कॉस्टिल और ऑरेगॉन की रानी, कैथोलिक मोनार्क – ईसाबेला प्रथम – एक अद्भुत व्यक्तित्व
कॉस्टिल और ऑरेगॉन की रानी ईसाबेला प्रथम का नाम पहली बार मैंने ग्रेनाडा में सुना था | वर्ष २०१८, अक्टूबर महीने का अंत, मैं अपने पति और बेटे के साथ स्पेन के सबसे ऐतिहासिक शहर ग्रेनाडा में, मशहूर अल्हम्ब्रा किले को देखने के लिये चढ़ाई चढ़ रही थी | इस्लामी वास्तुकला का अतुलनीय उदाहरण, यह किला एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है | पतझड़ के मौसम में पूरा स्पेन और विशेषतयः ग्रेनाडा और भी मनमोहक हो जाता है | नीलम जैसा खुला आसमान और दूर चमकती हुई बर्फीली पहाड़ियां | सारा शहर हरियाली से भरपूर और रंगबिरंगे फूलों से सजा हुआ | जैसे कि स्वर्ग का एक टुकड़ा जमीन पर उतर आया हो |
(लेखिका नीरजा राजकुमार, ग्रेनाडा ,स्पेन में अलहम्ब्रा किले की ओर अपने पुत्र और पति के साथ जाते हुए, अक्टूबर २०१८)
किसी भी देश का इतिहास उसके भूगोल में छिपा होता है | ईसाबेला प्रथम का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है स्पेन का एकीकरण | यह कैसे संभव हुआ समझने के लिए थोड़ा स्पेन के भूगोल पर नज़र डालें | आधुनिक स्पेन, आइबेरियन प्रायद्वीप में उत्तर में फ्रांस और पश्चिम में पुर्तग़ाल (एक कतरन की तरह) से घिरा है | स्पेन के तटीय क्षेत्र अधिकतर भूमध्य सागर और उत्तरीय अटलांटिक महासागर को छूते हैं | मध्यकालीन युग (१५वीं शताब्दी) में कॉस्टिल, आइबेरियन प्रायद्वीप के बीचों बीच, पूर्व में ऑरेगॉन और पश्चिम में पुर्तगाल से घिरा था | और ऑरेगॉन फ्रांस और कॉस्टिल के बीच का हिस्सा था | दक्षिण में ग्रेनाडा था और पूरा क्षेत्र छोटे छोटे रजवाड़ों में बंटा था |
सबसे ग़ौरतलब बात है कि स्पेन का सुदूर दक्षिण छोर उत्तरी अफ़्रीका के देशों से लगभग मिला हुआ है| ज़िब्राल्टर जलसंधि पूर्व में भूमध्य सागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर को जोड़ती है और इसकी चौड़ाई, अपने सबसे करीबी बिंदुओं पर, स्पेन और उत्तरी अफ्रीका के बीच केवल १४.३ किलो मीटर है | ज़ाहिर सी बात है कि यह दूरी बड़ी बड़ी नावों से भी बड़ी ही आसानी से पार की जा सकती थी | इस तथ्य का और जिब्राल्टर जल संधि के व्यवसायिक और राजनैतिक दोनों पहलुओं से अत्यंत महत्वपूर्ण होने का, स्पेन के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा |
(पंद्रहवीं शताब्दी के स्पेन का एक नक्शा )
मध्य काल के आरम्भ में उत्तर अफ्रीका में स्थित मोरक्को से आये हुए अरबों (जिन्हे मूर्स भी कहा जाता है) ने स्पेन के ग्रेनाडा, कॉरडोबा और सवेल्ल (तीनों को मिला कर अण्डुलिसिआ नामक क्षेत्र) पर कब्ज़ा कर के लगभग आठ सौ साल तक राज्य किया | मध्य तेहरवीं शताब्दी के दौरान आलीशान अलहम्ब्रा का किला मोहम्मद इब्न युसूफ बेन नासर उर्फ़ अलहमर ने ग्रेनाडा में बनवाया था | पंद्रहवीं शताब्दी (सन १४९२) में ग्रेनाडा को कैथोलिक ईसाईयों ने ईसाबेला प्रथम के नेतृत्व में जीत कर स्पेन का एकीकरण किया और अण्डुलिसिआ क्षेत्र में ईसाई धर्म फैलाया | इस उपलब्धि को सराहते हुए उस समय के स्पेन के पोप एलेग्जेंडर षष्टम ने ईसाबेला प्रथम और उसके पति फर्डिनांड द्वितीय को कैथोलिक मोनार्क (रानी और राजा) की उपाधि से अलंकृत किया था | लेकिन उसके भी पहले ईसाबेला ने अपने विवाह के ज़रिये कॉस्टिल और ऑरेगॉन को एक किया | यह सब कैसे हुआ, देखते हैं |
गोरी चिट्टी, नीली आँखों वाली ईसाबेला केवल रूपवती ही नहीं थी वह एक अद्भुत व्यक्तित्व की स्वामिनी भी थी | कुशाग्र बुद्धि और राजनैतिक दाँव पेंचों में निपुण वह एक बहुत ही साहसी, स्वतंत्र विचारों वाली और निडर महिला थी | पुरूषों के स्वामित्व वाले इस संसार में एक महिला को अपनी जगह बनाना हमेशा से ही मुश्किल था और आज भी है, पर हम बात कर रहे हैं पन्द्रहवीं शताब्दी की, जब यह बात शायद कल्पना से भी परे रही होगी | ईसाबेला के राज्य काल का कुछ हिस्सा अंध युग (dark ages) और कुछ भाग पुनर्जागरण युग (Renaissance) में आता है | अंध युग के माहौल में ईसाबेला पहले तो रानी (वास्तव में शासक – केवल नाम के लिए नहीं) बनी और फिर अपनी कुशल राजनीति और सशक्त शासन से स्पेन का राजनैतिक भूगोल बदल कर एक नया इतिहास रचा | यही नहीं, उसने आधुनिक स्पेन की नीव भी रखी |
(आधुनिक आइबेरियन प्रायद्वीप का नक्शा जहाँ एकीकरण के बाद का स्पेन, और पुर्तगाल देखे जा सकते हैं | बार्सेलोना और वेलेंशिया को केटलोनिआ क्षेत्र में अलग रंग से दिखाया गया है, हालाँकि केटलोनिआ क्षेत्र स्पेन का हिस्सा ही है ।)
(स्पेन की पहली महिला शासक और कॉस्टिल तथा ऑरेगॉन की रानी, ईसाबेला प्रथम का तैल चित्र)
इस अद्भुत महिला के शासन का वह हिस्सा अंध युग में आता है जहाँ उसने अरबों / मूर्स और यहूदियों को स्पेन से निकाल कर ईसाई धर्म की कैथोलिक शाखा की पूरे अण्डुलिसिआ क्षेत्र में स्थापना की | ईसाबेला प्रथम और उसके पति फर्डिनांड द्वितीय ने स्पेनिश इन्कुइसिशन (inquisition) की भी स्थापना की | यूँ तो इन्कुइसिशन का मतलब होता है ‘न्यायिक जाँच’ पर स्पेनिश इन्कुइसिशन का एक ख़ास उद्देश्य था | शाही फ़रमान निकलवाये गये कि जो भी यहूदी और मुस्लमान, ईसाई धर्म के कैथोलिक संप्रदाय को स्वीकार नहीं करते, उन्हें देश निकाला दे दिया जाये | ज़ाहिर है कि राजसी प्रकोप से बचने के लिये कई यहूदियों और मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन कर लिया और ईसाई बन गये | पर क्या प्रमाण था कि यह लोग छुप कर फिर वापिस अपना धर्म न बदल लें ? इसी संभावना को रोकने के लिये स्पेनिश न्यायिक जांच की स्थापना हुई जिसका काम था संदिग्ध लोगों की छानबीन करना और यदि दोषित पाया जाये तो दंड देना | ईसाबेला प्रथम और उसके पति फर्डिनांड द्वितीय ने वर्ष १४८३ में न्यायिक जांच को अपने शाही नियंत्रण में ले लिया जिसके अध्यक्ष ईसाबेला के कंफ़ेसर थॉमस डे टॉरक्वेमाडा (Thomas de Torquemada) थे | कैथोलिक धर्म के अनुयायी अपने कंफ़ेसर, जो कि उनका पादरी या गुरु भी होता है, की उपस्थिति में पर्दे के पीछे अपने गुनाहों का इक़बाल नियमित रूप से करते हैं |
जैसा पहले भी कहा गया है, न्यायिक जांच का इस्तेमाल यहूदियों और मुसलमानों को ईसाई बनाये रखने में किया जाता था | ईसाई धर्म के ख़िलाफ़ कुछ भी कहना देशद्रोह माना जाता था और जो अपना धर्म परिवर्तन नहीं करते थे उन्हें या तो स्पेन छोड़ना होता था या मृत्यु दंड स्वीकारना होता था | क्रूरता चरम सीमा पर पहुँच गयी | सन १४९२ में ग्रेनाडा युद्ध में विजयी होने के बाद ईसाबेला प्रथम को लगा कि जिस धार्मिक उदारता की बात अरबों और मूर्स के आत्म समर्पण के समय हुई थी, वह तोड़ी जा रही थी | उसने जब अपने कंफ़ेसर से समक्ष अपनी यह विडम्बना रखी, तो इतिहासकार कहते हैं कि उसके कंफ़ेसर थॉमस ने ज़ोर का व्यंग्य कसा | थॉमस ने कहा कि ‘जूड़ा ने अपने स्वामी (ईसा मसीह) को चांदी के ३० सिक्कों में बेच दिया | तुम इस क्रॉस का क्या लोगी ?’ धर्मभीरु ईसाबेला घबड़ा कर पीछे हट गई और क्रूरता जारी रही | २० हज़ार यहूदी परिवार स्पेन छोड़ कर इस्तांबुल, मोरक्को, उत्तरी अफ्रीका के अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर हो गए |बहुतों ने ईसाई धर्म अपना लिया | मगर शक़ के दायरे में बने रहे | न्यायिक जांच के दौरान हज़ारों लोगों को पकड़ा जाता और मृत्युदंड दिया जाता | पूरे स्पेन में रक्तपात हुआ और काफ़िरों (जिन्हे ईसाई धर्म में विश्वास नहीं) की बस्तियों को आग में झोंका गया |
ईसाबेला प्रथम ने धर्म की आड़ में राजनीति की – अरबों/ मूरों और उनके साथ इस्लाम को अपने देश से निष्कासित किया और एक कैथोलिक ईसाई धर्म वाले स्पेन का एकीकरण किया या राजनीति को हथियार बना कर पूरे क्षेत्र में ईसाई धर्म फैलाया, यह बिन्दु थोड़ा सा विवादास्पद है । यह सच है कि ईसाबेला प्रथम कैथोलिक संप्रदाय के प्रति पूरी तरह समर्पित थी पर यह भी सच है कि ईसाई धर्म की कट्टर कैथोलिक विचारधारा एक महत्वपूर्ण धुरी बनी जिसके इर्दगिर्द ईसाबेला प्रथम और फर्डिनांड द्वितीय ने एक साझा दुश्मन (इस्लाम) पर निशाना साधा और राजनैतिक एकता बनाई | धर्म और राजनीति दोनों का ही इस्तेमाल सदियों से सत्ता बटोरने और मानव जाति के शोषण के लिये हुआ है । सारे धर्म अंततः प्रेम और अहिंसा का पाठ ही पढ़ाते हैं परंतु इस धरती पर धर्म के नाम पर ही सबसे अधिक रक्त पात हुआ है और ज़ुल्म ढाये गये हैं । स्पेन भी कोई अपवाद नहीं था | वहां पहले मूरों ने आंदुलिसिया क्षेत्र का इस्लामीकरण किया और ८०० साल बाद ईसाबेल प्रथम ने वहां से इस्लाम को निष्कासित कर अपने कैथोलिक धर्म की स्थापना की |
ईसाबेल प्रथम के राज का दूसरा हिस्सा पुनर्जागरण युग में आता है जहाँ उसने भोगौलिक खोजों, शिक्षा और जनता के स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया | रानी बनने के बाद उसने स्कूल और अस्पताल ख़ासतौर पर सैनिक अस्पताल बनवाये, कला और विद्वत्ता को बढ़ावा दिया और चित्रकारों को प्रोत्साहन दिया | उसने कोलंबस के भारत खोजो अभियान को पूरी वित्तीय सहायता दी थी | उस समय यूरोप का हर देश भारत को खोजना चाहता था | कारण था भारत के मसाले, खासतौर से काली मिर्च | भारत के केरल क्षेत्र में भरपूर रूप से पैदा होने वाली काली मिर्च को अरब लोग रोम तथा यूरोप के अन्य देशों तक सदियों पहले से पहुंचाते थे | यह इतनी मंहगी थी कि ‘काला सोना’ कहलाती थी | यह इतनी बहुमूल्य थी कि रोम साम्राज्य के एक भूखंड का सौदा काली मिर्च के कुछ बोरों के बदले हो गया था | बस इसी काले सोने के स्रोत भारत को खोजने कोलम्बस निकल पड़ा था जब संयोग से उसने बाहमास के कुछ द्वीपों और दक्षिणी अमरीका महाद्वीप की खोज कर ली थी | इस खोज से ईसाबेल प्रथम ने केवल स्पेन का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का ही नक़्शा बदल डाला। जहाँ तक ईसाबेला प्रथम का सवाल है उसे भारत के ख़ज़ानों के साथ दूरदराज़ देशों में अपने ईसाई धर्म के कैथोलिक संप्रदाय को फ़ैलाने का लालच और भी अधिक था |
कोलंबस ने स्पेन से अटलांटिक महासागर में पश्चिम दिशा की ओर रुख किया और १२ अक्टूबर १४९२ के दिन उसे एक भूखंड मिला जो दरअसल आज का बाहमास क्षेत्र था | इस द्वीप का नाम बाद में हिस्पानिओला रखा गया | अब यह द्वीप हैटी और डोमनिकन रिपब्लिक में बंटा है | अपने अगले प्रयासों में कोलंबस मध्य और दक्षिण अमरीका महाद्वीप की ओर चले गए थे | वास्तव में उत्तरी अमरीका की खोज कोलंबस से लगभग ५०० वर्ष पूर्व कुछ साहसी वाइकिंग (आज के डेनमार्क, नॉर्वे और स्वीडन के निवासी) लोगों ने लेफ एरिक्सन के नेतृत्व में कर ली थी | कोलंबस एक बहुत ही लालची और क्रूर व्यक्ति था | उसने अपने अभियान के आरम्भ में ही शाही हुक्म निकलवा लिया था जिसके अंतर्गत कोलम्बस अपने द्वारा खोजे गये भू खण्डों का राज्यपाल घोषित कर दिया जायेगा | ऐसे वह हिस्पानिओला का राज्यपाल बन गया और उसने वहां राज्य के नाम पर आतंक फैलाना शुरू कर दिया | इसकी खबर जब कॉस्टिल और ऑरेगॉन के राजदरबार में पहुंची तो कहर मच गया |
ईसाबेला प्रथम अपने धार्मिक विश्वास में कट्टर अवश्य थी और उसके द्वारा स्थापित न्यायिक जांच प्रणाली का काफी दुरुपयोग भी हुआ पर कहीं न कहीं उसके ह्रदय में इंसाफ के प्रति सच्चा प्रेम भी था | इस का आभास इस बात से पता चलता है कि जब ईसाबेल को ज्ञात हुआ कि कोलंबस हिस्पानिओला को एक राज्यपाल की हैसियत से बेहद क्रूरता से शासित कर रहा है और वहां के निवासियों के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है तो उसने कोलंबस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए और उसके पदक भी ज़प्त करवा लिए | कोलंबस को स्पेन लाया गया और उसके कारनामों की न्यायिक जाँच हुई |
(स्पेन की पहली महिला शासक कॉस्टिल और ऑरेगॉन की ईसाबेला प्रथम कोलम्बस के साथ – तैल चित्र)
ईसाबेल प्रथम का जन्म संभवतः रानी बनने के लिए नहीं हुआ था | २२ अप्रैल १४५१ को कॉस्टिल के राजा जॉन द्वितीय और उसकी दूसरी पत्नी पुर्तगाल की राजकुमारी ईसाबेल के महल में जन्मी, नन्ही सी ईसाबेला प्रथम उत्तराधिकारियों की सूची में तीसरे स्थान पर थी | ईसाबेला प्रथम केवल ३ साल की थी जब उसका सौतेला भाई हेनरी चतुर्थ कॉस्टिल के राजसिंहासन पर बैठा | हेनरी विवाहित था पर भाग्यवश निस्संतान था | कैथोलिक धर्म में तलाक या दूसरा विवाह दोनों ही अमान्य हैं | ईसाबेल प्रथम का एक छोटा सगा भाई भी था अल्फोंसो, जिसका हक़ हेनरी का उत्तराधिकारी बनने का ज़्यादा था | ईसाबेला प्रथम का बचपन कुछ अधिक सुखी नहीं रहा क्योंकि जन्म के तुरंत बाद उसकी माँ गहरे मानसिक अवसाद से घिर गई और अपनी मृत्यु पर्यन्त उभर नहीं पाई | आजकल इस बीमारी को पोस्ट पार्टम डिप्रेशन के नाम से जाना जाता है पर उस समय इसका कोई उपचार नहीं था | नन्ही ईसाबेला प्रथम को माँ का प्यार नहीं मिल पाया | इस आभाव को उसने स्वयं ही ज़िन्दगी से सबक़ सीख कर पूरा किया |
युवती इसाबेला प्रथम कॉस्टिल के राजदरबार में १३ वर्ष की उम्र में तत्कालीन राजा (उसका सौतेला भाई – हेनरी चतुर्थ) की आज्ञा से लाई गई | उद्देश्य था उसे राजसी दरबार के तौर तरीके सिखाना | इसके अलावा उत्तराधिकारियों को राजा अधिकतर अपनी आंखों के सामने रखना पसंद करते थे | कुशाग्र बुद्धि वाली ईसाबेला प्रथम ने बहुत ही शीघ्र दरबार के तौर तरीकों के साथ राजनैतिक दांव पेंच भी सीखने शुरू कर दिए | उन दिनों, १५वीं सदी, में लड़कियों को बहुत कम शिक्षा दी जाती थी | ईसाबेला की स्कूली पढाई चाहे सीमित ही क्यों न रही हो, उसने स्वयं से लैटिन भाषा का अध्यन कर खुद को शिक्षित किया |
कॉस्टिल राज्य के असंतुष्ट दरबारियों और जागीरदारों ने पहले तो अल्फोंसो (ईसाबेला का छोटा सगा भाई और हेनरी चतुर्थ का उत्तराधिकारी) को नेता बना कर हेनरी चतुर्थ के विरुद्ध जाल बिछाया | पर जब अल्फोंसो की मृत्यु १४६८ में हो गई तो उन्होंने ईसाबेला पर अपना ध्यान केंद्रित किया | ईसाबेल तो कुछ अलग ही मिट्टी की बनी थी | उसने अपनी कुशल राजनैतिक सोच और अक्लमंदी दिखाते हुए राजा हेनरी चतुर्थ का साथ देकर उसका दिल जीत लिया | १९ सितम्बर १४६८ में एक संधि पत्र (Accord of Toros de Guisando) के द्वारा कॉस्टिल के राजा हेनरी चतुर्थ ने ईसाबेला प्रथम को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। यह ईसाबेला के जीवन का एक बड़ा ही अहम् पड़ाव था |
कॉस्टिल की राजगद्दी की उत्तराधिकारिणी की हैसियत से ईसाबेला प्रथम का विवाह एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा बन गया | पुर्तगाल, ऑरेगॉन और फ्रांस तीनों ने अपने अपने उम्मीदवार रखे | कॉस्टिल का राजा हेनरी चतुर्थ चाहता था कि ईसाबेला प्रथम पुर्तगाल के राजा से विवाह करे पर ईसाबेला ने अपने कुछ चुनिंदा सलाहकारों की मदद से ऑरेगॉन के फर्डिनांड द्वितीय को चुना और अक्टूबर १४६९ में उससे शादी भी कर ली | इस सम्बंध में रोमांस का कोई अधिक स्थान नहीं था बल्कि करीबी रिश्तेदार होने की आपत्ति भी थी | पर सारी रुकावटों को पार कर किसी तरह यह विवाह संपन्न हो गया | ईसाबेला प्रथम का यह निडर कदम उसकी सुलझी हुई सोच और आत्मविश्वास को दर्शाता है | वह अपने पत्ते बड़ी सोच विचार के बाद फेंक रही थी | विवाह के समय एक संधि पत्र ( ट्रीटी) पर हस्ताक्षर हुए जिसके अंतर्गत कॉस्टिल का प्रभुत्व ऑरेगॉन पर माना गया । तय हुआ कि ईसाबेला प्रथम कॉस्टिल और ऑरेगॉन पर सम्मिलित रूप से राज्य करेगी । फर्डिनांड द्वितीय, कॉस्टिल में रानी के पति (consort ) के रूप में जाना जायेगा। ईसाबेला को अपने विरोधियों को कुचलने में और कॉस्टिल की राजगद्दी पर अपना कब्ज़ा मजबूत करने में ऑरेगॉन की सहायता भी चाहिये थी |
(स्पेन की रानी ईसाबेला प्रथम और उसके पति फर्डिनांड द्वितीय का उनके विवाह के समय बना तैल चित्र)
ईसाबेला प्रथम और फर्डिनांड द्वितीय के विवाह से कॉस्टिल के तत्कालीन राजा हेनरी चतुर्थ (ईसाबेला का सौतेला भाई ) और ईसाबेला प्रथम के बीच मनमुटाव हुआ क्यों कि इस विवाह में हेनरी चतुर्थ की सहमति नहीं थी | पर अपनी शादी और हेनरी की मृत्यु के बीच के पांच सालों में ईसाबेला प्रथम ने फिर से हेनरी चतुर्थ को कुछ हद तक मना लिया था और हेनरी चतुर्थ की मृत्यु के बाद १४७४ में २३ वर्षीय ईसाबेल प्रथम कॉस्टिल की राजगद्दी पर बैठ गयी | हालाँकि उसे शुरू के चार – पांच सालों में अपने ख़िलाफ़ उठे विद्रोह को ख़त्म करने में काफी संघर्ष करना पड़ा | २४ फरवरी १४७९ में आखिरकार ईसाबेला प्रथम विजयी हुई और उसकी कॉस्टिल की राजगद्दी पर पकड़ पूरी तरह से मज़बूत हो गयी | इसी वर्ष ऑरेगॉन के राजा और फर्डिनांड द्वितीय (ईसाबेला प्रथम का पति) के पिता जुआन द्वितीय की मृत्यु के पश्चात्, कॉस्टिल और ऑरेगॉन राज्य एक हो गए | यह स्पेन का पहला एकीकरण था |
ईसाबेला प्रथम स्पेन के इतिहास में पहली महिला शासक थी | परंतु उसका राजगद्दी तक का सफ़र बिलकुल भी आसान नहीं था । एक पुरुष प्रधान संसार में कैसे इस विलक्षण प्रतिभा वाली महिला ने अपनी बुद्धिमत्ता, राजनैतिक सूझबूझ और बेहद मज़बूत इरादों का परिचय देते हुए, न केवल अपने राज्य को पहला दर्ज़ा दिया परन्तु स्वयं को भी अपने राज्य कॉस्टिल का मुख्य शासक घोषित करवा लिया ? पहले भी पूरे विश्व में विवाह सम्बंधों द्वारा राज्यों की सीमा का विस्तार किया गया था पर राजा दहेज़ में रानी का राज्य अपने राज्य में मिला लेता था | कैसे ईसाबेला प्रथम ने उलटी गंगा बहाई? यह वास्तव में एक बहुत ही आश्चर्यजनक घटना क्रम है और ईसाबेला प्रथम के विलक्षण चरित्र का सूचक है |
कॉस्टिल और ऑरेगॉन – दोनों राज्यों का एक साझा लक्ष्य था ग्रेनाडा पर विजय | स्पेन के आंदुलिसिआ क्षेत्र में अरबों / मूर्स का शासन लगभग ८०० सालों से था | कॉरडोबा और अन्य क्षेत्रों से पराजित होने के बाद भी ग्रेनाडा में इस्लाम का कब्ज़ा बना रहा था | ईसाबेला प्रथम और फर्डिनांड द्वितीय, ग्रेनाडा को जीत कर वहां ईसाई धर्म के कैथोलिक सम्प्रदाय की स्थापना करने के लिये करबद्ध थे | हमने पहले भी चर्चा की है कि कैसे इन दोनों ने इसे ‘धर्म युद्ध’ बना कर आस पास के बाकी के रजवाड़ों को भी इस लड़ाई में सम्मलित कर लिया था | ग्रेनाडा जीतने का यह अभियान १४८१ में शुरू हुआ और एक बड़ा ही कठिन युद्ध साबित हुआ | कहते हैं कि ईसाबेला प्रथम ने इस बेहद कठिन संघर्ष में व्यक्तिगत रूप से भाग लिया | उसने युद्ध में सामान लाने वाली श्रंखलाओं (सप्लाई चेन्स) का आधुनिकीकरण किया और मिलिट्री अस्पतालों का भी निर्माण किया | युद्ध शुरू होने के दस साल बाद, वर्ष १४९१ में ईसाबेला प्रथम और फर्डिनांड द्वितीय दोनों ने मिल कर ग्रेनाडा के पास एक मिलिट्री चौकी -सैंटा फे – में स्थापित की और स्वयं वहां तब तक रहे जब तक कि उन्होंने एक साल में ग्रेनाडा पर २ जनवरी १४९२ में विजय हासिल नहीं कर ली | इस चौकी का निर्माण ग्रेनाडा युद्ध में जीत का एक महत्वपूर्ण कारण रहा | सुन्दर, तेजस्वी और अत्यंत धार्मिक ईसाबेला अपनी बेशकीमती पोशाकों और आभूषणों से सजी अपने पूरे राज्य का स्वयं दौरा करती थी | पंद्रहवीं शताब्दी में ऐसा साधारणतयः नहीं होता था और ईसाबेला प्रथम के इस आचरण से उसकी प्रजा में अपनी रानी और शासक के लिये बेहद प्रेम और सम्मान था |
विजय यात्रा के समय जब ईसाबेला प्रथम और फर्डिनांड द्वितीय अलहम्ब्रा किले की ओर बढ़ रहे होंगे, तो उन्होंने अपने शानदार घोड़े को रोक कर एक नज़र ग्रेनाडा की उन हिमाच्छादित पहाड़ियों की ओर अवश्य ही डाली होगी जिन्होंने लगभग ५२६ साल बाद (अक्टूबर 2018 में) मेरा और मेरे परिवार का मन मोह लिया था |
(अलहम्ब्रा का किला ग्रेनाडा में अपनी बर्फीली पहाड़ियों के साथ |)
एक मुख्य बात और | अलहम्ब्रा किले पर अधिकार जमाने के बाद ईसाबेला ने वहां एक बड़ा सा चैपल (गिरिजाघर) बनवाया परन्तु वहां पर स्थित मस्जिद और बाकी की इमारतों को कोई भी क्षति पहुंचाये बिना | आज जब हम अलहम्ब्रा किले में विचरण करते हैं और इस्लामिक – क्रिस्चियन वास्तुकला के बेमिसाल नमूने देखते हैं तो ऐसा लगता है कि बिना किसी सीमाओं के हम एक युग से दूसरे युग में और एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में प्रवेश कर रहे हैं | कितनी बड़ी बात है ! कुछ ऐसा ही तथ्य मैंने कॉरडोबा की इमारतों में देखा जहाँ रोमन काल से लेकर इस्लामिक और फिर ईसाई साम्राज्य की निशानियां एक दूसरे से कंधा से कंधा मिला कर खड़ी हैं | विध्वंस के बजाय हर नये राज्य ने अपनी संस्कृति जोड़ दी | ऐसा हर जगह नहीं है | दुर्भाग्यवश इतिहास के अधिकतर पन्नों में वह असभ्य और मूर्ख लोग भी हैं जिन्होंने अपने धार्मिक स्थल दूसरों के मंदिरों को तोड़ कर उसी जगह बनाया | वास्तुकला के अद्भुत नमूनों और अमूल्य ग्रंथों को मिटाने में जिनके हाथ और रूहें नहीं कांपी |
थोड़ा सा विषय से हट कर अवश्य है पर कहे बिना रहा भी नहीं जा रहा है | जहाँ तक हम भारतीयों का सवाल है हमनें सदैव ‘वसुधैव कुटुंबकम’ पर विश्वास रखा पर धर्म के नाम जो अत्याचार, क्रूरता और आतंक हमने देखा है, उसने हमारे दिलों को लहूलुहान और आत्मा को छलनी कर दिया है। हमारी बेहतरीन वास्तुकला की धरोहरों को बेरहमी से उजाड़ दिया गया, हमारे हज़ारों साल पुराने ग्रन्थ और उनमे निहित बेशकीमती ज्ञान को जला दिया गया, हमारे गुरुओं के सर सरेआम क़लम किये गये, उनके मासूम बच्चों को ज़िंदा दीवार में चुन दिया गया । और तो और, हमारे देश को मज़हब के नाम पर बाँट दिया गया। २० लाख लोगों के रक्त से भूमि और नदियां लाल हो गईं | लगभग डेढ़ करोड़ लोग बेघर हो गये | आज भी हम आतंकवाद के शिकार हैं | अपने देश का ध्यान आते ही मैं भावनाओं में बह गई, वापिस विषय पर आती हूँ।
सन १४९२ ईसाबेला प्रथम के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण रहा | ग्रेनाडा पर विजय और कोलम्बस की बाहमास द्वीप की खोज के अलावा इसी साल उसके पति फर्डिनांड द्वितीय पर घातक हमला हुआ जिसने लगभग फर्डिनांड की जान ही ले ली थी | इसका ईसाबेला प्रथम पर गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा | उसने मनुष्य जीवन की क्षणभंगुरता और काल के समक्ष राजा – रंक की समानता को समझ लिया | उसने लिखा, ‘’ सामान्य मनुष्य की तरह राजा भी किसी दुर्घटना के शिकार होकर मर सकते हैं | इसलिए आवश्यक है कि सलीके से मरने की तैयारी की जाये ‘’ एक बहुत ही गहरी सोच !
अपने देहांत के लगभग डेढ़ महीने पहले, १२ अक्टूबर १५०४ में, ईसाबेला प्रथम ने एक लम्बी चौड़ी वसीयत लिखी जो उसकी सोच और चरित्र दोनों पर प्रकाश डालती है | उसने लिखा कि वह अपने पूरे होशोहवास में है हालाँकि उसका नश्वर शरीर ईश्वर के दिए हुए रोग से जर्जरित है | उसने वर्जिन मैरी , संत माइकेल और अपने अन्य कैथोलिक धर्म में मान्य संतो से गुहार की कि वह क़यामत के दिन उसकी तरफ से ईश्वर से सिफारिश करें; ईश्वरीय दया से उसकी आत्मा को वह वैभव, सम्मान और शांति मिले जिसके लिये उसे बनाया गया था | उसकी सोच में यहूदी, मुसलमान और काफ़िर सब शैतान और उसके दरिंदे थे, जिनसे उसे डर भी लगता था | उसने प्रार्थना की कि इन सबसे उसे बचाया जाये | उसने अपने उत्तराधिकारियों को आदेश दिया कि वह ईश्वर का सम्मान करें, ईसाई धर्म खासतौर पर कैथोलिक सम्प्रदाय को संभाल कर रखें और आगे बढ़ायें | अफ़्रीका महाद्वीप को जीत कर मुसलमानों के कब्ज़े से छुड़ायें और जिब्राल्टर जलसंधि पर अपना पूरा नियंत्रण बनाये रखें | पवित्र न्यायिक जांच (स्पेनिश इन्कुइसिशन) को जारी रखें जिससे कि काफ़िरों को देश से निकाला जा सके | और आखिर में अपनी मृत्यु के तीन दिन पहले उसने लिखा कि जिन स्थानीय निवासियों को हिस्पानिओला से लाया गया है उनके साथ मानवतापूर्वक और करुणा से भरपूर व्यवहार हो | ईसाबेला, कोलम्बस के पाप अपने ऊपर लेकर मरना नहीं चाहती थी | उसने यह भी लिखा कि उसके अंत समय के बाईबल के अध्यन और प्रार्थनाओं से उसे ईश्वर के स्वरुप का अच्छे से ज्ञान हो गया है जो कि पहले कभी नहीं हुआ था |
आखिरकार २६ नवम्बर १५०४ में ५३ वर्ष की उम्र में और कॉस्टिल पर ३० साल और अपने पूरे साम्राज्य पर २५ साल तक राज्य करने के बाद बाईबल की आयतों के उच्चारण और ईसाई धर्म के भजनों से गुंजित वातावरण में ईसाबेला प्रथम ने अपनी अंतिम श्वांस ली | उसके नश्वर शरीर को एक लकड़ी के ताबूत में रखकर, ताबूत को काले कपडे और चमड़े से ढक कर उसके महल मेडिना डेल कैंपो (जो कि आज के मेड्रिड से करीब १५८ कि मी की दूरी पर उत्तर पश्चिम दिशा की ओर है ) से ग्रेनाडा ले जाया गया | रास्ते में धुआँधार बारिश को सहते और बाढ़ से उफनाई नदियों को पार करते यह काफ़िला बाईस दिन बाद, १८ दिसम्बर को ग्रेनाडा पहुँच गया | वहां अलहम्ब्रा के किले में बनाई हुई फ्रांसिस्कन मोनास्ट्री में ईसाबेला प्रथम को दफ़नाया गया | बारह साल बाद, १५१६ में फर्डिनांड द्वितीय की मृत्यु के बाद उसे भी यहीं ईसाबेला प्रथम की बगल में दफना दिया गया |
(स्पेन की रानी ईसाबेला प्रथम और उसके पति फर्डिनांड द्वितीय की क़ब्रें ग्रेनाडा में )
एक और रोचक तथ्य | इग्लैंड की महारानी मैरी प्रथम, ईसाबेला प्रथम की नातिन थी | ईसाबेला प्रथम के सात संताने हुई | उनमे से दो का जन्म मृत अवस्था में हुआ | पांच यौवन तक पंहुचे | उनमे से एक थी कैथरीन ऑफ़ ऑरेगॉन जिसका विवाह इंग्लैंड के हेनरी अष्टम से हुआ था | मैरी प्रथम (क्वीन ऑफ़ स्कॉट्स) इनकी पुत्री थी | इसे कालचक्र कहें या क़िस्मत की लकीरें? ईसाबेला प्रथम तो एक सशक्त महिला शासक बनी पर उसके दामाद (हेनरी अष्टम) ने एक पुत्र उत्तराधिकारी पाने की चाह में छह बार विवाह रचाया और अपनी दो पत्नियों – ऐन बोलीन और कैथरीन होवार्ड – का शिरच्छेद कराया | हेनरी अष्टम और ऐन बोलीन की बेटी एलिज़ाबेथ प्रथम ने क़रीब तीन दशक तक इंग्लैंड पर राज्य किया | कहते हैं कि मृत्यु दंड स्थल पर जाते समय ऐन बोलीन ने हेनरी अष्टम को श्राप दिया था कि हेनरी कितना भी कोशिश कर ले पुत्र पाने की, उसकी बेटी एलिज़ाबेथ प्रथम ही इंग्लैंड की राज्य गद्दी पर बैठ कर लम्बे समय तक राज करेगी | किस्मत का संयोग ! ऐसा ही हुआ भी | ईसाबेला प्रथम की नातिन मैरी प्रथम (क्वीन ऑफ़ स्कॉट्स) के विद्रोह को कुचलने के बाद एलिज़ाबेथ प्रथम ने उसे (मैरी प्रथम) को लम्बे समय तक कारावास में रखा और फिर उसे मृत्यु दंड दे दिया | शिरच्छेद के समय मैरी प्रथम रक्त के इतनी लथपथ थी कि उसका नाम ‘ब्लडी मैरी’ भी पड़ गया | यह इतिहास का एक क्रूर तथ्य है और इसको जाने बिना बहुत लोग आज मयख़ानों में ‘ब्लडी मैरी’ (शराब की एक कॉकटेल) आर्डर करते हैं |
ईसाबेला प्रथम ने इतिहास में पहला स्थान कई कारणों से लिया है | वर्ष १८९३ में, कोलंबस की खोज के लगभग ४०० साल बाद यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका ने एक सिक्का जारी किया जिसमे ईसाबेला प्रथम की छवि अंकित है | यही नहीं एक ८ सेंट का डाक टिकट भी जारी किया गया जिसमे ईसाबेला प्रथम और कोलंबस दोनों दिखाई देते हैं |
सारांश में इतना कहना पर्याप्त होगा कि पंद्रहवीं शताब्दी में जन्मी और राज्य करने वाली स्पेन की पहली महिला शासक ईसाबेला प्रथम की सोच कई सदियों से आगे की थी | अपनी बुद्धिमानी, साहस, आत्मविश्वास और आधुनिक सोच से उसने स्पेन का एकीकरण किया और ईसाई धर्म के कैथोलिक संप्रदाय, जिसके प्रति वह पूर्णरूप से समर्पित थी, उसका विस्तार किया | ग्रेनाडा के युद्ध में उसने स्वयं व्यक्तिगत रूप से भाग लिया और सप्लाई श्रंखलाओं का आधुनिकीकरण किया | ग्रेनाडा के पास सेंटा फे में सैनिक चौकी की स्थापना ईसाबेला की युद्ध नीति में निपुणता की द्योतक है । यही नहीं इस विलक्षण महिला ने स्पेन में पुनर्जागरण युग का आरम्भ किया | नये देशों की खोज की दिशा में उसने कोलंबस के ‘भारत खोजो अभियान’, जिसके द्वारा बाहमास और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप की खोज हुई, को पूरी वित्तीय सहायता दी | पर जब कोलंबस की क्रूरता की सूचना मिली तो उसी न्याय प्रेमी ईसाबेला ने कोलंबस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए | ईसाबेला प्रथम ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज़ोर देते हुए स्कूलों और अस्पतालों – खासतौर पर सैनिक अस्पतालों – की स्थापना की | साहित्य, कला और चित्रकला को प्रोत्साहन दिया | आशा है कि ऐसी अद्भुत वीरांगना की कहानी आने वाली सदियों तक सब को, विशेषतयः महिलाओं को प्रेरित करती रहेगी |
नीरजा राजकुमार
लेखिक परिचय
आई. ए . एस. (सेवानिवृत्त),
भूतपूर्व मुख्य सचिव कर्नाटक
अंग्रेजी और हिन्दी में अनवरत लेखन
वर्तमान में गुरुग्राम में निवास।