महात्मा गांधी का जीवन विश्व कल्याण के लिए

महात्मा गांधी का जीवन विश्व कल्याण के लिए

गांधीजी की कार्य शैली और साधना वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर आधारित रही । गांधी जी के समन्वयवादी सिद्धांत मनुमष्य के विवेक की धुरी हैं । सत्याग्रह और अहिंसा पर आधारित गांधी जी की विचारधारा और कार्यशैली संपूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है । गांधी जी ने सत्य और अहिंसा से समन्वित जिस मंगलकारिणी विचारधारा को विश्व के लिए भेंट किया उसका आधार विश्व के सभी धर्मों के मूल सिद्धांत हैं। उनकी सोच ” एकम् सद् विप्रा: बहुधा वदंति ” पर अवलंबित थी । वे मन वचन और कर्म से कह पाए कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। गांधी जी सत्य को शाश्वत मानते थे । वे आदर्श और व्यवहार की शिक्षा के प्रति सदैव सजग रहते थे ।उन्होंने कर्म की शिक्षा को सर्वोपरि माना । उनका जीवन – ” कर्म ही पूजा है ” इस सिद्धांत के अनुसार जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा सभी को देता है ।
किंतु ये कर्म ऐसे होने चाहिए जो व्यक्ति के कल्याण के साथ-साथ समस्त विश्व के के हित साधन का कारण बने । इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सत्कर्मों का चयन करें क्योंकि सत्कर्म में प्रवृत्त रहने वाला व्यक्ति अपने भले के साथ साथ दूसरों की भलाई अवश्य कर लेता है

विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरीशस में सहभागिता के पश्चात पोर्ट लुइ स्थित गांधी संग्रहालय में इस लेख की लेखिका उर्मि के साथ ही अन्य पर्यटकों को 10 वर्षीया बालिका के मुख से यह सुनकर आश्चर्य मिश्रित हर्ष का अनुभव हुआ कि विश्व कल्याण के लिए गांधी जी का दर्शन जिन श्रेष्ठ सिद्धांतों से अभिप्रेरित है उनमें सत्य,अहिंसा,ब्रह्मचर्य,अस्तेय,अचौर्य अपरिग्रह और प्रार्थना सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं । अपने संपूर्ण जीवन काल में गांधीजी इन सिद्धांतों का पालन पूर्ण निष्ठा एवं दृढ़ता के साथ करते रहे । उनका कहना था कि हमें यह शरीर दूसरों की सेवा के लिए प्राप्त हुआ है जिससे सत्कर्म करते हुए लोगों की सेवा करना भी धर्म है और हमें ह्रदय मिला है आत्म दर्शन के लिए ।
गांधी जी ने अपने जीवन काल में सत्य का केवल प्रयोग ही नहीं किया बल्कि उसको जिया भी । उनकी मान्यता थी कि केवल सत्य बोलने से ही मनुष्य का कल्याण नहीं होगा वरन उसे अपनी अंतरात्मा में रखते हुए सत्य को जीने की, उसके अनुसार आचरण करने की कला अपनानी होगी ।

आज विश्व में जहां लगभग सभी तरफ झूठ, स्वार्थ , लालच , चोरी द्वेष, कालाबाजारी, लूटपाट , कपट , भ्रष्टाचार आदि का बोलबाला है , वहां गांधी जी के सत्य , अहिंसा , अस्तेय ब्रह्मचर्य , अचौर्य, अपरिग्रह प्रार्थना आदि सिद्धांत अपनाने से और इनका निरंतर पालन करने से सदाचारी एवं सुखी समाज की स्थापना अत्यंत सरल हो सकती है ।

गांधी जी जितने बड़े व्यक्ति थे उस उससे कहीं बड़ा उनका व्यक्तित्व और जीवन दर्शन है ।गांधीवाद चिंतन और विचारों का एक शुभ संकलन है , जिसमें संपूर्ण जीवन दर्शन समाहित है ।

मेरे विचार से गांधीवाद विपरीत परिस्थितियों में समन्वित , रक्षात्मक और धैर्य पूर्ण जीवन शैली है ,जो मानवता का समर्थन कर अन्याय का विरोध करती है।विश्व कल्याण के लिए गांधीवाद जिन सिद्धांतों का समन्वित रूप है उन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत सरलता से समझा जा सकता है —

अहिंसा – यह कर्मवीर की पहचान है । हथियारों से दुनिया को जीतना सरल है परंतु अपनी मनोवृति पर विजय पाना अत्यंत कठिन कार्य है । अहिंसा प्रेम का सिद्धांत है । संसार के प्रत्येक प्राणी का संरक्षण मनुष्य का कर्तव्य है । विरोधी के प्रति बदले की भावना रखें बिना , हक के लिए अड़े रहना वीरत्व का चिन्ह है । सामान्य परिस्थितियों में तो मन वचन और कर्म से किसी प्राणी को हानि नहीं पहुंचाना अहिंसा है ।
सत्य — गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि सत्य परेशान हो सकता है किंतु पराजित नहीं होता , इसलिए सत्य पर अडिग रहने वाले व्यक्ति को जीत होती है

ब्रह्माचर्य — इसे चरित्र की कुंजी कहा गया है ।पति पत्नी एक दूसरे के सहचर हैं , दास नहीं । दंपति का संतान प्राप्ति के लिए ही संसर्ग करना उचित है ।ब्रम्हचर्य व्रत से व्यक्ति दीर्घायु और निरोग रहता है ।

अपरिग्रह या त्याग – यह प्रवृत्ति मनुष्य को हल्का बनाती है , जबकि वस्तुएं भार बढ़ाती हैं । जिन्हें यह एहसास हो कि मानवता की सेवा में स्वयं को अर्पित करना है , उन्हें अपना सर्वस्व त्याग देना चाहिए । बुद्ध, नानक , कबीर , चैतन्य , शंकर, , दयानंद , विवेकानंद आदि ने अपना सब कुछ त्याग कर निर्धनता का वरण किया

श्रम का महत्व -गांधीजी ने श्रम सिद्धांत को अत्यंत महत्वपूर्ण माना । उनका कहना था बिना श्रम किए भोजन करना पाप है ।एक चिकित्सक और इंजीनियर के समान नाई और बढ़ई आदि का श्रम भी महत्वपूर्ण है । शारीरिक श्रम प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य होना चाहिए ।

सर्वोदय –गांधीजी इस बात पर जोर दिया करते थे कि सब का उदय, उत्थान कल्याण व्यक्ति और समाज का ध्येय होना चाहिए । हम में से प्रत्येक व्यक्ति को समाज के अंतिम व्यक्ति के बाहरी और आंतरिक उत्थान के लिए हर संभव जुटे रहना है ।समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण में समस्त विश्व का कल्याण निहित है ।

स्वराज –गांधी जी ने स्वराज शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में किया है । वे कहा करते थे कि भारत को केवल अंग्रेजों से मुक्त कराने में उन्हें कोई रुचि नहीं है । वे तो भारत को सभी प्रकार की परतंत्रता से मुक्त कराने के लिए संकल्पित हैं ।स्वराज की स्थापना भारतवर्ष के 7 लाख गांवों की आत्मनिर्भरता में निहित है । हर व्यक्ति उसी समय स्वाधीन है जब गलत के लिए आत्मा की आवाज पर “ना” कहना सीख ले । गांधी जी के सपनों का स्वराज गरीबों का स्वराज है गांव का स्वराज है ।

प्रेम –गांधीजी ने प्रेम के बल को आत्मा और सत्य का बल माना । प्रेम में अद्भुत शक्ति छुपी हुई रहती है । प्रेम की शक्ति से अनेकानेक झगड़े बड़ी सरलता से सुलझ जाते हैं ।

गोपनीयता — गांधी जी का कहना था कि समाज और राष्ट्र हित में जिन बातों को उजागर नहीं किया जाना चाहिए उनके प्रति गोपनीयता की आदत रखना लाभदायक होता है ।

आत्मनिर्भरता — गांधीजी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति और समाज के लिए आत्मनिर्भरता
का आवश्यक है । प्रत्येक व्यक्ति को सबसे पहले शारीरिक एवं आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर रहने के लिए प्रयास करना चाहिए । गांधी जी अपने सभी कार्य स्वयं अपने हाथों से किया करते थे ।
न्यासिता या ट्रस्टीशिप –समाज और राज्य व्यक्ति को उसकी योग्यता अनुसार अर्थ उपार्जन का अधिकार देता है। इस कमाई में से अपनी आवश्यकतानुसार लेकर व पर व्यक्ति को न्यासी की भांति अपना अधिकार समझना चाहिए , अपना स्वामित्व नहीं ।

गांधीजी के सात सिद्धांतों को आज की परिस्थितियों में कोरोना को हराने के लिए सशक्त हथियार के रूप में अपनाएं —
पहला है सत्य : : कोरोना जांच के लिए स्वयं आगे आएं । संक्रमण की जानकारी देने में सत्य और ईमानदारी का व्यवहार करें ।
दूसरा आत्मानुशासन : : खुद पर नियंत्रण रखें। भीड़ में जाने से बचें ।
तीसरा सिद्धांत है स्वच्छता : : संक्रमण से बचाने में स्वच्छता एक कवच के रूप में कारगर है । चौथे स्थान पर है अपरिग्रह का सिद्धांत : : आवश्यकता से अधिक धन एवं वस्तुओं का संचय करने की प्रवृत्ति का त्याग परम आवश्यक है ।
पांचवा और महत्वपूर्ण सिद्धांत स्वरोजगार और स्वदेशी से आत्मनिर्भरता : : कोरोना काल में जकर रोजगार के लिए भटकने वाले भी बड़ी संख्या में संक्रमित हुए हैं । शासन प्रशासन और समाज तीनों का दायित्व है कि आत्म निर्भर बनाने के लिए गांधी जी के स्वरोजगार , स्वदेशी स्वावलंबन के सिद्धांत पर अधिकाधिक काम करें ।
छठे स्थान पर है भेदभाव से दूरी ;धर्म और जातिगत भेदभाव से परे रहते हुए समता मूलक वातावरण बनाए रखें ।और सातवां सिद्धांत है प्रकृति पर्यावरण संरक्षण :: गाँधी जी कहते थे कि प्रकृति में आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बहुत, है किंतु लालच के लिए नहीं।

महात्मा गांधी के जीवन और कार्यशैली ने विश्व के बड़े-बड़े समाज सुधारकों राजनेताओं जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर , नेल्सन मंडेला , सू की , दलाई लामा आदि के साथ ही लेटिन अमेरिका एशिया मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक राजनीतिक आंदोलनों को बड़ी गहराई के साथ प्रेरित किया ।गांधी जी के विचारों ने ना केवल दुनिया को प्रेरित किया बल्कि सत्य , अहिंसा , करुणा , सहिष्णुता शांति – प्रियता के दृष्टिकोण से भारत दुनिया में सुखद परिवर्तन लाने के लिए पूर्ण भूमिका निभाई उन्होंने विश्व भर में उत्पीड़ित समुदायों और बाशिएं पर पहुंचे समूहों की आवाज उठाने में अनुपम योगदान दिया उनके इस योगदान को सम्मानित करने के लिए लगभग 100 से अधिक देशों में उन पर डाक टिकट जारी किए जा चुके हैं संसार में में जहां कहीं भी मानवता को हानि पहुंचाने का कृत्य होता है वहां ऐसी गतिविधियों को रोकने में गांधीजी के सिद्धांत कारगर होते हैं , इसलिए उनके सिद्धांतों की प्रासंगिकता बनी रहती है ।

समाज में अधिकार और कर्तव्य के विषय में गाँधी जी की मान्यता यह रही कि अधिकार और कर्तव्य समाज में उसकी गरिमा और प्रतिष्ठा के जिम्मेदार माने जाते हैं । जिस समाज में व्यक्ति के अधिकार एवं कर्तव्य की संतुलित व्यवस्था होती है , वही श्रेष्ठता के मार्ग पर आगे सरलता से बढ़ता है और ऐसा समाज सुखी समाज बनता है । आइए हम भी विश्व कल्याण के लिए गाँधी जी के सुझाए हुए उपायों को यथा संभव अपनाकर उनके अनुसार कार्य व्यवहार करते रहें ।

उर्मिला देवी उर्मि ,
साहित्यकार,शिक्षाविद ,समाजसेवी
रायपुर,छत्तीसगढ़

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