सिमोन द बोउवार
20वीं सदी की महान् दार्शनिकों में से एक, स्त्रीवादी विमर्शों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सिमोन द बोउवार ।
वैश्विक नारीवादी आंदोलन की एक महत्वपूर्ण किरदार हैं। सिमोन द बोउआर इनका जन्म जनवरी 1908 में एक अमीर घराने में,फ़्रांस के पेरिस में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी जिसके चलते उनकी माँ जो एक बैंकर की बेटी थीं,उनके आस-पास नौकर रहते थे ,ने स्वयं घर का काम करना शुरू किया और सिलाई भी की । वे पढ़ना चाहती थीं।एक कैथोलिक स्कूल में उनकी शिक्षा हुई।उन्होंने नन बनने का स्वप्न देखा था। समय के साथ उनका ये स्वप्न पूर्ण नहीं हो पाया और वे एक नास्तिक बन गईं।साथ ही उनके बहुत पढ़ाई करने की एवं विश्लेषण करने की क्षमताएँ और बढ़ती चली गईं ।उनकी इस विलक्षण प्रतिभा का आभास उनके शिक्षकों एवं स्वयं सिमोन को काफ़ी पहले ही हो गया था इसलिए जो भी उन्होंने लिखा, उपन्यास हो,कहानी संग्रह हो,आत्मकथा या अन्य पुस्तकें सभी उनकी प्रतिभाओं को उजागर करता है।
सिमोन की पुस्तक “द सेकंड सैक्स” का नारीवाद आंदोलन में योगदान है। वे कहती हैं कि महिलाओं की बराबरी की बात करते समय हमें उनके जैविक अंतर की वास्तविकता को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। यह पुस्तक उनके जीवन के निजी अनुभवों पर आधारित हैं। इस पुस्तक की यह पंक्ति बेहद मशहूर है जहाँ वे कहती हैं कि
” औरत पैदा नहीं होती बल्कि समाज औरत को गढ़ता है”।वे बार-बार इस पर ज़ोर देती हैं कि हमारा धर्म,हमारी संस्कृति , हमारा समाज ,लड़कियों को मजबूर करता है स्त्री बनने के लिए ।यही कारण रहा कि वे आजीवन नास्तिक बनी रहीं ।वे कहतीं थीं कि इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हमारे धर्म में औरतों की पूजा होती है ,धर्म तो वास्तव में मर्दों द्वारा बनाया हुआ है ।यही तरीक़ा है औरतों पर शासन करने का ।
एक नारीवादी के साथ-साथ सिमोन दार्शनिकता से भी भरपूर थीं। वे चाहती थीं कि औरतों के पास अपने लिए “चुनने की आज़ादी “होनी चाहिए ।वे यह मानती थी कि हर इंसान एक वजह के लिए पैदा होता है ।इसी के साथ वे यह भी मानतीं थीं कि सिर्फ यही सोचना भी ग़लत होगा । जोन पोल स्त्राँ से मिलने से पहले उनकी यही सोच थी।उन दोनों की दार्शनिक असहमतियाँ 1940 के दौरान प्रकाशित भी हुई थी। उस समय तक दोनों ही अपने विचारों के लिए फ़्रांस में काफ़ी प्रसिद्ध हो चुके थे। इस दौरान सिमोन नीति शास्त्र के बारे में भी अपने कुछ विचार बना चुकी थी ।नीति शास्त्र के बारे में वे विचार आगे चल कर “द सेकंड सैक्स” की नींव बने।उनका कहना था कि समाज,इतिहास, मनोविशलेषण,जीव विज्ञान सब एक लड़की /औरत को “उत्तम स्त्री” के मापदंडों पर खरा उतरने के लिए इतना मजबूर करते हैं कि एक लड़की /महिला “मुक्त और ग़लती करने वाले इंसान” के तौर पर कभी स्वयं को देख ही नहीं पाती ।
वर्ष 1949 में उनके आलोचकों ने उन्हें महिला विरोधी,मातृ विरोधी, और विवाह विरोधी बताया ।लेकिन सिमोन ये कभी नहीं सोचती कि शादी नहीं करनी चाहिए या माँ नहीं बनना चाहिए ।उनका मानना था कि आर्थिक आत्मनिर्भरता औरत की अवश्य सहायक होती है लेकिन ये अपने आप में औरत को आज़ाद नहीं करती और न ही मातृत्व या शादी आज़ाद करते हैं ।इसलिए वह अपनी पुस्तक “द सेकंड सैक्स के ज़रिए औरतों के अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहती हैं ।उनका मानना था कि क्योंकि औरतें स्त्रीत्व के नामुनासिब मिथकों तक नहीं पहुँच पातीं,वे खुद को असफल समझती हैं।
उन्होंने 14अप्रेल 1986 को अपनी अंतिम साँसें ली ।उन्हें सार्त्र की कब्र के बगल में ही दफ़नाया गया ।स्त्री के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाली ,एक फ़्रेंच लेखिका ,अस्तित्ववादी दार्शनिक ,सामाजिक सिद्धांतकार, बुद्धिजीवी और राजनैतिक एक्टिविस्ट के तौर पर आज दुनिया याद करती है । ख़ास तौर पर नारीवादी अस्तित्ववाद और नारीवाद सिद्धांतों के बारे में उनके विचारों का हमेशा एक अलग ही स्थान रहेगा ।
विद्या भंडारी
लेखक परिचय;
एम ए हिन्दी,
पाँच काव्य पुस्तकें एवं एक लघुकथा की पुस्तक प्रकाशित।
कोलकाता की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय।
पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
कोलकाता में निवास।