् आदि शामिल हैं।
उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं-बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ ,दौड़ आदि (उपन्यास) हैं तथा हाल ही में उनके दो कहानी-संग्रह और प्रकाशित हुए हैं, जैसे पच्चीस साल की लड़की, थियेटर रोड के कौवे। वैसे लिस्ट और भी ज़्यादा लम्बी है ।
कथा-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से कहानी सम्मान 1989 में प्राप्त हुआ तथा साहित्य भूषण 2004 में। उनके समग्र साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता ने रचना पुरस्कार भी दिया। इसके अतिरिक्त उन्हें सरस्वती प्रेस तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी प्राप्त है।
दुक्खम्-सुक्खम् के लिए उन्हें वर्ष 2017 के प्रतिष्ठित व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया था। यह उपन्यास मथुरा शहर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसके अलावा उन्हें अभिनव भारती सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, यशपाल स्मृति सम्मान आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आइए कुछ जानें उनके सृजन के बारे में -उनकी कविताओं व कहानियों में प्रायः रोज़मर्रा के जीवन में जो स्त्रियों का संघर्ष होता है -उसकी झलक देखने को मिलती है । आमतौर पर लेखक समस्याएं उकेरते हैं…. समाज के सामने प्रश्नचिन्ह रखते हैं मगर ममता जी की रचनाओं में मुझे यह बात बहुत प्रभावित कर गयी कि वे ‘सवाल’ भी करती हैं और साथ ही ‘समाधान’ भी हमारे समक्ष रखती हैं ।
उनकी कहानियों में अक्सर हम नायिकाओं का संघर्ष देखते हैं । कहीं नायिका अपना हक़ प्राप्त कर लेती है कहीं अपने अस्तित्व की तलाश कर रही होती हैं ।कुछ कहानियों में स्वतन्त्र विचारधारा की राह पर चलने वाली सुलझी हुई सशक्त स्त्री है तो कहीं सामजिक बंधनों में जकड़ी,शोषण का शिकार होती स्वयं की खोज करती मजबूर और बेबस नायिका ।
कविताओं का भी विषय इतना सहज -सरल व दिलचस्प है कि पाठक जब पढता है तो ऐसा लगता है कि सामने शब्द-चित्र खेंच दिया गया हो ।
‘दूसरा देवदास’ ममता कालिया की कालजई रचना है। यह प्रेम के प्रथम अनुभव के रंगों में रंगी कथा है। यह कहानी कहीं-कहीं आदरणीय शरतचंद द्वारा रचित ‘देवदास’ जैसी प्रेम की अनुभूति कराता है। ममता जी ने इस कथा में प्रेम के प्रथम अनुभव का बड़ी ही सूक्ष्मता से चित्रण किया है।
प्रेम के महत्व और उसकी गरिमा को ऊंचाई प्रदान करती इस कहानी से यह सिद्ध होता है कि प्रेम के लिए किसी नियत व्यक्ति, स्थान और समय की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह स्वतः ही घटित हो जाता है।
21वीं सदी के भोग विलास की संस्कृति ने प्रेम का स्वरूप अधिकतर उच्छश्रृंखल कर दिया है। ऐसी स्थिति में यह कहानी प्रेम के सच्चे स्वरूप को रेखांकित करती है और दूसरी तरफ युवा मन की संवेदना, भावना और कल्पनाशीलता को भी प्रस्तुत करती है।
इस कहानी में लेखिका ने युवा मन के प्रथम आकर्षण और उससे उत्पन्न संवेदनाओं को व्यक्त करने के साथ-साथ धार्मिक स्थानों पर बढ़ती व्यापारिक वृत्ति का भी वर्णन किया है। जैसे कि अंग्रेज़ी में कहते हैं -‘मस्ट रीड ‘-सो ऐसी है यह कहानी । ज़रूर पढ़ी जानी चाहिए ।
ममता जी को शब्दों की निपुण परख है। साधारण शब्दों में भी अपने उच्चकोटि के भाषाज्ञान प्रयोग से जादुई प्रभाव उत्पन्न कर देती हैं। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति उनकी खासियत है। सटीक एवं सजीव व्यंग्यात्मक शैली से सृजन इतना अनोखा होता है कि पढ़ने वाले शुरू से लेकर अंत तक दिलचस्पी से पढ़ते है। अभिव्यक्ति की सरलता एवं सुबोधता उसे विशेष रूप से मर्मस्पर्शी बना देती है।
ऐसे प्रखर हस्ताक्षर को शतशः नमन ।
अनु बाफना
दुबई, यू.ए.ई.