संवेदनशील कलम की धनी-टोनी मोरिसन
टोनी मोरिसन एक प्रख्यात अमेरिकी कवयित्री, नाटककार, और उपन्यासकार थीं। मॉरिसन ने अफ्रीकी अमरीकी जीवन को गहराई से जिया और उनमें से कहानियाँ गढ़ कर लोगों के सामने रखा। उनका लेखन मनोरम, काव्यमय गद्य का बेहतरीन उदाहरण है।
यूँ तो सुरुचिपूर्ण लेखन में उनका परम विश्वास था, परन्तु जो तत्व उनके लेखन को विशेष बनाते हैं वे केवल साहित्यिक दक्षता तक सीमित नहीं हैं! उन्होंने अन्याय, उत्पीड़न, नस्लवाद और मानवीय पहचान की तलाश को पन्नों पर उतारा और अश्वेत जीवन के अनूठे दस्तावेज लिखे!उनके साहित्य में अफ़्रीकी, इण्डियन-अमेरिकी, यूरोपियन मिथकों का भरपूर प्रयोग है। मॉरीसन ने अन्य अफ़्रो-अमेरिकन साहित्यकारों को आगे बढ़ाने में भी महती भूमिका निभाई।
टोनी मोरिसन का जन्म 18 फ़रवरी 1931 में अमेरिका के ओहायो राज्य में हुआ। उनकी माता रामाह और पिता जॉर्ज वोफ़र्ड थे। उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय से अंग्रेजी शास्त्रीयता में अध्ययन किया और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में टीचर्स कॉलेज से मास्टर्स किया।
बरसों तक टोनी मॉरीसन ने रैंडम हाउस में संपादक की हैसियत से काम किया। उन्होंने लगभग अपना समस्त लेखन अंग्रेजी में ही संवारा।उनके व्यापक लेखन में शामिल हैं दस उपन्यास, सात गैरकाल्पनिक कार्य, दो नाटक और तीन बच्चों की कहानियाँ।
टोनी सदैव विलियम फ़ॉक्नर, वर्जीनिया वुल्फ़ तथा जेम्स जॉयस के लेखन से प्रभावित रहीं, परन्तु उनके लेखन की अपनी स्वतंत्र शैली रही! आज उनके स्वयं के काम पर केन्द्रित बहुत सी पुस्तकें उपलब्ध हैं, परन्तु एक समय था जब उन्हें साहित्यिक उपेक्षा का सामना करना पड़ा और उन्हें सही मूल्यांकन न हो पाने का दुःख रहा!
मॉरीसन की सफलता ने धीरे-धीरे इतनी ऊँचाई प्राप्त कर ली कि उनके लेखन का सही मूल्यांकन करने के लिए समलिंगी, अश्वेत, अश्वेत महिला साहित्य के लिए नई कसौटियाँ बनी और उन्हें अप्रत्याशित मान्यता मिली!
उनके पहले उपन्यास ‘द ब्लूएस्ट आई’ को प्रकाशक मिलने में समय लगा। परन्तु 1970 में जब ‘दब्लूएस्ट आई’ छपी तो उसने पाठकों को चौंका दिया।यह 11 साल की अफ्रीकी बच्ची की कहानी है जिसे जीवन भर इतना बदसूरत महसूस कराया गया कि उसने नीली आँखों वाली सुन्दरी बनने का सपना पाला! किताब पढ़ने में आसान नहीं थी पर, जो पढ़ लेता था उसे भूल नहीं पाता था!
उसके बाद 1973 में उनकी किताब ‘सुला’ आई, जिसने उन्हें ‘राष्ट्रीय पुस्तक पुरस्कार’ के लिए नामांकित करवाया। सुला की नायिका भी एकदम गैर पारंपरिक थी! 1977 में मॉरिसन ने अपनी पुस्तक ‘सॉन्ग ऑफ़ सोलोमन’ के लिए ‘नेशनल बुक क्रिटिक्स सर्कल अवार्ड’ जीता। उनका सबसे प्रसिद्ध और शायद सबसे अच्छा काम, ’बिल्वेड’, 1987 में प्रकाशित हुआ। हुआ यह कि 1974 में टोनी मॉरीसन ने अमेरिकी अश्वेत गुलामी का तीन सौ साल का लेखा-जोखा तैयार करना शुरू किया। यह स्मृति एलबम उन्होंने ‘द ब्लैक’ नाम से बनाया। इस इतिहास को दर्ज करने का अनुभव उनके आगे के कामों की पूँजी बना। यहाँ से उन्हें अपने लेखन की थीम, भाव, प्रतीक, बिम्ब, छवि, प्रतिमाएँ प्राप्त हुए।यहीं से उन्हें ‘बिलवड’ के बीज मिले। इसी शोध के सिलसिले में उन्हें उन्नीसवीं सदी की एक पत्रिका की कतरन मिली जिससे ‘बिलवड’ की सोच का जन्म हुआ। दस साल की मेहनत, चिन्तन-मनन का परिणाम है यह उपन्यास ‘बिलवड’। एक बार उन्होंने कहा था-“यदि कोई पुस्तक है जिसे आप पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उसे अभी तक लिखा नहीं गया है, तो आपको इसे लिखने के लिए एक होना होगा।”
‘बेल्वेड’ को ओपरा विन्फ्रे अभिनीत एक फिल्म में रूपांतरित किया गया| 1988 में उन्होंने ‘बेल्वेड’ केलिए‘पुलित्जर’ पुरस्कार जीता।1993 में उनको साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कियागया।
मॉरिसन की अन्य कृतियों में टार बेबी (1981), उनकी एकमात्र लघु कहानी, “रिकिटेटिफ” (1983), जैज (1992), पैराडाइज (1998) शामिल हैं। मोरिसन की कविताएँ भी बहुत लोकप्रिय हैं। इनके अलावा उन्हें अमेरिकी कला और विज्ञान अकादमी से गोल्ड मेडल (1996), फ्रेंच लेजियों द्वारा राजीवगाँधी मिराबहनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान (1994), अमेरिकी भाषा की ज्ञान-विज्ञान एकाडेमी से विलियमदीन हावेलॉक मेडल (1996), और अमेरिकी कला और पत्रकारिता संघ के लोन टेनेनबॉम पुरस्कार(2015) जैसे कई अन्य पुरस्कार भी प्रदान किए गए हैं।
15 महाविद्यालयों ने उन्हें डिग्री प्रदान की है! मॉरिसन ने कई बच्चों की किताबें भी लिखीं। 1999 में मॉरिसन की पहली बच्चों की किताब, दबिग बॉक्स, प्रकाशित हुई। जिनमें हू गॉट गेम ?: द एंट ऑर ग्रासहॉपर शामिल हैं। और हूज़ गॉट गेम; द लायन ऑर माउस ? उन्होंने अपने बेटे स्लेड के साथ मिलकर किताब पर काम किया और 2003 में ये प्रकाशित हुईं।
5 अगस्त 2019 को, 88 वर्ष की अवस्था में, वे इस दुनिया से अलविदा कह गईं! रह गई उनकी किताबें, उनकी दिखाई अश्वेत जीवन की झाँकियाँ और उनकी बोली यह उक्तियाँ:
”हम मरेगें यह जीवन का अर्थ हो सकता है। लेकिन हमारी भाषा हमारे जीवन का मापक हो सकती है।”
“यदि आप उड़ना चाहते हैं तो आपको अनचाही चीजों का त्याग करना होगा जो आपका वजन कम करते हैं!”
शार्दुला नोगजा
हिन्दी कवयित्री और ऊर्जा विशेषज्ञ
सिंगापुर,
लेखक परिचय…
जर्मनी से कम्प्यूटेशनल अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर शार्दुला, पिछले २६ साल से ऊर्जा एवं तेल क्षेत्र में कार्यरत हैं। उनकी कविताएँ कई अंतर्राष्ट्रीय काव्य संकलनों, प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और‘कविता कोश’ में सम्मिलित हैं। वे “अनन्य सिंगापुर” की संपादक हैं और “कविताई” समूह की संस्थापक हैं। वे ‘हिन्दी से प्यार है’ की कोर सदस्य हैं और उनके ‘साहित्यकार तिथिवार’ परियोजना की संचालक हैं।