राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी
शर्मसार हैं हम बापू ,
अंधे ,बहरे और गूँगे बन कर ही रह गए ,
क्याें न पड़ा हमारे कानों में किसान, मज़दूर और दलित का क्रंदन,
क्याें न हम देख पाए निम्न वर्ग का शोषण,
क्याें न हमने आवाज़ उठाई अत्याचार के ख़िलाफ़,
क्याें हम सुषुप्ति में डूबे रहे बेख़बर,
गुनहगार हैं हम ,मदमस्त होकर रह गए अपने स्वार्थ, सत्ता ओर धन की लोलुपता के मायाजाल में फँस कर ।
तुम भी क्या सोचते होंगे ,
इनके लिए लड़ी मैंने आज़ादी की लड़ाई ,
इनके लिए अनगिनत लोगों ने जान की बाज़ी लगाई ,
इनके लिए अर्पित किया सर्वस्व,
इनके लिए देखे मैंने सपने उज्ज्वल भविष्य के प्रतिदिन ।
पर अब वादा है तुमसे बापू , नहीं करेंगे निराश तुम्हें , बिसराएँगे नहीं तुम्हें,
शीघ्र ही इस राख पर करेंगे एक दिया प्रज्वलित,
करेंगे अपना मार्ग प्रशस्त
अपनाएँगे तुम्हारी जीवनशैली , अहिंसा,क्षमा और सत्य के मार्ग पर चल कर ।
क्षमा करना बापू हमारी धृष्टता, उपेक्षा और प्रमाद को ,
करबद्ध याचना है हमारी,अस्वीकार न करना हम कृतघ्न जनों की विनती को।
वीना कुमार,
वर्जीनिया, अमेरिका