संपादक की बात

संपादक की बात

चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है !
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है
(आर सी प्रसाद)

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
( केदार नाथ अग्रवाल)

जीवन वस्तुत: हर किसी के लिए एक उतार चढ़ाव भरी यात्रा है | जीवन में एक मुकाम पा लेना एक मनुष्य के लिए आवश्यक भी माना गया। पर अगर एक स्त्री के संदर्भ में बात की जाए तो यकीनन हर स्त्री की जीवन यात्रा एक संघर्ष भरी यात्रा ही कहलाएगी। वे एक ऐसी जुझारू यात्री हैं जिन्होंने जीवन में पग पग पर विरामों को देखा,महसूसा और झेला।कई बार उससे पार हुईं तो कई बार इस पार ही रह गईं।
वैसे आज के समय की बात करूँ तो आज भी स्त्री, संघर्ष से अपना हाथ पूर्णत: कहाँ छुड़ा पाई है, स्त्री को ,मनुष्य समझा जाए यह स्त्री जाति की सबसे बड़ी पुकार रही। विगत समय की कल्पना करना रूह काँपने सी स्थिति पैदा करता है | वैसे हमारे वैदिक काल में भी अपाला, गार्गी, मैत्रेयी,लोपामुद्रा जैसी अनेक विदुषी ॠषि स्त्रियाँ हुईँ और आज की नारी ने तो विस्तृत आसमां में ऊंची उड़ान भरी हैं और दिन पर दिन नये नभ की तलाश में सफल हो रही हैं पर जहाँ तक आज पहुँच पाई है, कहना अतिशयोक्ति न होगी कि वे बहुत दूर से चल कर आ रही है |हम आज की नारी को बढ़ते देख आह्लादित हैं और विगत समय की बस परिकल्पना ही कर सकते हैं ।
अपने देश में भी महिलाओं ने लंबी यात्रा तय की है ,अथक संघर्षों को झेला है। वे शिक्षा तक से वंचित की गईं और घर परिवार तक सीमित रहीं पर भारतीय स्त्री का स्वाभिमान उनका गहना रहा जिसके दैदीप्यमान प्रकाश के जरिए उन्होंने अपने संघर्षों को झेला और अपने परिवार और तदुपरांत एक उच्च समाज को गढ़ने की अपनी भूमिका को बखूबी निभाया। |
कहते भी हैं …
नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति।
यानि
महिलाएं समाज की आदर्श शिल्पकार होती हैं।

यह जानना अनमनस्क कर देता है कि पूरे विश्व में और हर सदी में महिलाएं एक सी स्थितियों से गुजरीं हैं | अक्सर हम सोचते हैं कि चुकीं पश्चिम अपेक्षाकृत एक विकसित क्षेत्र है तो वहाँ स्त्रियाँ बेहतर आर्थिक,सामाजिक और पारिवारिक जीवन व्यतीत करतीं होंगी पर विश्व की महनायिकाओं पर आधारित इस श्रृंखला से गुजरते हुये विश्व भर की स्त्रियों की संघर्ष गाथा से आप परिचित होंगे |इस श्रृंखला में उन स्त्रियों की कथा है जिन्होंने हर संघर्षो को पार कर अपना एक मुकाम बनाया और इसलिए आज उन्हें हम “महनायिका” का दर्जा दे रहे हैं |इस श्रृंखला में हर सदी कि महनायिकाएँ अपनी कहानी ले कर उपस्थित है ,वे हर क्षेत्र से हैं , वे नेत्री हैं, लेखिका हैं, एक्टीविस्ट हैं, क्वीन हैं । अपनी जीवटता से एक ऊंचाई को उन्होंने प्राप्त किया है कि आज उनकी कहानी जानने को हम उत्सुक हैं।
इससे एक तस्वीर साफ होती है कि अपने देश या परदेश, जहाँ भी स्त्रियों ने “हिम्मत” दिखाई, पितृसत्तात्मक समाज के आगे घुटने नहीं टेके, वहाँ एक इतिहास रच दिया, अपना वितान पा लिया, लपक कर चांद को अपनी झोली में ले लिया और सूर्य का ताज पहन लिया!

तभी शायर मजाज ने भी कहा ..
“तिरे माथे पे ये आँचल तो बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था”

मैं साधुवाद देती हूँ सभी लेखिकाओं को जिन्होंने इन जुझारू महिलाओं पर अपनी कलम चलाई । मैं अर्पणा संत सिंह जी की विश्व की महानायिकाओं की यशगाथा को समेटने की अद्भुत परिकल्पना के लिए धन्यवाद देती हूँ और मुझे संपादक की भूमिका सौंपने के लिए शुक्रिया अदा करती हूँ । वैसे मेरी भूमिका एक सूत्रधार की है पर मैने इस परियोजना पर काम करते हुए विश्व भर की महानायिकाओं के संघर्षों और सफलताओं की सीढ़ियों को आत्मिक तौर पर महसूस किया और समस्त महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत माना ।
वास्तव में स्त्री हर सदी में, हर दिशा में वह शक्ति पुँज है जो अपनी परिभाषा खुद तय कर सकती है।।

“उन्होंने जमीं को दरख्त बनाया
झिर्री से आसमां दिखाया
वे किरणें थीं
रोशनी बन फूट पड़ीं”

रानी सुमिता
ranisumita4@gmail.com

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