राष्ट्रीयचेतना की सशक्त कवयित्री:सरोजिनी नायडू
“ऊँची उठती हूँ मैं, कि पहुँचूँ नियत डारने तक
टूटे ये पंख लिए,मैं चढ़ती हूँ ऊपर तारों तक |”
इन पंक्तियों की रचयिता स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना की भूमिका निभाने वाली सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत और काव्य क्षेत्र में अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से अपूर्व योगदान दिया।13 फरवरी,1879 में हैदराबाद में अघोरनाथ चटोपाध्याय और बरदा सुंदरी की आठ संतानों में सबसे बड़ी सरोजिनी जन्मजात प्रतिभाशाली थी।
ईश्वरीय गुणों की अलौकिकता उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व में स्पष्टतः परिलक्षित थी।बारह वर्ष की छोटी सी उम्र में ही मैट्रीकुलेशन की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने अपनी राष्ट्रीय पहचान स्थापित की थी। उनकी उच्च शिक्षा लंदन के किंग्स कॉलेज में संपन्न हुई थी |
बहुभाषी सरोजिनी नायडू उर्दू, तेलुगु अंग्रेजी, बंगला, हिन्दी और फ़ारसी समेत अन्य कई भाषाओं में निष्णांत थीं। सरोजिनी जी की काव्य प्रतिभा जन्मजात तो थी ही, साथ ही माता वरदा सुंदरी देवी का सशक्त विरासत भी लेखनी की धार को पैना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी।एक कवियित्री की पुत्री में काव्य-प्रतिभा का समावेश स्वाभाविक ही है।अंतर मात्र इतना था कि जहाँ उनकी माता बंगला में कविताएँ लिखती थीं वहाँ सरोजिनी ने विशेषरूप में अंग्रेजी को काव्य सृजन का माध्यम बनाया। उन्होंने साहित्य की काव्य विधा के साथ-साथ गद्य लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। सरोजिनी जी की साहित्य यात्रा का आरंभ सोलह वर्ष की अवस्था में हुआ। उक्त यात्रा को उचित दिशा देने में केंब्रिज के सुप्रसिद्ध लेखक आर्मर साइमन और एडमंड गौस जैसे महान व्यक्तित्व का अतुलित योगदान रहा। उन्होंने सरोजिनी जी को लेखन के विषय वस्तु हेतु स्वदेश अर्थात् भारत भूमि की ओर ध्यान केंद्रित करने का मशवरा दिया। कहते हैं विचारों की सशक्त अभिव्यक्ति अपनी माटी की सोंधी सुगंध में ही सहज संभव हो सकती है। भारत के विशाल पहाड़, नदियाँ, भव्य मंदिर, सामाजिक ‘परिदृश्य’ को काव्य में समेट कर भारतवासियों को संवेदनात्मक धरातल पर प्रभावित कर सृजन करना ही उनका अभीष्ट रहा।
भारत कोकिला के नाम से सुप्रसिद्ध सरोजिनी नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशभक्ति की कविता और गीतों के माध्यम से न केवल जन चेतना जगाने व देश भक्ति की भावना विकसित करने का कार्य किया अपितु उन्होंने देश की महिलाओं को भी जाग्रत किया तथा रसोई घर से बाहर आने का आह्वान किया। उनकी लेखनी महिलाओं के आत्मसम्मान, युवाओं के कल्याण, श्रमिकों की मान-मर्यादा और राष्ट्रवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत हुआ करती थी।
सरोजिनी भारत की पहली महिला थीं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। साहित्य के शीर्ष पर आरूढ़ सरोजिनी ने राजनीतिज्ञ के रूप में ख्याति अर्जित कर साहित्य व राजनीति में संतुलन के साथ ही बुद्धि व भावना के साम्य को भी प्रतिष्ठित किया। आजाद भारत में उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल का सम्मानित पद इसका जीवंत उदाहरण है।
कवियत्री सरोजिनी नायडू प्रतिष्ठित , विख्यात स्वतंत्रता सेनानी, प्रवक्ता व कुशल राजनीतिज्ञ थीं।काव्य के क्षेत्र में उनकी प्रशंसनीय उपलब्धि ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दी। उनकी कविताएँ लयबद्ध व गेयात्मक हुआ करती थीं।काव्य विषय के रूप में उन्होंने प्राय: समकालीन भारतीय जीवन व घटनाओं को मुखर स्वर प्रदान किया।सन् 1905 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘द गोल्डन श्रेशोल्ड’ प्रकाशित हुआ था। इसके गेयात्मक पदों के कारण ही ‘बुलबुले हिंद,’नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’, भारत कोकिला जैसा उपनामों से सम्मानित हुई। पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर सरोजिनी की काव्य क्षमता से प्रभावित व चमत्कृत थे। सरोजिनी जी ने मुहम्मद अली जिन्ना की जीवनी “द एंबेसडर ऑफ हिंदू मुस्लिम यूनिटी’ शीर्षक से लिखी ।
भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने अपनी कविताओं और विचारों के माध्यम से स्त्री सशक्तिकरण के उपयुक्त मायने बताए। उनका कहना था कि यदि पुरूष देश की शान है तो महिला उस देश की नींव है। सराजिनी जी की काव्यात्मक विचार धारा की अनुभूति हेतु उनकी कुछ कविताओं पर विचार करना समीचीन होगा ।
‘नारी’ शीर्षक कविता देखें-
बचपन में माँ ने नारी का किरदार निभाया है,
उसने ही तो हमें ठीक से चलना, बोलना और पढ़ना सिखाया है,
उम्र जैसे बढ़ी तो पत्नी ने नारी का रूप दिखाया है,
उसने हर परिस्थिति में हमें डटकर लड़ना सिखाया है,
फिर बेटी ने नारी का रूप अपनाया है, दुनिया से प्यार करना सिखाया है,
और तो क्या ही
लिखू मैं नारी के सम्मान में
हम सब तो खुद ही गुम हो गए हैं अपने ही पहचान में |
उक्त कविता में कवियित्री सरोजिनी ने स्त्री के समस्त पक्षों को एक पुरूष के नजरिये से प्रस्तुत कर स्त्री के सशक्त पक्षों को पाठकों के समक्ष रखा है। नारी के सम्मान हेेतु समस्त पुरूष वर्ग को सजग किया है। देश भक्ति के रंगों में रंगी “भारत देश है प्यारा’ की पंक्तियाँ द्रष्टव्य है।
भारत देश है हमारा बहुत प्यारा,
अलग-अलग हैं यहाँ सभी के रूप रंग,
पर सुर सब एक ही गाते,
झंडा ऊँचा रहे हमारा,
हर परदेश की है यहाँ अलग एक जुबान,
पर मिठास की है सभी में शान
अनेकता में एकता को पिरोकर
सबने हाथ से हाथ मिलाकर देश संवारा।
जैसी कविता भारतवर्ष की एकता और अखंडता को मुखर स्वर प्रदान करती है।
कवियत्री परिवर्तन की आकांक्षी हैं परिवर्तन हेतु पारंपारिक सोच में बदलाव व विस्तार अपेक्षित है। “बदलता हूँ शीर्षक कविता की चंद पंक्तियाँ द्रष्टव्य है-
मैं सोच भी बदलता हूँ
मैं नजरिया भी बदलता हूँ
मिले न मंजिल मुझे
तो मैं उसे पाने का जरिया भी बदलता हूँ ,
बदलता नहीं अगर ….
तो मैं लक्ष्य नहीं बदलता हूँ
उसे पाने का पक्ष नहीं बदलता हूँ
उक्त कविता का निहितार्थ कितना गंभीर और प्रेरक है। दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास से पूर्ण कवियित्री ही ऐसी भाव-व्यंजना प्रस्तुत कर सकती है। उर्वर मस्तिस्क साहित्य भूमि को ही समर्पित था तभी तो गणित की पुस्तिका में 4300 पंक्तियों की कविता लिख कर पिता को दांतो तले ऊगली दबाने को बाध्य किया तथा गणितज्ञ बन बुद्धिपरक क्षेत्र की अपेक्षा साहित्य की भावभूमि को उर्वरता प्रदान की |
अंततः कहा जा सकता है कि भारत कोकिला सरोजिनी नायडू का विशाल काव्य भंडार युगों युगों तक भारत की भावी पीढ़ियों को प्रेरित व आंदोलित करता रहेगा।
जन-जागरण के साथ ही महिला जागरण का जो बिगुल उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से फूंका था उसके शंखनाद से भारत के प्रांत-प्रांत सदैव अनुगूंजित रहेंगे ।
सुमेधा पाठक
बिहार, भारत
लेखक परिचय;
प्राध्यापिका, तपिंदु इंस्टीट्यूट ऑफ हायर स्टडीज,पटना में।श्रद्धा सुमन पुरस्कार (२०१६), बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा चतुर्वेदी प्रतिभा मिश्र सम्मान (२०१६), महाकवि केदारनाथ मिश्र प्रभात स्मृति सम्मान से सम्मानित।