महारानी विक्टोरिया
यूँ तो माँ भारती की वीरभूमि में कई महानायिकाओं ने जन्म लिया है। किन्तु विश्वमंच भी ऐसी कई महान विभूतियों से भरा पड़ा है। झोपड़ी से लेकर महलों तक में इन वीरांगनाओं की प्रखर ओजस्वी गाथाएँ आज भी गाई जाती हैं। इनकी विशेषताओं और जज़्बे ने इतिहास रच डाला है। भारत की रानी लक्ष्मी, पद्मावती, रज़िया सुल्तान, दुर्गावती आदि की तरह विश्व में भी कई रानियाँ महारानियाँ अपना परचम लहरा चुकी हैं। ऐसी ही एक महत्वाकांक्षी महानायिका हैं महारानी विक्टोरिया। कहने को तो ये भारत की एकछत्र शासिका रही हैं। किंतु अपनी जुनूनीयत व दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर जगप्रख्यात हो गई ।
रानी मूलतः राजघराने से ताल्लुक रखती थीं। इनका जन्म 24 मई 1819 को किंग्स्टन पेलेज लंदन यूनाइटेड किंगडम में हुआ था। इनके पिता का नाम था प्रिंस एडवर्ड एवं माता सक्से कोबर्ड सालफेंड की राजकुमारी थी। इनका पूरा नाम एलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया है। रानी के पूर्वज थे प्रिंस विलियम। अठारह माह पश्चात पिता का देहांत हो गया। ऐसे में माँ के सहायक बने उनके भाई। रानी की परवरिश में उनके मामा की अहम भूमिका रही है। मामा ने ही उन्हें राजकाज सिखाया।
वंश में कोई उत्तराधिकारी नहीं होने से 20 जून 1837 को विक्टोरिया का 18 वर्ष की उम्र में राज्याभिषेक धूमधाम से किया गया।
सन 1840 में वे प्रिंस अल्बर्ट की दुल्हन बन गईं। प्रारम्भ में वे पति से राजकार्य में कोई सलाह नहीं लेती थी। बस अपने मन की महारानी थी। उन्हें स्वयं सम्राज्ञी बनना था न कि सम्राट की पत्नी। किन्तु धीरे-धीरे एक पतिपरायण स्त्री की तौर राजकुमार एडवर्ड 7, राजकुमारियाँ विक्टोरिया रॉयल एलिस आदि से महारानी की बगिया महक उठी।
इस तरह दो-दो जिम्मेदारियां वहन करते हुए वह आगे बढ़ती गई।
किन्तु होनी को कौन टाल सकता है। सन 1861 में पति के देहांत से वे पूरी तरह टूट गई व एकांतवास में चली गई।
परिणामस्वरूप यू के में गणतन्त्रवाद हावी होने लगा। किंतु जिजीविषा भी भला कभी मरती है। वे पुनः दुगुने जोश से राजकार्य में जुट गई। वह सैन्य, औद्योगिक, वैज्ञानिक व राजनैतिक परिवर्तन का काल था। सन 1876 में रानी को भारत की महारानी का ख़िताब प्रदान किया गया। वे एक संवैधानिक साम्राज्य की राष्ट्रीय प्रतीक बन गई। शासन व समाज में कई यथोचित परिवर्तनों का श्रेय महारानी को जाता है।
राजाओं के राज्य में सेवकों व अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति ममत्व के भाव से वे प्रजा के दिलों पर राज करने लगी। किन्तु राजनीति में दबदबा बनाए रखा। लोग उन्हें कठोर राजनीतिज्ञ भी कहते हैं। साथ ही वे चरित्रवान व अनुशासनप्रिय भी थी। ख़ुद काम करती थी। इन्हीं के काल में रेल व तार का आविष्कार भी हुआ। शासन की छोटी छोटी बातों का ध्यान वे रखती थी। रक्तहीन क्रांति, व्यापार क्रांति भी दृढ़ता से झेली।
सन 1858 में ईस्ट इंडिया कम्पनी अंग्रेजों ने संभाली। यह दायित्व महारानी ने बखूबी निभाया। वे यूके, आयरलैंड व भारत की सम्राज्ञी बन गई। शासन का 50 वर्ष का जश्न मनाया गया। और तो और उनकी लोकप्रियता की दुन्दुभि यूरोप में भी गूंजने लगी। वे यूरोप की दादी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
इस तरह 63 वर्ष 216 दिन तक शासन किया ।
इसे “विक्टोरिया काल” भी कहा जाता है। पिछले रेकॉर्ड का यह सबसे लंबा काल था। कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल सम्राज्ञी की स्मृति कराता रहेगा। महारानी की याद में आज भी यू के में उनकी सिल्वर व डायमंड जुबिली मनाई जाती है।
महारानी की खिदमत में आगरा से मुंशी अब्दुल करीम को भेजा गया था। वे महारानी के 13 वर्ष तक उर्दू के शिक्षक बने रहे।उनकी कुल नौ संताने हुई | उनके जीवित वंशज एलिजाबेथ 2, प्रिंस फिलिप, ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग आदि हैं। 22 जनवरी 1901 के दिन सबके ह्रदय की साम्राज्ञी ने इस संसार से विदा ले ली।
सरला मेहता
लेखक परिचय:—
अंग्रेजी में स्नातकोत्तर
बी एड की पढ़ाई ।
मुख्यत: हिंदी में लेखन | अंग्रेजी व मालवी लेखन में भी सक्रिय ।
गद्य व पद्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन कार्य । वर्तमान में इंदौर में निवास |